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प्रेम-विवाह और आपका जीवन: Love Marriage and Your Life

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Specifications
Publisher: Penguin Books India Pvt. Ltd.
Author Cheiro
Language: Hindi
Pages: 159
Cover: PAPERBACK
8x5 inch
Weight 120 gm
Edition: 2025
ISBN: 9780143476313
HBR203
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Book Description

भूमिका

इस विषय से इक्कीस वर्षों से जुड़े रहने के दौरान मैंने जो सफलता प्राप्त की उसका कारण मुख्यतः यह है कि यद्यपि मेरे अध्ययन का मुख्य विषय था- हाथ की रेखाएं और हाथ की बनावट, पर मैंने प्रकृति की पुस्तक में उसी पृष्ठ तक अपने को सीमित नहीं रखा। मैंने उन सब बातों का भी अध्ययन किया जो मानव जीवन पर कुछ प्रकाश डाल सकती थीं। परिणामस्वरूप, त्वचा की लकीरें, हाथ के रोएं आदि सभी का उपयोग इस प्रकार किया गया जैसे कोई जासूस प्रमाण जुटाने के लिए सभी संकेतों का उपयोग करता है। मैंने देखा कि लोगों को इस अध्ययन के बारे में संशय था क्योंकि इस विषय को तर्कसंगत तरीके से प्रस्तुत नहीं किया जाता था।

हाथ से संबंधित सैंकड़ों बातें हैं जिनके बारे में लोगों ने शायद ही कभी सुना हो। यहां उनका जिक्र कर देना असंगत न होगा। उदाहरण के लिए, जिन्हें रक्त की कणिकाएं कहा जाता है उनके बारे में मेनर ने 1853 में यह साबित कर दिया था कि हाथ में सूक्ष्म आणविक तत्त्व एक खास ढंग से बंटे होते हैं। उंगलियों के पोरों में, एक वर्ग लाइन में 108 अणु और 400 'पैपीला' (Pappllae) होते हैं। उनमें एक खास किस्म की थरथराहट या स्पंदन होता है। हाथ की लाल लकीरों में उनकी संख्या सबसे अधिक होती है और विचित्र बात यह है कि हथेली की रेखाओं में वे अलग-अलग सीधी पंक्ति में होती हैं। इन स्पंदनों के अध्ययन से यह पता चला कि हर व्यक्ति के हाथों का यह स्पंदन पहचाना जा सकता है। स्वास्थ्य की विभिन्न अवस्थाओं, विचार और उत्तेजना के साथ वे घटते या बढ़ते हैं और मृत्यु के आगमन पर वे सर्वथा समाप्त हो जाते हैं। करीब बीस वर्ष बाद पेरिस के एक व्यक्ति के साथ कुछ प्रयोग किए गए। उस व्यक्ति की श्रवण-शक्ति असाधारण रूप से तेज़ थी। वह जन्म से अंधा था। सुनने की शक्ति को तेज़ कर के प्रकृति ने अपनी ओर से उसकी उस क्षति की पूर्ति कर दी थी। थोड़े ही समय के अन्दर इस थरथराहट या स्पंदन में ज़रा-सा भी परिवर्तन होता तो वह तुरंत उसे पकड़ लेता और आश्चर्यजनक रूप में सही-सही बता देता कि अमुक व्यक्ति की उम्र क्या है या वह बीमारी या मृत्यु के कितने निकट है।

सन् 1874 में सर चार्ल्स बेल ने यह साबित कर दिया कि हर रक्त-कणिका में स्नायु या नस के तंतु का अंतिम सिरा होता है जो दिमाग के साथ जुड़ा होता है। उस महान् वैज्ञानिक ने यह भी दर्शाया कि दिमाग के हर एक भाग का हाथ की नसों से संपर्क रहता है खासकर उंगलियों के पोरों और हाथ की लकीरों की कणिकाओं से।

पर पूर्वग्रह और पूर्व धारणाओं से लड़ना कठिन है। परिणामस्वरूप, जो अध्ययन मानव जाति की अवर्णनीय सहायता कर सकता था, उसकी आज के युग में उपेक्षा की जा रही है। पर इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि दूसरी सभ्यताओं के कुछ महान् गुरुओं और शिष्यों ने इस अद्भुत विद्या का अध्ययन किया और उसे व्यवहार में लाए।

ये प्राचीन दार्शनिक क्या हमसे ज्यादा ज्ञानी थे? यह दीर्घकाल से एक विवादग्रस्त प्रश्न बना हुआ है। पर सबसे महत्त्वपूर्ण बात जो स्वीकार की जाती है वह यह कि उस समय मानव जाति के अध्ययन का सबसे महत्त्वपूर्ण विषय था मनुष्य। इस कारण यह सोचना तर्कसंगत होगा कि उनके निष्कर्ष हमारे अपने युग, जो मुख्यतः विनाश, युद्ध के जहाजों, बारूद और तोपों के लिए प्रसिद्ध है, के निष्कर्षों से ज़्यादा सही होंगे।

हस्त रेखाओं के अध्ययन का इतिहास सबसे प्राचीन और प्रबुद्ध सभ्यता वाले राष्ट्रों से आरंभ होता है। उन सभ्यताओं के सबसे महान् प्रज्ञापुरुषों ने उसका अध्ययन किया और अपने दार्शनिक विचारों को हमारे लिए विरासत के रूप में छोड़ गए जिस पर हमें आज तक अचंभा होता है। भारत, चीन, ईरान, मिस्र, रोम-मानव जाति के अपने अध्ययन में इन सबने हाथ के अध्ययन को सबसे अधिक महत्त्व दिया।

जब मैं भारत गया था तो कुछ ब्राह्मणों ने (जो जोशी उपजाति के थे और जिनके पूर्वज तांत्रिक विद्याओं के अपने ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे) मुझे इस विषय पर एक असाधारण ग्रंथ के देखने की अनुमति दे दी।

उस ग्रंथ को वे पवित्न मानते थे और वह इसी हिंदुस्तान के महान् अतीत काल का था जिसका तिरस्कार आज किया जाता है।

पर आज इस विद्या का जो स्पष्ट और सुगम रूप है उसका श्रेय यूनानी सभ्यता को जाता है। यूनानी सभ्यता को कई मायनों में संसार की सबसे उच्च और बौद्धिक सभ्यता माना जाता है और वहीं हस्त रेखा शास्त्र या 'कीरोमेसी' (Cheiromancy) (जो यूनानी भाषा के शब्द कीरो (Cheiro) से बना है जिसका अर्थ है हाथ) का विकास हुआ। उसे उन लोगों की स्वीकृति मिली जिन्होंने हमें वह क़ानून और दर्शन दिया है जिसका प्रयोग हम आज करते हैं और जिनकी पुस्तकें सब अग्रणी स्कूलों और कालेजों में पढ़ायी जाती हैं।

यह जानी-मानी बात है कि दार्शनिक एनेक्सागोरस इस विद्या को पढ़ाते ही नहीं थे, उसे व्यवहार में भी लाते थे। हमें पता चला है कि हिस्पेनस को हरनीस (Hernes) की वेदी पर सुनहरे अक्षरों में लिखा एक ग्रंथ मिला जिसका विषय हस्त रेखा शास्त्र (Cheiromancy) था। इसको उसने अलैक्जेंडर महान् को यह कहकर भेंट किया था कि यह ग्रंथ उच्च और जिज्ञासु बुद्धिमान व्यक्ति के लिए ध्यानपूर्वक अध्ययन योग्य है। कमजोर मनवालों ने उसका अनुसरण किया हो, यह बात नहीं है। बल्कि, इसके विपरीत उसके शिष्यों में अरस्तू, प्लीनी, कारडेमिस, अल्बर्ट्स मैग्रस, सम्राट ऑगस्टस और कई अन्य प्रतिष्ठित व्यक्ति थे।

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