आज का मनुष्य स्वभाव से ही बुद्धिजीवी हो गया है। अतः उसमें बुद्धि के तत्व जैसे विचारोत्तेजन तर्क-मंथन, विश्लेषण, तारतम्य स्थापन, विचारनियोजन आदि तत्व एक साथ कार्य करते हुए दिखाई देते हैं। इसीलिए शॉ ने कहा था कि 20वीं सदी गद्य के लिए प्रख्यात होगी और अच्छा गद्य लिखना अच्छे पद्य लिखने से काफी कठिन है। आधुनिक युग में गद्य की जितनी विधाएँ पनपी हैं, उनमें निबंध का विशिष्ट स्थान है। ऐसा इसलिए कि निबंध में लेखक अपने विचारों, अनुभवों एवं अपनी प्रतिक्रियाओं को अपने ढंग से रख देता है। इसीलिए कभी ऐसा कहा गया था कि यदि गद्य कवियों की कसौटी है तो निबंध गद्य की कसौटी है। चूँकि आज पद्य पढ़ने वालों से गद्य पढ़ने वालों की संख्या अधिक है अतः निबंध को प्राधान्य मिल जाना स्वाभाविक है।
विद्यार्थी जीवन से ही मुझे वैयक्तिक निबंध अधिक प्रिय रहे हैं। प्राध्यापक होने पर इस विधा ने हमें और आकर्षित किया। कक्षाओं में पढ़ाने का भी मौका मिला। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी और विद्यानिवास जी के निबंधों ने मन को खूब रंभाया। लेखक द्वय की प्रतिभा से प्रभावित होकर मैंने हिन्दी के निबंधकारों की रचनाओं को भी देखने का अवसर प्राप्त किया। पुनः मन में यह बात आई कि मराठी के निबंधकारों से हिन्दी के निबंधकारों की तुलना की जाय चूँकि मराठी मेरी मातृभाषा है। अतः भाषा लेखकों के प्रति मेरे मन में रुझान का होना स्वाभाविक था। मराठी साहित्य में निबंधकारों की संख्या कम नहीं है और वैयक्तिक निबंधों में उनकी प्रतिभा की व्युत्पन्नता का स्वरूप दर्शन योग्य है। अतः मराठी के निबंधकारों का हिन्दी के निबंधकारों का तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन अनुशीलन इस पुस्तक का विवेच्य बना है। आचार्य न. किशोर शर्मा ने लिखा है 'हिन्दी में ललित निबंध का 'ललित' शब्द मराठी से ही लिया गया है।
प्रस्तुत शोध ग्रंथ सात अध्यायों में प्रसूत है। पहले अध्याय में गद्य के विविध विधाओं का सक्षिप्त परिचय देते हुए निबंध के महत्व उनके वर्गीकरण के साथ ललित निबंधों की विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है। निबंधों के शिल्प पक्ष पर विशेष विचार आये हैं किन्तु वैयक्तिक निबंधों ने पाठकों का ध्यान विशेष आकृष्ट किया है तथापि गवेषणात्मक दृष्टि से उसका पक्ष अभी अधूरा है। ललित निबंध में लेखक अपनी स्पष्टता अपनी सादगी और सरलता के बल पर संस्मरण सुनने या यात्रा का आनंद देता है। उसकी किस्सागोयी, लतीफागोई और यायावरी वृत्ति पाठकों का विशेष रंजन करती है। हमने इन विशेषताओं को दोनों भाषा के साहित्य में लक्षित किया है।
दूसरे अध्याय में समस्त निबंध साहित्य के उद्भव और विकास के संक्षिप्त इतिहास को सामने रखकर उसके संक्रोड़ में ललित निबंध के उद्भव और विकास को संकेतित करने का प्रयास हुआ है। मुख्य रूप से ललित निबंध का विषय और उसके प्रतिपादन को ही विवेच्य विषय का आधार बनाया गया है।
तीसरे अध्याय में हिन्दी के ललित निबंध और मराठी के ललित निबंधों का विषय और प्रतिपादन की दृष्टि से साम्य और वैषम्य पर विस्तृत चर्चा है। इसी अध्याय में भाषा के स्तर पर भी उस साम्य और वैषम्य को परिभाषित करने का प्रयास है।
चतुर्थ अध्याय हिन्दी के प्रमुख ललित निबंधकारों के परिचय से सम्बद्ध है। इसमें मुख्य रूप से उनका जीवन, साहित्य तथा उन पर पड़े प्रभाव की ही व्याख्या मुख्य रूप से की गई है। प्रमुख निबंधकारों के साथ कुछ गौण निबंधकार भी हमारे अध्ययन की सीमा में प्रवेश पा सके हैं।
पाँचवे अध्याय में हमने समानान्तर रूप से मराठी के प्रमुख ललित निबंधकारों का परिचय देते हुए उनके जीवन साहित्य और उनके साहित्य पर पड़े विशिष्ट प्रभावों को आकलित किया है। वस्तुतः अन्य भारतीय भाषाओं की तरह मराठी में भी निबंध साहित्य की शुरूआत अंग्रेजी सत्ता के पूर्णतः प्रस्थापित हो जाने के बाद ही हुई है। अतः छठे अध्याय में हमने हिन्दी और मराठी के ललित निबंधों के विकास की विविध परिस्थितियों एवं प्रवृत्तियों का विश्लेषण और मूल्यांकन किया है।
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