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शैलेश मटियानी की कहानियों में कुमाऊँनी समाज और संस्कृति: Kumaoni Society and Culture in the Stories of Shailesh Matiyani

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Specifications
Publisher: Satyam Publishing House, New Delhi
Author Reena Uniyal
Language: Hindi
Pages: 356
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
Weight 560 gm
Edition: 2016
ISBN: 9789383754922
HBR635
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Book Description
भूमिका

सृष्टि के आरम्भ से ही साहित्य सृजन का आधार मानव और समाज का अंतरंग रूप रहा है, जिसके द्वारा अनेक प्रकार की अनुकूलता-प्रतिकूलता समय-समय पर साहित्य में अंकित होती रही। आधुनिक जीवन के विविध रूपों में साहित्य अभिभूत हैं, जिसमें अनेक प्रकार की सामाजिक मानवीय विभेद प्रवृत्ति से भयाक्रांत है, किन्तु इन विभेद प्रवृत्तियों से साहित्यकार समय-समय पर तदाकार होता रहा है। साहित्यकार सामाजिक प्रत्येक घटना, विचार, समस्या पर चिंतन-मनन कर उसे समाज सापेक्ष प्रस्तुत करता है, क्योंकि साहित्यकार संवेदनशील होता है, वह समाज एवं व्यक्ति की पीड़ा को आत्मसात कर उसे साहित्य रूप प्रदान करने में सक्षम रहता है। चतुर्वर्णीय समाज व्यवस्था में वर्ग भेद, वर्ण भेद आदि जैसी कलुषित प्रवृत्तियों से मानव एवं समाज आक्रांत रहा है। इन्हीं सामाजिक विडम्बनाओं विवशताओं को साहित्यकार अपनी रचनाधर्मिता से साहित्य में उकेरता है।

स्वातन्त्र्योत्तर समाज में राष्ट्र समाज एवं मानव में चतुर्दिश विकास की आकांक्षा ने जन्म लिया और उस विकास की दौड़ में अग्रसर होता गया, किन्तु मानव विकास की आकांक्षा धीरे-धीरे महत्त्वाकांक्षा में परिवर्तित होती गई और वह नैतिक, अनैतिक जीवन मूल्यों के हास का कारण बना। मानव की भौतिकवादी प्रवृत्ति ने अवश्य विकास के बिन्दु को छुआ है किन्तु मानवीय स्तर पर वह पतन की ओर अग्रसर हुआ है। जातिगत वैमनस्य वर्गगत वैमनस्य ने अपने पांव पसारकर समाज को इस विघटन की खाई में धकेल दिया।

आधुनिकता की चकाचौंध ने पलायन की प्रवृत्ति को जन्म दिया और ग्रामीण अंचल इस पलायन की प्रवृत्ति के शिकार हुए। भारतीय संस्कृति गाँवों में बसती है किन्तु इस ग्रामधारित संस्कृति के संवाहक ही इसे नष्ट भ्रष्ट करने में लगे रहे। मानव की महत्वाकांक्षी प्रवृत्ति से सम्पन्न और अधिक सम्पन्न होते गए और गरीब और अधिक निर्धन। इसके साथ ही जीवन मूल्यों के ह्रास का प्रतिबिम्ब भी प्रचुर मात्रा में देखने को मिला। निम्न वर्ग के प्रति उच्च वर्ग की हृदयहीनता को साहित्यकार ने अनुभूति के साथ साहित्य में व्यक्त किया।

प्रत्येक समाज की वेदना साहित्यकार के अन्तर्मन को प्रभावित करती है जिसके फलस्वरूप उसका अपना जीवन अपने लिए न होकर समाज के लिए होता है। जीवन अनुभवों की अग्नि में तपकर निकलने वाली ऊर्जा का बीजारोपण साहित्य में अंकुरित होता है, और इस अंकुरण से जो जागृति की लौ प्रस्फुटित होती है वह समाज में हो रहे अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष के रूप में प्रदीप्त होती है। आलोच्य विषय शैलेश मटियानी की कहानियों के विविध पक्षों पर प्रकाश डालती है। अभिजात्य वर्ग के अत्याचारों से लेखक आजीवन संत्रस्त रहा है इस सामाजिक विद्वेष परक भावना को लेखक ने अपनी कहानियों में विस्तृत रूप से स्थान दिया है। कुमाऊँ का ग्रामीण समाज, निम्न वर्ग, रुढ़ियों, परम्पराओं, अभाव, दरिद्रता, अंधकार, अशिक्षा, भूख, शोषण, आपदाओं से सदियों से जूझता आया है।

ये सभी सामाजिक विषमताएँ कथाकार को आंचलिक पृष्ठभूमि प्रदान करती रहीं, जिनके आधार पर वह कहानी सृजन को विवश होता रहा। समाज में शोषण और शोषक वर्ग की बहुलता रही है। लेखक स्वयं भी इस शोषित वर्ग की वेदना से व्यथित होता रहा है। स्वातन्त्र्योत्तर कथाकारों में मैंने कूर्मांचल साहित्य क्षेत्र को समर्पित सशक्त हस्ताक्षर के रूप में आंचलिकता को व्यक्त करने वाले साहित्य पुरोधा मटियानी की अंचल विशेष कहानियों में विविध पक्षों का विश्लेषण करने का प्रयास किया है।

फणीश्वरनाथ 'रेणु' के पश्चात् आंचलिक क्षेत्र में लेखन कार्य करने वाले शैलेश मटियानी का अद्वितीय स्थान है। उन्होंने लेखन क्षेत्र में कहानी विधा के माध्यम से साहित्य वर्ग में अपनी उज्ज्वल पहचान बनायी है। उनकी कहानियों में उत्तराखण्ड का कुमाउंनी अंचल यथार्थ अनायास ही उपस्थित हो उठता है, जो उनकी आँचलिक उत्कृष्टता और भाषा वैविध्य की पुष्टि करता है। कुमाउंनी समाज के निम्न एवं दलित वर्ग की वेदनापूरित मनोदशा का अंकन कर, तत्कालीन आभिजात्य वर्ग द्वारा अनैतिक अमानवीयता पर करारा प्रहार किया है। उत्तराखण्ड समाज में रुढ़ि प्रधान लोकमान्यताओं, ह्रास होती नैतिकता, पाखण्ड, आस्था-विश्वास का महासंगम मटियानी की कृतियों में स्पष्ट दिखाई देता है। मटियानी की कहानियों में उत्तराखण्ड संस्कृति की समरसता, वैविध्यता, संवेदनात्मक भावानुभूति और जीवन-संघर्ष की भावना ने मुझे उनके साहित्य सृजन के अध्ययन हेतु आकर्षित किया। जिसके परिणामस्वरूप प्रस्तुत पुस्तक की भावभूमि स्पष्ट हुई, जिनमें उत्तराखण्ड समाज का विस्तृत चित्रांकन करने का प्रयास किया गया है। उत्तराखण्ड के कुमाउंनी समाज व संस्कृति को चित्रित करती कहानियों के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत पुस्तक को आठ अध्यायों में विभाजित किया गया है।

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