'मनुष्यात् परं न हि किंचिद् अस्ति-विश्व-भर में मनुष्य से बढ़कर कोई वस्तु श्रेष्ठ नहीं है। इसी मनुष्य और उसकी मनुष्यता का गान करने वाला ग्रन्थ है महाभारत।
आज से हजारों साल पहले लिखे गये इस महान ग्रन्थ के रचयिता थे महर्षि वेदव्यास। उन्होंने इसे अट्ठारह पर्यो में विभक्त किया है, जो आदिपर्व, सभापर्व, वनपर्व, विराट्पर्व, उद्योगपर्व, भीष्मपर्व, द्रोणपर्व, कर्णपर्व, शल्यपर्व, सौप्तिक पर्व, स्त्रीपर्व, शान्तिपर्व, अनुशासनपर्व, आश्वमेधिकपर्व, आश्रमवासिकपर्व, मौसलपर्व, महाप्रस्थानिकपर्व और स्वर्गारोहणपर्व हैं। अट्ठारह पर्वों के इस ग्रन्थ में अट्ठारह दिन के युद्ध की चर्चा है, जिसमें अट्ठारह अक्षौहिणी सेना का विनाश हुआ और जिसकी प्रत्येक इकाई की संख्या भी (शून्य को छोड़कर) अट्ठारह ही थी। महाभारत के मुख्य अंश गीता के भी अट्ठारह अध्याय हैं।
इस ग्रन्थ की महत्ता इससे भी सिद्ध होती है कि इसके अनेक महत्त्वपूर्ण अंश एक पृथक् ग्रन्थ का गौरव रखते हैं, यथा-भगवद्गीता, सावित्री-सत्यवान् आख्यान, नलोपाख्यान, विष्णुसहस्रनाम, अनुगीता, गजेन्द्रमोक्ष आदि। इसके लेखक महर्षि वेदव्यास ने ग्रन्थ की उपयोगिता बताते हुए लिखा है-"इस महाभारत में मैंने वेदों के रहस्य और विस्तार, उपनिषदों के सम्पूर्ण सार, इतिहास-पुराणों के उन्मेष और निमेष, चार वर्षों के विधान, पुराणों के आशय, ग्रह-नक्षत्र-तारा आदि के परिमाण, न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, दान, प्रभुमहिमा, तीर्थों, पुण्यदेशों, नदियों, पर्वतों, वनों तथा समुद्रों का भी वर्णन किया है।" वास्तव में 'महाभारत' विश्व का ज्ञान-विज्ञान कोश है, यह गूढ़ तत्त्व का विवेचन करने वाला धर्मग्रन्थ है, राजनीति की मीमांसा करने वाला राजनीति-शास्त्र है, भक्ति और अध्यात्म का शास्त्र है, निष्काम कर्मयोग का शिक्षक है, आर्य जाति का इतिहास है।
इस महान् ऐतिहासिक ग्रन्थ के अध्ययन से हमें केवल तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, पारिवारिक, वैयक्तिक, भौगोलिक, शैक्षणिक आदि परिस्थितियों का ही ज्ञान नहीं होता बल्कि इन विद्याओं और ज्ञान के उपांगों का गूढ़तत्त्व भी पता चलता है। महाभारत को पढ़ने से पता चलता है कि विज्ञान उस समय कितना विकसित और बहुमुखी था। यह ग्रन्थ चतुर्वर्ग अर्थात् धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का दाता है। आत्मदर्शन, आत्मसाक्षात्कार, आत्मविश्लेषण और आत्मविश्वास को जगाने वाला इससे बढ़कर और कोई ग्रन्थ नहीं है। इस दिशा में भीष्म पितामह, अर्जुन, भीमसेन और युधिष्ठिर के चरित्र अनुकरणीय हैं।
महाभारत शंका-सन्देहों को जन्म नहीं देता, बल्कि उनका समाधान करता है। उसकी प्रत्येक कथा के पीछे जीवन-निर्माण की भावना छिपी हुई है। नीति और सदाचार के लिए, राजनीति और कूटनीति के लिए हमें इस ग्रन्थ में वर्णित विदुर नीति, भीष्म नीति, कृष्ण नीति, नारद नीति आदि का अध्ययन; आध्यात्मिक शिक्षाओं के लिए अगस्त्य, च्यवन, अत्रि, व्यास, गौतम, भृगु, जमदग्नि, परशुराम, नारद, वृहस्पति, शुक्र, शुकदेव आदि ऋषि-मुनियों की वाणी का मनन और जीवन-मार्ग को निष्कंटक बनाने और उसकी सही दिशा में निर्माण करने के लिए भीष्म पितामह, कर्ण, अर्जुन, युधिष्ठिर, भीम, गांधारी, द्रौपदी, कुंती, कृष्ण आदि के जीवन का अनुकरण करना चाहिए। सम्पूर्ण महाभारत का यह संक्षिप्त सार प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है कि हमने मूल भावना की पूरी रक्षा की है। पूरी कथा को इस प्रकार से लिखा है कि महाभारत की समूची दृष्टि से भी साक्षात्कार हो जाए और आध्यात्मिक आनन्द तथा भौतिक उल्लास की भी उपलब्धि हो सके। हमने इस संक्षिप्त कथा में किसी भी महत्त्वपूर्ण अंश या उपयोगी सूत्र को अनदेखा नहीं किया है। हमने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि जिनके पास समय का अभाव है, किन्तु जिनमें 'महाभारत' की कथा और उसके ज्ञान के प्रति जिज्ञासा है, उनको दोनों की ही ठीक-ठीक उपलब्धि हो जाये। हमने कथाक्रम को कहीं भी उलझाया नहीं है, सरल भाषा में छोटे-छोटे अध्यायों और शीर्षकों के माध्यम से 'महाभारत' का पूर्ण चित्र प्रस्तुत कर दिया है। हमारा विश्वास है कि हमारी इस पुस्तक से पाठकों का भरपूर मनोरंजन तो होगा ही उनके ज्ञान-पटल भी खुलेंगे।
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