'लालकिताब' ज्योतिष की एक विशेष तकनीक पर लिखी गयी पुस्तक का नाम है। इसकी रचना का काल क्या है और इसके रचयित कौन थे; यह विवादास्पद है; परन्तु इतना कहा जा सकता है कि यह ग्रन्थ 'हुमायूँ' के शासनकाल में या उसके तुरन्त बाद लिखा गया था; क्योंकि इसकी भाषा उसी काल की है। एक-दो हस्तलिखित प्रतियों में हुमायूँ का नाम भी आया है। चूंकि इसकी प्राचीन प्रतियों में हिन्दू देवी-देवता और ग्रह आदि के नाम हैं और इसमें भारतीय सामुद्रिक विद्या का समावेश किया गया है; अतः यह भारतीय विद्या है, इसमें कोई सन्देह नहीं है।
लालकिताब की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी ज्योतिषीय तकनीकी में प्राचीन ज्योतिष की भाँति ग्रह-गोचर आदि की विस्तृत एवं जटिल गणना नहीं करनी पड़ती। इसके द्वारा फल ज्ञात करना अत्यन्त सरल है; परन्तु समस्या यह है कि आज इस ग्रन्थ के जितने संस्करण बाजार में उपलब्ध हैं, उनमें विषयवस्तु स्पष्ट नहीं है। कुछ तो प्राचीन पुस्तक की अधूरी एवं त्रुटियों से पूर्ण प्रतिलिपि मात्र हैं और कुछ उलझी हुई तथा अस्पष्ट। इसलिये इसका लाभ सामान्य जनों को मिल नहीं पा रहा है।
इसी समस्या को ध्यान में रखकर यह पुस्तक लिखी गयी है। यह 'लालकिताब' की प्रतिलिपि नहीं है। इसमें विषय का समायोजन, सम्पादन, प्रस्तुतिकरण एवं इसकी व्याख्या मौलिक रूप में की गयी है, ताकि यह सरल एवं बोधगम्य रूप में पाठकों तक पहुँच सके। इस संस्करण के द्वारा सामान्य परिश्रम से ही कोई भी व्यक्ति किसी भी कुण्डली का फल ज्ञात कर सकता है और अशुभ प्रभाव से बचने का उपाय कर सकता है।
यद्यपि मैंने प्रयत्न किया है कि इस पुस्तक को सबके लिये उपयोगी बनाया जाये, तथापि आपके सुझाव एवं सलाह की अपेक्षा की प्रतीक्षा हमें सदैव रहेगी। मुद्रण आदि तकनीकी त्रुटियों की ओर आपके द्वारा किये गये ध्यानाकर्षण के लिये भी हम आपके आभारी रहेंगे।
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