लेखक श्री अभिजित जोग बेस्टसेलर पुस्तक 'असत्यमेव जयते?' के लेखक हैं। यह पुस्तक इतिहास में बताई गई कई असत्य बातों का पर्दाफाश करती है, जिनमें 'आर्य आक्रमण' से लेकर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन तक की बातें शामिल हैं। 'असत्यमेव जयते?' अंग्रेजी, हिंदी, मराठी और गुजराती भाषाओं में उपलब्ध है। आपने वामपंथी विचारधारा के विकास और सांस्कृतिक मार्क्सवाद या वोकिज्म के रूप में इसकी अभिव्यक्ति पर मराठी भाषा में 'जगाला पोखरणारी डावी वाळवी' नामक पुस्तक भी लिखी है।
श्री अभिजित जोग महाराष्ट्र के एक प्रमुख दैनिक 'सकाल' के रविवारीय परिशिष्ट में भारत के इतिहास पर एक द्विमासिक स्तंभ भी लिखते हैं। साथ ही आप, 'हेरिटेज फर्स्ट' के लिए सोशल मीडिया पर भी लिखते हैं। विदित हो कि 'हेरिटेज फर्स्ट' एक पेज है जो भारत के इतिहास, संस्कृति और विरासत के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रसारित करता है।
श्री अभिजित जोग एक प्रसिद्ध ब्रांड सलाहकार भी हैं, और उनकी कंपनी ब्रांडिंग, विज्ञापन, थिएटर और फिल्म निर्माण में संलग्न हैं। श्री जोग स्वयं एक निपुण कॉपीराइटर हैं। आपकी लिखी पुस्तक 'ब्रांडनामा', जो मराठी में ब्रांडिंग पर पहली पुस्तक है, काफी लोकप्रिय रही है।
आप भारत के इतिहास, संस्कृति और विरासत को विश्व भर में अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना, अपने जीवन का मिशन मानते हैं।
प्राचीन काल से एक लड़ाई लगातार चल रही है। पात्र बदलते हैं, चेहरे बदलते हैं, परंतु प्रवृत्तियाँ वहीं की वही रहती हैं दैवी और आसुरी। नए परिवेश में नए शस्त्रों से ये लड़ाई लड़नी पड़ रही है। वामपंथी शक्तियों की आज स्थिति ये है कि उनके पास जनबल बचा नहीं। धनबल का कोई फायदा नहीं। और संगठन बल भी समाप्त हो चुका है। उनका दावा है कि उनके विचार विज्ञान आधारित हैं। लेकिन आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर देखें तो विज्ञान भी उनके विरोध में ही अपना निर्णय दे रहा है। इस प्रकार, सभी मोर्चों पर पराजित हो चुके इन लोगों के पास अब एक ही तीर बचा है वह है परसेप्शन की लड़ाई । इसका मतलब है, वास्तव चाहे जो हो, अपनी इकोसिस्टम का इस्तमाल कर, सच्चाई को छुपाकर, भ्रम फैलाना। क्योंकि उनके अनुसार 'Facts are not important, only interpretation is important.'। आप सत्य कहते हैं या नहीं ये महत्वपूर्ण नहीं है, आप 'पॉलिटिकली करेक्ट' हैं या नहीं, ये ज्यादा महत्वपूर्ण है। भारत का उत्थान निश्चित है। इसमें अब कोई संदेह नहीं रहा है। लेकिन उसकी ओर जाने वाले रास्ते में शत्रु ने परसेप्शन का जाल फैला रखा है। उस पर मात कर के हमें आगे जाना है। इसलिए हमें इस लड़ाई में उतरना ही होगा।
सांस्कृतिक मार्क्सवाद का मायावी मुखौटा धारण किये हुए, ये अहंकारी लोग हैं। सारी दुनिया पर अपनी पकड़ बनाने की महत्वाकांक्षा में पागल हो चुके हैं। जो मेरा है वह मेरा है, और जो दूसरे का है वह भी मेरा ही होना चाहिए, यही इनकी आसुरी वृत्ति है। ऐसा नहीं कि वे केवल भारत के विरोध में हैं। दुनिया भर में, हर प्रकार की पवित्रता और मंगलता का वे विरोध करते हैं। 'विक्टिमहुड' पैदा कर भाई को भाई से लड़ाने का काम वे कर रहे हैं।
इस लड़ाई में सभी को उतरना होगा। 'काउंटर नैरेटिव' खड़ा करना होगा। भ्रम के पर्दे को फाड़ना होगा। सारे झूठ का भंडाफोड़ करना होगा। लोग भ्रमित न हों, इसका प्रयत्न करना होगा। मायावी जादू इसलिए प्रभावी होता है, क्योंकि उसमें आकर्षक शब्दावली होती है और भव्य-दिव्यता का आभास होता है। लेकिन उसके पीछे की मंशा ओछी और मकसद घृणित होता है। इस विचारधारा के पीछे का सत्य, कल्पना से परे अद्भुत और विकृत है। 'वामपंथी दीमक' जैसी प्रमाणित पुस्तकों के माध्यम से हमें पता चलता है कि हमारे लिए बिछाया हुआ मायाजाल कितना भयानक है। ऐसी ही पुस्तकों से उसकी गंभीरता पता चलती है। सारी दुनिया को त्रस्त करने वाली इस विचारधारा के खिलाफ लड़ने के लिए यह पुस्तक एक 'टेक्सट बुक' है। ये पुस्तक हर जगह पहुँचनी चाहिए। इसे देश के कोने-कोने तक पहुँचाना चाहिए।
हमारा सामना विश्व भर में फैली विशाल और शक्तिशाली इकोसिस्टम से है। इस इकोसिस्टम ने जिन संस्कृतियों को मिट्टी में मिलाया, उनकी शक्ति भी हमारे खिलाफ इस्तमाल होने वाली है। लेकिन हमारे समाज की शक्ति भी कम नहीं है। अनेकों विचारधाराएँ हैं जिन्होंने पूरी दुनिया को जीता, लेकिन वे भारत को नहीं जीत सकीं। उनकी कब्रें आज भी हमारे देश में मौजूद हैं।
वोकिजम का मतलब है जागे हुए। लेकिन ये जागे नहीं, भूखे हैं। ये सबको निगलना चाहते हैं। अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद सबसे पहला शासकीय आदेश यही निकाला गया था कि स्कूलों में विद्यार्थियों को कोई यह नहीं बताएगा कि वे स्त्री हैं या पुरुष। इसे वे स्वयं 'तय' करेंगे। अगर किसी लड़के ने 'तय' किया कि वह लड़की है, तो उसे लड़कियों के बाथरूम में जाने की अनुमति होगी। ऐसे विचारों के कारण ही पश्चिमी सभ्यता से दुर्गंध आने लगी है। यह तूफ़ान अब भारत की ओर रुख कर चुका है। इसी का मतलब है कि उसका अंत निश्चित है। उसका अच्छी तरह से अंतिम संस्कार हमें ही करना है। ये हमें करना ही होगा। हमें स्वयं पशु नहीं होना है, और दूसरों को भी पशुत्व से बाहर निकालना है। इसकी तैयारी के लिए, यह पुस्तक वास्तव में एक 'पाठ्य पुस्तक' है। इसे स्वयं भी पढ़ें और इसका प्रचार-प्रसार भी करें।
सत्य, करुणा, शुचिता, तपस्विता इन चार स्तंभों पर हमारा धर्म खड़ा है। इन मूल्यों को हमें नई पीढ़ी तक पहुँचाना है। प्रतिकार, प्रबोधन, अनुसंधान, आचरण, इन चार मार्गों से सभी का मंगल चाहने वाली हमारी संस्कृति का संदेश हमें सारे विश्व भर में फैलाना है।
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