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मुण्डारी भाषा का भाषिक संरचना- Linguistic structure of Mundari language

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Specifications
Publisher: Satyam Publishing House, New Delhi
Author Birendra Kumar Soy Munda
Language: Hindi
Pages: 226
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
Weight 420 gm
Edition: 2025
ISBN: 9789385981173
HBU645
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Book Description

प्राक्कथन

मुण्डाओं की भाषा मुण्डारी, ऑस्ट्रिक कुल के ऑस्ट्रोएशियाटिक शाखा के अन्तर्गत आती है जो मेडागास्कर से प्रशांत महासागर के इस्टर नामक द्वीप तक फैली हुई है। मैक्समूलर, फेडरिक मिलर, डब्ल्यू.जी. आर्चर, फा. जॉन हॉफमैन, रेयनोत्रोत, लैमेनदोन, स्मिट, केनेडी, ह्विटली जे.सी., जेम्स हेवर्द, पी. पोनेट, नॉरमन जाइड, तोशिकी ओसादा, जी; डिपलोथ, शरतचन्द्र राय, एम.वी. भादुड़ी, जगदीश त्रिगुणायत, स्वर्णलता प्रसाद, रोमिला थापर, गोर्डन चाइल्ड, हेरोल्ड हवीलर, डॉ. एस.एम. पाठक, पी.डब्ल्यू समिट, विलियम एथ लांगू, एल.पी. विद्यार्थी, कुमार सुरेश सिंह, एच.एच. रिजले, एन.के. सिन्हा, सच्चिदानंद, जियाउद्दीन अहमद, डी.एन. मजुमदार, दाउद दयाल सिंह होरो, निरमल सोय, जयपाल सिंह मुण्डा, भैयायराम मुण्डा, बलदेव मुण्डा, दुलाम चन्द्र मुण्डा, रामदयाल मुण्डा, सुलेमान बडिंग, दिवर हंस, सागु मुण्डा, मनमसीह मुण्डू, काशीनाथ सिंह मुण्डा 'काण्डे', मेनस राम ओड़ेया, पी.एन.जे. पूर्ती, लॉरेन्स सिलास हेम्बरोम, विशु लकड़ा, निकोदिम केरकेट्टा, जुसब कन्डुलना, बीरेन्द्र कुमार सोय, भीमा हेरेंज, प्रो. लगनी हेरेंज आदि ने मुण्डा एवं मुण्डारी भाषा व साहित्य पर कई महत्वपूर्ण कार्य किये हैं।

प्रथम अध्याय में राज्य में प्रादेशिक भाषा की मान्यता, भाषा परिवर्तन के तत्व या कारक, क्षेत्रीय रूपों का विकास, ग्रामीण, हाट, शहर, भाषा उपयोग करने का नमूना, विभिन्न योजना, मुण्डारी भाषा के क्षेत्रीय रूपों की तुलना पर विशेष अध्ययन किया गया है। अनुसंधान के द्वितीय अध्याय में भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मुण्डारी भाषा के क्षेत्रीय रूपों की भाषिक संरचना पर प्रकाश डाला गया है। भाषिक संरचना को अध्ययन के लिए भाषा विज्ञान के पक्षों जिसमें वर्णनात्मक, ऐतिहासिक, तुलनात्मक, सामाजिक, सांस्कृतिक भाषा विज्ञान पर संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत है। भाषिक संरचना के ध्वनि, शब्द, समास, वाक्य, अर्थ संरचना पर अध्ययन प्ररूतुत किया गया है। तृतीय अध्याय में मुण्डारी भाषा का मानक स्वरूप निर्धारण व अन्तः क्षेत्रीय भाषिक संबंध के अन्तर्गत पाश्चात्य विद्वानों द्वारा मुण्डारी भाषा लेखन की शुरूआत रोमन लिपि में की गई। इस अवधि में शासन की सहजता एवं ईसाईयत का प्रचार दोनों को ध्यान में रखकर पाश्चात्य विद्वानों ने यहां की भाषाओं का अध्ययन किया। भारतीय विद्वानों ने भी मुण्डारी भाषा के विभिन्न पक्षों पर अध्ययन प्रस्तुत किया है। साथ ही मुण्डा समुदाय के विद्वानों द्वारा भी मुण्डारी भाषा पर कई महत्वपूर्ण कार्य हुए हैं। इस अध्याय में लेखक एवं उनके द्वारा प्रयोग में लाये गये स्वर, व्यंजन वर्णों पर प्रकाश डाला है। शब्द द्वारा तुलना, वाक्य द्वारा तुलना कर एक रूप दर्शाने का प्रयास किया है। अनुसंधान चतुर्थ अध्याय में मैने मुण्डारी भाषा तब और अब पर वर्णन प्ररूतुत किया है। पूर्व के दिनों के प्रचलित मुण्डारी भाषा सरकारी संरक्षण के प्रावधान से संबंधित कार्यालयादेश का पत्रांक संख्या और वर्त्तमान में उसका अनुपालन आदि तथ्यों पर प्रकाश डाला है। साथ ही उसकी दिशा और दशा के पक्षों को दिखाने या लाने का प्रयास किया गया है। मुण्डारी भाषा के विभिन्न रूपों में बहुत सारी ऐसी विशेषताएँ है जो लोगों को एकसूत्र में बांधती है। इन सूत्रों के माध्यम से सामाजिक, भाषिक, सांस्कृतिक उत्थान की बात सामूहिक रूप से होती है। प्रस्तुत अनुसंधान का संबंध सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक, राजनीतिक, भाषिक व साहित्यिक एकता से है। इसका उद्देश्य भाषिक परिवर्तन की वास्तविकता को क्रमबद्ध वस्तुनिष्ठ रूप से समझना है। साथ ही साथ ज्ञान को व्यवहारिक जीवन में पायी जाने वाली समस्याओं के समाधान के लिए प्रयुक्त करना भी है।

अनुसंधान के क्रम में कई बार मुझे मार्गदर्शन एवं परामर्श की आवश्यकता हुई थी पर क्रमबद्ध रूप से अध्ययन के उपरांत यह दूर हुई। अनुसंधान के सफलता पूवर्क सम्पन्न होने में आदरणीय शोध निदेशक, समाज के विद्वानगण, साहित्यकार, भाषा सेवीगण, पुस्तकों को उपलब्ध कराने की संस्थानों के पदाधिकारीगण, क्षेत्र परिभ्रमण के दौरान ज्ञानार्जन के सहयोगी माननीय बुजुर्गगण, प्रोत्साहन देने वाले सहयोगी मित्रगणों के सुझावों एवं विचारों से अनुसंधान की परिपूर्णता हुई है।

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