इतिहास अतीत का आइना होता है। इसके अन्तर्गत, कुछ समय पूर्व तक केवल राजनीतिक गतिविधियों का ही उल्लेख प्रमुखता से किया जाता था। लेकिन वर्तमान में इतिहास की यह अवधारणा व्यवहार में बहुत बदल चुकी है। अब इतिहास मात्र राजाओं की गतिविधियों का वर्णनात्मक पत्र नहीं है, बल्कि अब इतिहास सामान्य आदमी के कार्य क्षेत्र और उनके सामाजिक विकास के साथ जुड़ गया है। उदाहरण के लिए अब तक केवल शाहजहां और उसकी अद्भूत वास्तुकला की ही प्रशंसा की जाती रही हैं, बल्कि उन लोगों की तरफ बहुत ही कम ध्यान दिया गया है, जिन्होंने अपना खून-पसीना बहाकर वास्तव में इन सुन्दर कलाकृतियों का सृजन किया था। ये लोग ही उत्पादन और सभ्यता के वास्तविक निर्माता थे। इनकी मेहनत ही प्रत्येक राष्ट्र की आर्थिक सम्पन्नता की आधारशिला रही है। अतः किसी राष्ट्र के आर्थिक जीवन और प्रगति का अध्ययन करने के लिए इन सामान्य लोगों का इतिहास भी पढ़ना आवश्यक है। किसी देश के आर्थिक जीवन का आधार वहां के जनमानस, उनकी गतिविधियाँ, उनका राज्य के साथ रिश्ता तथा सामाजिक मेल-जोल होते हैं। साम्राज्य के अमीर वर्ग को भी हमारे विश्लेषण में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि वे भी प्रत्येक युग के बड़े उपभोक्ता के रूप में जाने जाते रहे हैं तथा राज्य की भौतिक उन्नति के लिए उत्पादन और उपभोग पर सभी का समान अधिकार होता है।
कुषाणकाल के राजनीतिक इतिहास के बारे में काफी कुछ लिखा गया है, तथा इसके आर्थिक ढांचे का भी सर्वेक्षण किया गया है। अनेकों विद्वानों ने इस विषय पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है। विशाल पाली-साहित्य, दो महाकाव्यों, कौटिल्य, मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति, परम्परावादी लेखकों और अन्य स्रोतों के उपयोग से अपने उद्देश्य को प्राप्त करने का प्रयास किया है। लेकिन इनमें अधिकतर के पास पर्याप्त शिलालेखों और अन्य समसामयिक दस्तावेजों का अभाव रहा है। इस विषय को निम्नलिखित छः अध्यायों में विभक्त किया गया है: प्रथम अध्याय 'प्राचीन भारत में अर्थ का महत्त्व एवं कुषाण वंश का परिचय' में प्राचीन भारत में 'अर्थ' का महत्त्व बताते हुए कुषाण शासकों का परिचय दिया गया है इसमें बताया गया है कि मनुष्य के लगभग सभी काम अर्थ पर आधारित होते हैं। अर्थ को ही जीवन का प्रधान साधन माना गया है। प्राचीन काल में वार्ता और उसके महत्त्व का वर्णन किया गया है। कुषाण वंश के शासनकाल के प्रारंभ से अन्त तक के सभी शासकों का भी उल्लेख किया गया है।
द्वितीय अध्याय 'कृषि एवं पशुपालन' में कुषाण काल की कृषि एवं पशुपालन के बारे में वर्णन किया गया है। इस काल में कृषि की दशा अच्छी थी। कौन-कौन सी फसलों की खेती की जाती थी तथा सिंचाई के क्या-क्या साधन थे, इन सबका उल्लेख इस अध्याय में किया गया है। इसके अतिरिक्त इस काल में की गई पशु-पालन संबंधी गतिविधियों का भी उल्लेख किया गया है।
तृतीय अध्याय 'उद्योग धन्धे' में कुषाण काल के विभिन्न उद्योगों की जानकारी दी गई है। इस काल के लौह उद्योग, सोना चांदी उद्योग एवं अन्य उद्योग धन्धों तथा उनके उत्पादनों का इस अध्याय में वर्णन किया गया है।
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