पुस्तक के विषय में
माधुर्यकादम् 348;िनी-ग्रन्थ जगत कैल धन्य।
चक्रवर्ती-मुखे वक्ता आपनि श्रीकृष्णचैतन्य।&# 2404;
केह कहेन-चक्रवर्ती श्रीरूपेर अवतार।
कठिन ये त्तव सरल करिते प्रचार।।
ओहे गुणनिधि श्रीविश्वनाथ चक्रवर्ती।
कि जानिव तोमार गुण मुञि मूढ़मति।।
अर्थात् श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुरने माधुर्य-कादम्बिनी ग्रन्थकी रचनाकर समग्र जगतको धन्य कर दिया। वास्तवमें श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु ही इस ग्रन्थके वक्ता हैं, वे ही श्रील चक्रवर्तीके मुखसे बोल रहे हैं। कुछ लोगोंका कहना है श्रील चक्रवर्ती ठाकुर श्रील रूप गोस्वामीके अवतार हैं। वे अत्यन्त सुकठिन तत्वोंकों सहज सरल रूपमें वर्णन करने की कलामें परम प्रवीण हैं। अहों! दयाके सागर श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर! मैं अत्यन्त मूढ़ व्यक्ति हूँ। आप कृपाकर इन अप्राकृत गुणोंको मेरे हृदयमें स्फूर्ति कराएँ-आपके श्रीचरणोंमें ऐसी प्रार्थना है।
गौड़ीय वैष्णव रसिकाचार्यवर्य परम पूज्यपाद श्रीविश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुरने श्रीगौड़ीय वैष्णव- समाज में शुद्धाभक्ति का स्वरूप उसके आविर्भावका क्रम, भक्ति का स्वप्रकाशन तथा उसकी लोकातीत महिमाकों प्रकार करने के लिए अत्यन्त सर्-सहज एवं बोधगम्य भाषामें माधुर्य-कादम्बिनी नामक एक अनुपम ग्रन्थकी रचना की है। ये श्रीरूपानुग वैष्णवाचार्योंकी श्रृंखलामें एक देदीप्यमान प्रधान स्तम्भ हैं।
श्रीविश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुरने करुणा-वरुणालय श्रीशचीनन्दन गोरहरि की कृपाकों निरंकुश माधुर्य-कादम्बिनी कहा है। जलसे भरे हुए मेघोंकी लम्बी पंक्ति या मेधमालकों कादम्बिनी कहते है, अत: माधुर्य-कादम्बिनीका तात्पर्य है। माधुर्यरूप अमृतकी वर्षां करनेवाली मेघमाला। भक्तिसाधकों के लिए यह ग्रन्थ प्रकाश स्तमभ की भाँति पथ-प्रदर्शक होगा, इसमें तनिक भी सन्हेकी गुजाइश नहीं।
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