प्रस्तावना
सूर्यविज्ञान प्रणेता योगिराजाधिराज स्वामी विशुद्धानन्द परमहंसदेव एक आदर्श योगी, ज्ञानी, भक्त तथा सत्य संकल्प महात्मा थे । परमपथ के इस प्रदर्शक ने योग तथा विज्ञान दोनों ही विषयों में परमोच्च स्थिति प्राप्त कर ली थी । शाखों के गुह्यतम रहस्यों को वे अपनी अचिन्त्य विभूति के बल से, योग्य अधिकारियों को प्रत्यक्ष प्रदर्शित करके समझाने तथा उनके सन्देहों का समाधान करने में पूर्णरूपेण समर्थ थे । इस प्रकार से उनका जीवन अलौकिक था।
ऐसे सिद्ध महापुरुष की जीवनी प्रस्तुत करना सहज नहीं है । गुरुदेव के श्रीचरणों में बैठने का तथा उनकी कृपा का कतिपय सौभाग्य तथा अन्य गुरुभाइयों और भक्तों से गुरु विषयक वार्त्तालाप का सौजन्य मुझे अवश्य प्राप्त हुआ है । गुरुदेव के सान्निध्य उनकी कृपा एवं शिष्यों तथा भक्तों के संस्मरणों से प्रेरित होकर, हिन्दी भाषा प्रेमियों की गुरुदेव के विषय में जानने की उत्कण्ठा की पूर्ति के हेतु, मैंने गुरुदेव की यह जीवनी प्रस्तुत करने का प्रयास किया है । यह क्रमबद्ध न होकर उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं का एक संग्रहमात्र है जो उनकी अलौकिक शक्तियों तथा उनके उपदेशों का अल्प सा परिचय प्रस्तुत करती है।
इन महापुरुष को अनेक योग सिद्धियाँ प्राप्त थीं जिससे प्रकृति, काल और स्थान सब उनकी इच्छा शक्ति के अनुचर थे । साथ ही साथ विज्ञान की भूमि में भी इनकी उपलब्धि इतनी असाधारण थी कि सूर्य की उपयुक्त रश्मियों को आतिशी शीशे द्वारा, रुई आदि पर संकेन्द्रित करके वे मनोवांछित धातुओं, मणियों तथा अन्य पदार्थों का सृजन तथा एक वस्तु को दूसरी में परिवर्तित भी कर देते थे ।
काशी के मलदहिया मुहल्ले में उन्होंने विशुद्धानन्द कानन आश्रम स्थापित किया जो अनेक वर्षों तक उनकी लीलाओं का कर्म स्थल रहा । वहाँ आज भी उनके द्वारा स्थापित प्रसिद्ध नवमुण्डी सिद्धासन तथा संगमर्मर की प्रतिमा के रूप में उनकी स्मृति सुरक्षित है ।
ऐसे महापुरुष की यह जीवनी मेरे जैसे अकिंचन शिष्य का क्षुद्र प्रयासमात्र है । पाठकों, विशेषत साधकों के लिए पुस्तक की उपयोगिता को बढाने के विचार से पुस्तक के दूसरे खण्ड में दिव्यकथा के अन्तर्गत श्री विशुद्धानन्द परमहंसदेव के अमूल्य उपदेशों के कुछ अंश प्रस्तुत किये गये हैं । स्वामीजी प्रत्यक्षवादी थे । उनका कहना था कि जब तक कोई तत्व प्रत्यक्ष न किया जाए और उसे दूसरे को प्रत्यक्ष न कराया जा सके तब तक उसमें पूर्ण विश्वास नहीं हो सकता । विभूति प्रदर्शन का उद्देश्य मात्र इतना ही था । कर्म करने पर वे बहुत जोर देते थे । सदा कहते कर्मेभ्यो नम कर्म करो, कर्म करो । शरीर में रहते हुए कर्म करना ही पड़ेगा इससे छुटकारा नहीं । अत ऐसा कर्म करो जिससे कर्म बन्धन सदा के लिए क्षीण हो जाए और ऐसा कर्म है योगाभ्यास क्रिया । क्रिया के माध्यम से ही मोह निद्रा से छुटकारा मिलेगा ।
आशा है पाठकों को पुस्तक से उपयुक्त प्रेरणा मिलेगी । पुस्तक के सम्पादन में मुझे डॉ० बदरीनाथ कपूर एम०ए० पीएच० डी० से उपयुक्त सहायता प्राप्त हुई है जिसके लिए मैं उनका अत्यन्त अनुगृहीत हूँ ।
विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी के संचालक, श्री पुरुषोत्तमदास मोदी विशेष धन्यवाद के पात्र है जिन्होंने इतने अल्प समय में पुस्तक को सुचारु रूप में प्रकाशित कर दिया ।
खण्ड एक |
|||
जीवन कथा |
|||
विषय |
|||
प्रथम |
बाल्यावस्था |
1 |
|
द्वितीय |
जीवन दिशा में आमूल परिवर्तन |
11 |
|
तृतीय |
ज्ञानगंज यात्रा |
16 |
|
चतुर्थ |
दीक्षा के बाद भोलानाथ का अध्ययन क्रम |
20 |
|
पंचम |
योग तथा विज्ञान |
25 |
|
षष्ठ |
विशुद्धानन्दजी की साधना तथा योगशक्ति |
32 |
|
सप्तम |
विशुद्धानन्द दण्डी स्वामी तथा संन्यासी जीवन |
37 |
|
अष्टम |
संन्यासी श्री विशुद्धानन्द लौकिक कर्म क्षेत्र में |
40 |
|
नवम |
विशुद्धानन्दजी का विवाह |
44 |
|
दशम |
गुष्करा का निवास काल |
47 |
|
एकादश |
बर्दवान का निवास काल |
57 |
|
दूदाश |
आश्रमों की स्थापना |
60 |
|
त्रयोदश |
योगिराज विशुद्धानन्द परमहंसदेव का व्यक्तित्व तथा विशिष्ट उपदेश |
66 |
|
चतुर्दश |
परमहंसजी के कुछ अद्भुत कार्य तथा घटनाएँ |
73 |
|
परिशिष्ट 1 |
ज्ञानगंज योगाश्रम 81 से 86 |
||
परिशिष्ट 2 |
अधिकारी शिष्यों के संस्मरण |
87 |
|
वे गुरु चरणम० म० पं० गोपीनाथ कविराज |
87 |
||
गुरुदेव की स्मृति में श्री मुनीन्द्रमोहन कविराज |
115 |
||
गुरु स्मृति श्री गौरीचरण राय |
126 |
||
देहत्याग के बाद श्री सुबोधचन्द्र रावत |
130 |
||
श्रीगुरुकृपा स्मृति श्री जीवनधन गांगुली |
134 |
||
लौकिक अलौकिकडाँ० सुरेशचन्द्रदेव डी० एस० सी० |
137 |
||
बाबा विशुद्धानन्द स्मृति श्री अमूल्यकुमार दत्त गुप्त |
139 |
||
श्री देवकृष्ण त्रिपाठी के संस्मरण |
151 |
||
श्री फणिभूषण चौधरी के |
153 |
||
श्री नरेन्द्रनाथ वन्धोपाध्याय के |
156 |
||
श्री उमातारा दासी के |
158 |
||
परिशिष्ट 3 |
विविध संस्मरण |
159 |
|
महाभारत काल के अग्निबाण का प्रत्यक्ष प्रदर्शन |
159 |
||
गुरुदर्शन, गुरुकृपा श्री इन्दुभूषण मुखर्जी |
160 |
||
श्री निकुंजबिहारी मित्र के संस्मरण |
161 |
||
श्री सच्चिदानन्द चौधरी के |
164 |
||
श्री नेपालचन्द्र चटर्जी के |
167 |
||
श्री मन्मथनाथ सेन के |
168 |
||
श्री मोहिनीमोहन सान्याल के |
171 |
||
श्री ज्योतिर्मय गांगुलि के |
177 |
||
श्री गिरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय के |
180 |
||
डॉ० नृपेन्द्रमोहन मुखर्जी के. |
182 |
||
श्री प्रियानाथ दे, एम० ए०, बी०एल० के |
182 |
||
बनारस का मायावीडॉ० पाल ब्रन्टन |
184 |
||
राय साहब श्री अक्षयकुमार दत्त गुप्त के |
190 |
||
दिव्यपुरुष श्री सुबोधचन्द्र रक्षित |
195 |
||
तिरोधान के अनन्तर घटित कुछ लीलाएँ श्री गोपीनाथ क० |
198 |
||
बेले की माला को चम्पे की माला में बदल देना |
204 |
||
झाल्दा के राजा उद्धवचन्द्र सिंह की दुर्घटना से रक्षा |
205 |
||
गुरुभगिनी के पुत्र की कटी उँगली को जोड़ना |
205 |
||
श्री श्यामागति रॉय चौधरी की प्राणरक्षा हेतु रेलगाड़ी |
206 |
||
श्री जगदानन्द गोस्वामी की चीते से जीवनरक्षा |
207 |
||
बेला के फूलों का स्फटिक में परिवर्तन |
207 |
||
गुरुदेव की आकाशगमन की शक्ति |
207 |
||
मन के भाव जान लेने की घटना |
208 |
||
शास्त्रों के कथन अक्षरश सत्य हैं दो प्रत्यक्ष प्रमाण |
209 |
||
परिशिष्ट 4 |
श्री नन्दलाल गुप्त (लेखक) के निजी अनुभव |
211 |
|
परिशिष्ट 5 |
सूर्यविज्ञान तत्त्व |
218 234 |
|
खण्ड दो |
|||
दिव्यकथा |
|||
1 |
अतृप्ति और आकाक्षा, अभाव, आश्रय आसन |
236 |
|
2 |
अहं ब्रह्मास्मि |
237 |
|
3 |
आनन्द, आत्मा इष्ट देवता, ऐश्वर्य |
238 |
|
4 |
उपादान संग्रह तथा उपादान शुद्धि, उपलब्धि |
239 |
|
5 |
कर्त्तव्य (सांसारिक), कार्य किस प्रकार से होता है? कर्म ज्ञान और भक्ति |
240 |
|
6 |
कीर्तन क्रिया |
241 |
|
7 |
कृपा |
242 |
|
8 |
काम, क्रोधादि रिपु |
243 |
|
9 |
कर्म योग |
244 |
|
10 |
कर्म जीवन तथा साधन जीवन, गुरु की आवश्यकता |
246 |
|
11 |
सद्गुरु तथा गुरुतत्व |
247 |
|
12 |
चेष्टा, चित्त, चित्त चांचल्य तथा मन |
249 |
|
13 |
चित् शक्ति, जड़ प्रकृति, ज्ञान, जप, जीव और स्वभाव |
250 |
|
14 |
जीव, जगत् और ईश्वर, त्याग |
252 |
|
15 |
दीक्षा तत्त्व |
253 |
|
16 |
दान |
254 |
|
17 |
दैव (प्रारब्ध) तथा पुरुषकार (पुरुषार्थ, चेष्टा),दुष्प्रवृत्ति (जीव का नीच भाव) |
255 |
|
18 |
दु ख, ॐ दुर्गा बोधन |
256 |
|
19 |
धर्म भित्ति तथा धर्म जीवन, नभि धौति, प्राणायाम तथा कुम्भक |
257 |
|
20 |
ध्यान, निष्काम कर्म तथा पुरुषकार (चेष्टा, पुरुषार्थ), |
259 |
|
नित्य तथा अनित्य कर्म, नाभि में मन्त्र की प्रत्यक्षता |
|||
21 |
निर्भवना, निर्वण, निर्भरता, वैराग्य तथा शान्ति |
260 |
|
22 |
परमात्मा, परमानन्द |
261 |
|
23 |
प्रणव तथा बीज, प्राक्तन (प्रारब्ध) कर्म, पाप |
262 |
|
24 |
पुरुषकार (पुरुषार्थ, चेष्टा), प्रेम |
263 |
|
25 |
पूजा, वासना, ब्रह्मपथ |
264 |
|
26 |
विवेक, विवाह संस्कार |
265 |
|
27 |
भगवान्, भक्ति, भालोबाशा (वैषयिक) |
266 |
|
28 |
महाशक्ति |
267 |
|
29 |
मनुष्ययोनि तथा पशुयोनि और बलि, महापुरुष एवं योगी के बाह्य लक्षण |
268 |
|
30 |
मन देह, मन और आत्मा, मन्द कार्य |
271 |
|
31 |
युक्तावस्था, मुक्ति |
272 |
|
32 |
मोक्ष, मन्त्र क्या है तथा उसकी आवश्यकता |
273 |
|
33 |
मन्त्र तथा बीज |
274 |
|
34 |
मन्त्र शक्ति, मन्त्र और देवता का विचार |
275 |
|
35 |
मन की शुष्कता, मृत्यु क्या है? |
276 |
|
36 |
योग, योगी तथा युक्तावस्था |
277 |
|
37 |
योग विभूति |
278 |
|
38 |
द्र योगाभ्यास, लिंग शरीर |
279 |
|
39 |
स्थूल, लिंग, सूक्ष्म तथा चैतन्य |
281 |
|
40 |
वासना का त्याग, विश्वास, शक्ति |
282 |
|
41 |
शास्त्र अलग अलग कैसे? शान्ति, शिष्य के साथ गुरु का सम्बन्ध, श्वास क्रिया, संन्यास तथा त्याग |
283 |
|
42 |
साधना का मूल, साधना में विघ्न |
284 |
|
43 |
सिद्धि |
285 |
|
44 |
विभिन्न प्रकार की सिद्धियों |
286 |
|
45 |
स्थूल नाश, समाधि |
287 |
|
46 |
विविध प्रसंग |
288 |
|
परिशिष्ट |
|||
47 |
नवमुण्डी सिद्धासन |
308 |
|
48 |
श्री विशुद्धानन्दाय नवरत्नमाला |
311 |
|
प्रस्तावना
सूर्यविज्ञान प्रणेता योगिराजाधिराज स्वामी विशुद्धानन्द परमहंसदेव एक आदर्श योगी, ज्ञानी, भक्त तथा सत्य संकल्प महात्मा थे । परमपथ के इस प्रदर्शक ने योग तथा विज्ञान दोनों ही विषयों में परमोच्च स्थिति प्राप्त कर ली थी । शाखों के गुह्यतम रहस्यों को वे अपनी अचिन्त्य विभूति के बल से, योग्य अधिकारियों को प्रत्यक्ष प्रदर्शित करके समझाने तथा उनके सन्देहों का समाधान करने में पूर्णरूपेण समर्थ थे । इस प्रकार से उनका जीवन अलौकिक था।
ऐसे सिद्ध महापुरुष की जीवनी प्रस्तुत करना सहज नहीं है । गुरुदेव के श्रीचरणों में बैठने का तथा उनकी कृपा का कतिपय सौभाग्य तथा अन्य गुरुभाइयों और भक्तों से गुरु विषयक वार्त्तालाप का सौजन्य मुझे अवश्य प्राप्त हुआ है । गुरुदेव के सान्निध्य उनकी कृपा एवं शिष्यों तथा भक्तों के संस्मरणों से प्रेरित होकर, हिन्दी भाषा प्रेमियों की गुरुदेव के विषय में जानने की उत्कण्ठा की पूर्ति के हेतु, मैंने गुरुदेव की यह जीवनी प्रस्तुत करने का प्रयास किया है । यह क्रमबद्ध न होकर उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं का एक संग्रहमात्र है जो उनकी अलौकिक शक्तियों तथा उनके उपदेशों का अल्प सा परिचय प्रस्तुत करती है।
इन महापुरुष को अनेक योग सिद्धियाँ प्राप्त थीं जिससे प्रकृति, काल और स्थान सब उनकी इच्छा शक्ति के अनुचर थे । साथ ही साथ विज्ञान की भूमि में भी इनकी उपलब्धि इतनी असाधारण थी कि सूर्य की उपयुक्त रश्मियों को आतिशी शीशे द्वारा, रुई आदि पर संकेन्द्रित करके वे मनोवांछित धातुओं, मणियों तथा अन्य पदार्थों का सृजन तथा एक वस्तु को दूसरी में परिवर्तित भी कर देते थे ।
काशी के मलदहिया मुहल्ले में उन्होंने विशुद्धानन्द कानन आश्रम स्थापित किया जो अनेक वर्षों तक उनकी लीलाओं का कर्म स्थल रहा । वहाँ आज भी उनके द्वारा स्थापित प्रसिद्ध नवमुण्डी सिद्धासन तथा संगमर्मर की प्रतिमा के रूप में उनकी स्मृति सुरक्षित है ।
ऐसे महापुरुष की यह जीवनी मेरे जैसे अकिंचन शिष्य का क्षुद्र प्रयासमात्र है । पाठकों, विशेषत साधकों के लिए पुस्तक की उपयोगिता को बढाने के विचार से पुस्तक के दूसरे खण्ड में दिव्यकथा के अन्तर्गत श्री विशुद्धानन्द परमहंसदेव के अमूल्य उपदेशों के कुछ अंश प्रस्तुत किये गये हैं । स्वामीजी प्रत्यक्षवादी थे । उनका कहना था कि जब तक कोई तत्व प्रत्यक्ष न किया जाए और उसे दूसरे को प्रत्यक्ष न कराया जा सके तब तक उसमें पूर्ण विश्वास नहीं हो सकता । विभूति प्रदर्शन का उद्देश्य मात्र इतना ही था । कर्म करने पर वे बहुत जोर देते थे । सदा कहते कर्मेभ्यो नम कर्म करो, कर्म करो । शरीर में रहते हुए कर्म करना ही पड़ेगा इससे छुटकारा नहीं । अत ऐसा कर्म करो जिससे कर्म बन्धन सदा के लिए क्षीण हो जाए और ऐसा कर्म है योगाभ्यास क्रिया । क्रिया के माध्यम से ही मोह निद्रा से छुटकारा मिलेगा ।
आशा है पाठकों को पुस्तक से उपयुक्त प्रेरणा मिलेगी । पुस्तक के सम्पादन में मुझे डॉ० बदरीनाथ कपूर एम०ए० पीएच० डी० से उपयुक्त सहायता प्राप्त हुई है जिसके लिए मैं उनका अत्यन्त अनुगृहीत हूँ ।
विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी के संचालक, श्री पुरुषोत्तमदास मोदी विशेष धन्यवाद के पात्र है जिन्होंने इतने अल्प समय में पुस्तक को सुचारु रूप में प्रकाशित कर दिया ।
खण्ड एक |
|||
जीवन कथा |
|||
विषय |
|||
प्रथम |
बाल्यावस्था |
1 |
|
द्वितीय |
जीवन दिशा में आमूल परिवर्तन |
11 |
|
तृतीय |
ज्ञानगंज यात्रा |
16 |
|
चतुर्थ |
दीक्षा के बाद भोलानाथ का अध्ययन क्रम |
20 |
|
पंचम |
योग तथा विज्ञान |
25 |
|
षष्ठ |
विशुद्धानन्दजी की साधना तथा योगशक्ति |
32 |
|
सप्तम |
विशुद्धानन्द दण्डी स्वामी तथा संन्यासी जीवन |
37 |
|
अष्टम |
संन्यासी श्री विशुद्धानन्द लौकिक कर्म क्षेत्र में |
40 |
|
नवम |
विशुद्धानन्दजी का विवाह |
44 |
|
दशम |
गुष्करा का निवास काल |
47 |
|
एकादश |
बर्दवान का निवास काल |
57 |
|
दूदाश |
आश्रमों की स्थापना |
60 |
|
त्रयोदश |
योगिराज विशुद्धानन्द परमहंसदेव का व्यक्तित्व तथा विशिष्ट उपदेश |
66 |
|
चतुर्दश |
परमहंसजी के कुछ अद्भुत कार्य तथा घटनाएँ |
73 |
|
परिशिष्ट 1 |
ज्ञानगंज योगाश्रम 81 से 86 |
||
परिशिष्ट 2 |
अधिकारी शिष्यों के संस्मरण |
87 |
|
वे गुरु चरणम० म० पं० गोपीनाथ कविराज |
87 |
||
गुरुदेव की स्मृति में श्री मुनीन्द्रमोहन कविराज |
115 |
||
गुरु स्मृति श्री गौरीचरण राय |
126 |
||
देहत्याग के बाद श्री सुबोधचन्द्र रावत |
130 |
||
श्रीगुरुकृपा स्मृति श्री जीवनधन गांगुली |
134 |
||
लौकिक अलौकिकडाँ० सुरेशचन्द्रदेव डी० एस० सी० |
137 |
||
बाबा विशुद्धानन्द स्मृति श्री अमूल्यकुमार दत्त गुप्त |
139 |
||
श्री देवकृष्ण त्रिपाठी के संस्मरण |
151 |
||
श्री फणिभूषण चौधरी के |
153 |
||
श्री नरेन्द्रनाथ वन्धोपाध्याय के |
156 |
||
श्री उमातारा दासी के |
158 |
||
परिशिष्ट 3 |
विविध संस्मरण |
159 |
|
महाभारत काल के अग्निबाण का प्रत्यक्ष प्रदर्शन |
159 |
||
गुरुदर्शन, गुरुकृपा श्री इन्दुभूषण मुखर्जी |
160 |
||
श्री निकुंजबिहारी मित्र के संस्मरण |
161 |
||
श्री सच्चिदानन्द चौधरी के |
164 |
||
श्री नेपालचन्द्र चटर्जी के |
167 |
||
श्री मन्मथनाथ सेन के |
168 |
||
श्री मोहिनीमोहन सान्याल के |
171 |
||
श्री ज्योतिर्मय गांगुलि के |
177 |
||
श्री गिरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय के |
180 |
||
डॉ० नृपेन्द्रमोहन मुखर्जी के. |
182 |
||
श्री प्रियानाथ दे, एम० ए०, बी०एल० के |
182 |
||
बनारस का मायावीडॉ० पाल ब्रन्टन |
184 |
||
राय साहब श्री अक्षयकुमार दत्त गुप्त के |
190 |
||
दिव्यपुरुष श्री सुबोधचन्द्र रक्षित |
195 |
||
तिरोधान के अनन्तर घटित कुछ लीलाएँ श्री गोपीनाथ क० |
198 |
||
बेले की माला को चम्पे की माला में बदल देना |
204 |
||
झाल्दा के राजा उद्धवचन्द्र सिंह की दुर्घटना से रक्षा |
205 |
||
गुरुभगिनी के पुत्र की कटी उँगली को जोड़ना |
205 |
||
श्री श्यामागति रॉय चौधरी की प्राणरक्षा हेतु रेलगाड़ी |
206 |
||
श्री जगदानन्द गोस्वामी की चीते से जीवनरक्षा |
207 |
||
बेला के फूलों का स्फटिक में परिवर्तन |
207 |
||
गुरुदेव की आकाशगमन की शक्ति |
207 |
||
मन के भाव जान लेने की घटना |
208 |
||
शास्त्रों के कथन अक्षरश सत्य हैं दो प्रत्यक्ष प्रमाण |
209 |
||
परिशिष्ट 4 |
श्री नन्दलाल गुप्त (लेखक) के निजी अनुभव |
211 |
|
परिशिष्ट 5 |
सूर्यविज्ञान तत्त्व |
218 234 |
|
खण्ड दो |
|||
दिव्यकथा |
|||
1 |
अतृप्ति और आकाक्षा, अभाव, आश्रय आसन |
236 |
|
2 |
अहं ब्रह्मास्मि |
237 |
|
3 |
आनन्द, आत्मा इष्ट देवता, ऐश्वर्य |
238 |
|
4 |
उपादान संग्रह तथा उपादान शुद्धि, उपलब्धि |
239 |
|
5 |
कर्त्तव्य (सांसारिक), कार्य किस प्रकार से होता है? कर्म ज्ञान और भक्ति |
240 |
|
6 |
कीर्तन क्रिया |
241 |
|
7 |
कृपा |
242 |
|
8 |
काम, क्रोधादि रिपु |
243 |
|
9 |
कर्म योग |
244 |
|
10 |
कर्म जीवन तथा साधन जीवन, गुरु की आवश्यकता |
246 |
|
11 |
सद्गुरु तथा गुरुतत्व |
247 |
|
12 |
चेष्टा, चित्त, चित्त चांचल्य तथा मन |
249 |
|
13 |
चित् शक्ति, जड़ प्रकृति, ज्ञान, जप, जीव और स्वभाव |
250 |
|
14 |
जीव, जगत् और ईश्वर, त्याग |
252 |
|
15 |
दीक्षा तत्त्व |
253 |
|
16 |
दान |
254 |
|
17 |
दैव (प्रारब्ध) तथा पुरुषकार (पुरुषार्थ, चेष्टा),दुष्प्रवृत्ति (जीव का नीच भाव) |
255 |
|
18 |
दु ख, ॐ दुर्गा बोधन |
256 |
|
19 |
धर्म भित्ति तथा धर्म जीवन, नभि धौति, प्राणायाम तथा कुम्भक |
257 |
|
20 |
ध्यान, निष्काम कर्म तथा पुरुषकार (चेष्टा, पुरुषार्थ), |
259 |
|
नित्य तथा अनित्य कर्म, नाभि में मन्त्र की प्रत्यक्षता |
|||
21 |
निर्भवना, निर्वण, निर्भरता, वैराग्य तथा शान्ति |
260 |
|
22 |
परमात्मा, परमानन्द |
261 |
|
23 |
प्रणव तथा बीज, प्राक्तन (प्रारब्ध) कर्म, पाप |
262 |
|
24 |
पुरुषकार (पुरुषार्थ, चेष्टा), प्रेम |
263 |
|
25 |
पूजा, वासना, ब्रह्मपथ |
264 |
|
26 |
विवेक, विवाह संस्कार |
265 |
|
27 |
भगवान्, भक्ति, भालोबाशा (वैषयिक) |
266 |
|
28 |
महाशक्ति |
267 |
|
29 |
मनुष्ययोनि तथा पशुयोनि और बलि, महापुरुष एवं योगी के बाह्य लक्षण |
268 |
|
30 |
मन देह, मन और आत्मा, मन्द कार्य |
271 |
|
31 |
युक्तावस्था, मुक्ति |
272 |
|
32 |
मोक्ष, मन्त्र क्या है तथा उसकी आवश्यकता |
273 |
|
33 |
मन्त्र तथा बीज |
274 |
|
34 |
मन्त्र शक्ति, मन्त्र और देवता का विचार |
275 |
|
35 |
मन की शुष्कता, मृत्यु क्या है? |
276 |
|
36 |
योग, योगी तथा युक्तावस्था |
277 |
|
37 |
योग विभूति |
278 |
|
38 |
द्र योगाभ्यास, लिंग शरीर |
279 |
|
39 |
स्थूल, लिंग, सूक्ष्म तथा चैतन्य |
281 |
|
40 |
वासना का त्याग, विश्वास, शक्ति |
282 |
|
41 |
शास्त्र अलग अलग कैसे? शान्ति, शिष्य के साथ गुरु का सम्बन्ध, श्वास क्रिया, संन्यास तथा त्याग |
283 |
|
42 |
साधना का मूल, साधना में विघ्न |
284 |
|
43 |
सिद्धि |
285 |
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44 |
विभिन्न प्रकार की सिद्धियों |
286 |
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45 |
स्थूल नाश, समाधि |
287 |
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46 |
विविध प्रसंग |
288 |
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परिशिष्ट |
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47 |
नवमुण्डी सिद्धासन |
308 |
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48 |
श्री विशुद्धानन्दाय नवरत्नमाला |
311 |
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