सच है किसी भी कृति की कसौटी परम्परा के परिप्रेक्ष्य में ही संभव है।
लोक कथाजों के तहत परम्परा के विनियोग के साथ मानवीय भावनाओं एवं संवेदनाओं का एक पूरा संसार होता है सुन्दर, उदात्त, मधुर एवं ओजस्वी ।
ध्यातव्य है कि कथा साहित्य की एक ऐसी विधा है जिसके माध्यम से सामान्यजनों में चेतनता सहज रूप से जगायी जाती है। साहित्यकार इस विधा के माध्यम से बहुत बड़े सन्देश, उपदेश एवं प्रेरणापूर्ण शिक्षाएँ सामान्यजनों तक सम्प्रेषित करते है। यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि कथा या कहानी सुनने की ललक मानव में चिर-शाश्वत है। मानव का झुकाव कथा-श्रवण की दिशा में सहजतया केन्द्रित हो जाता है। यही कारण है कि उसी विधा को अपनाकर कवि गुणाढ्य, राजा क्षेमेन्द्र, कवि सोमदेव एवं पंडित विष्णुशर्मा क्रमशः वृहत्कथा, वृहत्कथामंजरी, कथासरित सागर एवं पंचतंत्र के माध्यम से अमर हो गये। आर्य सूर रचित जातकमाला नीतिकथा के रूप हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है।
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