डॉ. मन्जू कोगियाल
जन्म तिथि-स्थान: 31 दिसम्बर 1982 उत्तरकाशी जनपद के बड़ेथी गांव (उत्तराखण्ड)
शिक्षा
: हिंदी विषय में एम० ए० (2007), नेट (2007) तथा पी.एच. डी (2017)
लेखन कार्य
अधिक लेख एवं शोधलेख प्रकाशित ।
विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 52 से मां, खुद को संभालो नौजवानों, नारी, पिता, जीवन संगीत, जब गए प्रवास तुम, कसम प्रीत की है, मैं पहाड़ हूं, तुम्हारी मखमली यादें इत्यादि नामक कविताएं प्रकाशित।
साहित्य कुंज तथा नवउदय पत्रिका में
अन्य : आकाशवाणी दूरदर्शन केन्द्र देहरादून में विभिन्न विषयों पर रेडियो वार्ताओं का प्रसारण।
पुस्तक 'आंचलिक उपन्यासों के पात्रों का जीवन संघर्ष' ग्रामीण अंचल के पात्रों के अभिशप्त जीवन की गाथा है। पहाड़ी अंचल हमारी संस्कृति के परिचायक होते हैं जो इस पुस्तक के माध्यम से चित्रित हुआ है। आंचलिक उपन्यासों में चित्रित पात्रों की सामाजिक, राजनीतिक जीवन तथा उनके बीच पारस्परिक संबंधों, उनकी परम्पराओं, धार्मिक विश्वासों तथा जीवन संघर्षों का दस्तावेज है। आंचलिक उपन्यास एक अंचल विशेष के जीवन सत्यों एवं विकास संघर्षों को जीवन्तता प्रदान करते हैं किंतु उनमें संकीर्णता नहीं होती है। हिंदी के प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यासकारों में नागार्जुन, फणीश्वरनाथ रेणु, रांगेय राघव, राजेन्द्र अवस्थी, रामदरश मिश्र, गिरिराज किशोर, श्रीलाल शुक्ल, विद्यासागर नौटियाल, हिमांशु जोशी, मन्नू भण्डारी, कृष्णा सोबती, मैत्रेयी पुष्पा, भैरव प्रसाद गुप्त, राही मासूम रज़ा आदि हैं। एक ओर जहां कब तक पुकारू में करनट जाति के जीवन का मार्मिक चित्रण हुआ है वहीं दूसरी तरफ गोमती के रूप में हिमांशु जोशी ने एक ऐसी पत्नी की कहानी को उद्घाटित किया है जो अपने बीमार पति के लिए दूसरों का पैसा तथा वैभव शिकार दिन-रात मेहनत करके उसके पास आने को तरसती है। इस उपन्यास में गोमती पिरमा, कुन्नू के रूप में संत्रस्त मानव समाज के अनेक चित्र उद्घाटित हुए है। ये आंचलिक उपन्यास न केवल आधुनिक समाज बल्कि परम्परावादी समाज की जीवन गाथा को भी प्रस्तुत करते हैं। इस पुस्तक का आधार सन् 1936 के बाद लिखे गए ग्राम केन्द्रित तथा ग्राम प्रधान आंचलिक उपन्यासों को बनाया गया है।
आंचलिक उपन्यास में अंचल विशेष के वैशिष्ट्य का निरूपण होता है। इस दृष्टि से अंचल विशेष ही नायक के रूप में उभर कर सामने आता है न कि कोई व्यक्ति। यह अलग बात है कि उसमें चित्रित परिवेश में अनेक पात्र-चरित्र, रीति-रिवाज, खान-पान, रहन सहन, का वर्णन सहज है। परिवेश के दृष्यांकन की दृष्टि से पात्रों और चरित्रों के वैशिष्ट्य को उभरने में कलात्मक कौशल की अपेक्षा होती है।
आंचलिक उपन्यास वैश्विक स्तर पर व्यक्तिवादी अथवा व्यक्ति केंद्रित साहित्य के समक्ष एक आंदोलन के रूप आया। भारत में विशेष रूप से हिंदी में भी आंचलिक उपन्यास लिखे गए और इन उपन्यासों ने हिंदी जगत में अपनी एक गहरी छाप छोड़ी है। उपन्यासकारों ने एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र को केंद्र में रखकर उपन्यासों का लेखन किया है।
फणीश्वर नाथ 'रेणु' का मैला आंचल, परती परिकथा, दीर्घतपा, जुलूस, कितने चौराहे, पलटू बाबू रोड, नागार्जुन का बलचनवा, दुःख मोचन, वरुण के बेटे, उदयशंकर भट्ट का सागर की लहरें, राही मासूम रज़ा का आधा गांव, रांगेय राघव का कब तक पुकारूं, और राम दरश मिश्र का पानी का प्राचीर, जल टूटता हुआ आदि महत्वपूर्ण हैं।
इस पुस्तक का संयोजन करते हुए डॉ. मंजू कोगियाल ने अत्यंत गंभीरता से कार्य किया है उन्होंने आंचलिक उपन्यासों के परिवेश का मूल्यांकन उनके पात्रों और चरित्रों के माध्यम से अत्यंत बारीकी से किया है। इस निमित्त उन्होंने ग्राम प्रधान और ग्राम केंद्रित श्रेणी में उपन्यासों का विभाजन भी किया है।
मंजू जी ने निराला, नागार्जुन, रेणु, रांगेय राघव, भैरव प्रसाद गुप्त, राम दरश मिश्र, शैलेश मटियानी, राही मासूम रज़ा, श्रीलाल शुक्ल, कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी, गिरिराज किशोर, हिमांशु जोशी, मैत्रेयी पुष्पा और बिद्या सागर नौटियाल आदि के ग्राम एवं अंचल विशेष केंद्रित उपन्यासों के प्रमुख नारी एवं पुरुष पात्रों के वैशिष्ट्य और उपन्यासों की महत्ता को रेखांकित किया है। डॉ. मंजू कोगियाल एक संवेदनशील कवयित्री और रचनाकार हैं। इसीलिए उन्होंने अत्यंत कौशल से आंचलिक उपन्यासों में निहित वैशिष्ट्य को रेखांकित किया है जो श्लाघ्य है।
मुझे पूरा विश्वास है कि हिन्दी के विद्वतजनों, सुधी पाठकों, विद्यार्थियों और शोधार्थियों के बीच यह पुस्तक निश्चित रूप से समादृत होगी।
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