कृष्ण द्वैपायन व्यास की महाभारत कथा का आद्यन्त विषय विवेचन न सिर्फ दुष्कर कर्म है बल्कि, इसके लिए कठोर श्रम साध्य और समयबद्ध ऊर्जा की परम आवश्यकता है। इस महान् ग्रन्थ की यह विशेषता है कि इसका अध्ययन जिस दृष्टि और भाव को ध्यान में रखकर किया जाए, ठीक वैसा ही परिणाम इससे अपेक्षित है। महर्षि व्यास के मूल महाभारत से लेकर अब तक महाभारत की कथा, अन्तर्कथाओं, महाभारत के विभिन्न पर्वों, भीष्म पितामह, अर्जुन, कर्ण और युधिष्ठिर जैसे प्रमुख पात्रों पर अनेक पुस्तकें या टिकाएं लिखी जा चुकी हैं। लेकिन इस महासमर के साक्षी प्रमुख पात्रों-नायकों के अलावा सैकड़ों ऐसे जाने-अनजाने पात्र भी हैं जिनकी इस युद्ध में अपनी-अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इन उपेक्षित पात्रों की भूमिका, विशिष्टताओं और घटनाओं को उजागर करने वाली समग्र पुस्तक का संभवतः अभाव है। इसी बात को दृष्टिगत रखते हुए जुलाई, 1989 से अगस्त, 1991 के बीच इतवारी पत्रिका में धारावाहिक स्तम्भ के रूप में प्रकाशित महाभारत के साक्षी विभिन्न पात्रों के विवरण को एक पुस्तक के रूप में संजोया गया है।
महाभारत की मूल कृतिका सबसे महत्त्वपूर्ण और प्रभावशाली अंश है उसके पात्रों का अनूठा चरित्र-चित्रण। उसके अधिकांश पात्र महान् और अभिमानी होते हुए भी अति मानवीय हैं। चाहे इन पात्रों में भीष्म पितामह हों या द्रौपदी। इन सबके चरित्र की अपनी-अपनी विशिष्टताएं और दुर्बलताएं हैं। इन पात्रों में भीष्म जैसा कठोर व्रत वाला दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व भी है जो मन से सदैव पांडवों और शरीर से कौरवों के साथ रहे तो धृतराष्ट्र और दुर्योधन जैसे चरित्र भी शामिल हैं।
जिन दिनों मैंने इतवारी पत्रिका में 'महाभारत के पात्र' शीर्षक से इन पात्रों के बारे में लिखना शुरू किया था उन्हीं दिनों रामायण और महाभारत दूरदर्शन पर धारावाहिक के रूप में जनमानस पर छाए हुए थे। इन धारावाहिकों के नाम से अधिक से अधिक धन बटोरा गया। फिल्मांकन के दौरान इन पात्रों को आकर्षक बनाए रखने के लिए उन्हें पूरी तरह व्यावसायिक संस्कृति से जोड़ दिया गया और कहीं-कहीं तो मूल कथानक को भी तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा था। ऐसी परिस्थितियों में इस नियमित साप्ताहिक स्तम्भ के जरीये मैंने विभिन्न ग्रन्थों, पौराणिक संदर्भों और पुस्तकों से प्राप्त सामग्री को समायोजित कर महाभारत के प्रमुख पात्रों का सही चित्रण करने का प्रयास मात्र किया है।
पुस्तक में महाभारत के अधिकांश प्रमुख पात्रों का पूरा परिचय दिया गया है। इनमें से कुछ पात्र ऐसे भी हैं जिनके बारे में सामान्यतः बहुत कम जानकारी मिलती है, तो कुछ ऐसी जानकारी भी है जो सभी को पता नहीं है। लेकिन जो भी जानकारी दी गई है उसके पीछे उद्देश्य यही है कि वह तथ्यपरक हो। स्थानाभाव के कारण पात्रों का विवरण कई स्थानों पर संक्षिप्त करना पड़ा है लेकिन महत्त्व के सभी पात्रों का वर्णन इसमें आ गया है। बड़े कलेवर और अधिक मूल्य वाली अनेक पुस्तकों और टीकाओं के बीच हिन्दी में प्रकाशित यह पुस्तक सभी वर्ग के पाठकों, खासतौर से आज की व्यस्ततम जीवन चर्या के अभ्यस्त लोगों, युवाओं और किशोरों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। विद्यालयों और महाविद्यालयों में विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक महाभारत के पात्रों के परिचय कोश या सन्दर्भपुस्तक के रूप में काम आ सकेगी।
दृष्टिदोष से भूलों का रह जाना सर्वथा सम्भव है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मां सरस्वती और पाठकों को समर्पित।
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