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भारत में महाभारत- Mahabharata in India

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Specifications
Publisher: Bharatiya Jnanpith, New Delhi
Author: Prabhakar Shrotriya
Language: Hindi
Pages: 637
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
Weight 780 gm
Edition: 2016
ISBN: 9789326352529
HBS725
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Book Description
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पुस्तक परिचय
महाभारत विश्व का ऐसा अद्वितीय महाकाव्य है जिसकी महाप्राणता ने असंख्य रचनाओं को जन्म दिया है। रचना की कालजयिता सिर्फ खुद जीवित रहने में नहीं, उन रचना-पीढ़ियों को जन्म देने में है, जो अगले तमाम युगों, भूगोलों और जीवनों में सर्जना के नए उत्प्रेरण से अनेकानेक कालजयी कृतियों को रचती है। महाभारत में ऐसी उदारता, ऐसा लचीलापन और ऐसी निस्संगता है जो अपने अनुकूल ही नहीं, अपने विरुद्ध, रचना-संसारों को भी अर्थवान बना देती है। व्यास न तो रूढ़ि के पोषक हैं न उसके वाहक; उनके भीतर मानवता के प्रति ऐसी अपार राग-धारा तथा पारदर्शी दृष्टि और सृजन कौशल है, जो हर युग में मानवता विरोधी आवाज़ों, दुष्कृतियों और विलोमों से टक्कर लेने का पुरुषार्थ रखती और देती है। महाभारत के प्रवक्ता उग्रश्रवा का यह कहना + सही है कि यहां वह सब है जो स्वर और व्यंजन के बीच निहित वाड्मय में हो सकता है- इतनी विपुल ज्ञानराशि, भावराशि और विचार राशि को कौन ग्रहण करना न चाहेगा ? पिछले पांच हजार वर्षों से नागर और लोक में वह प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष और रिसकर आई विविध अर्थवत्ता और प्राण-चेतना से साहित्य और कलाओं को अनुप्राणित करता रहा है। महाभारत से गृहीत और प्रेरित रचनाओं का एक विशाल सागर है जो उसके नित नए अर्थ खोलता है। वैसे भी, कौन सौभाग्यशाली देश नहीं चाहेगा- ऐसी अक्षय-रसा 'कामधेनु' को दुहना, उससे पोषण पाना और जीवन के गहन अर्थों में अपने समय सोच और व्यंजना में उतरना और उतरते चले जाना महाभारत को कुछ लोग धर्म ग्रंथ कहते हैं, पर उसके लिए धर्म का अर्थ 'मानवता' है। भला बताइए संसार में ऐसा कौन-सा धर्म-ग्रंथ है जो अपने खिलाफ एक भी आवाज सुन पाता है ? ऐसी गुस्ताखी करने वाले कितने लोग सूली पर चढ़ाए गए, उन्हें जहर पिलाया गया और क़त्ल किया गया? पर हमारे पास क्या ऐसा एक भी उदाहरण है कि महाभारत के विरुद्ध रचने, कहने और बरतने के लिए किसी को दंडित किया गया ? फिर यह धर्मग्रन्थ कैसे हुआ ? यह काव्य तो स्वयं अपने भीतर विरोधों, विसंगतियों, विद्रूपताओं का ऐसा संसार रचता है कि आप उससे ज्यादा क्या, रचेंगे ? एक महाप्राण रचना ऐसी ही होती है जहाँ प्रेम और वीभत्स एक साथ रह सकते है और हर एक को अपनी पात्रता और कामना के अनुरूप वह मिलता है जिससे वह अपने समय का सत्य अन्वेषित कर सके। संस्कृति ऐसे ही अनन्त स्रावों और टकरावों का नाम है, यह हमें महाभारत ने ही बताया है कि संस्कृति + क्या होती है और कैसे रची जाती है ? प्रतिष्ठित लेखक-मनीषी प्रभाकर श्रोत्रिय ने वर्षों की दूभर साधना से भारत में, और आसपास की दुनिया में, संस्कृत से लगाकर सभी भारतीय भाषाओं में महाभारत की वस्तु, सोच, प्रेरणा; यानि स्रोत से रची मुख्य रचनाओं पर इस ग्रंथ में एक सृजनात्मक ऊर्जा से पकी भाषा में विचार-विवेचन किया है, यह जानते हुए भी कि महाभारत की ' दुनिया' जो हज्जारों बांहों में भी न समेटी जा सकी वह दो बांहों में कैसे समेटी जाएगी ?.... भारतीय ज्ञानपीठ अपने गौरवग्रंथों की परंपरा में पाठकों को यह ग्रंथ अर्पित करते हुए प्रसन्नता का अनुभव करता है।

लेखक परिचय
जन्म: जावरा (म.प्र.)। शिक्षा: एम.ए., पी-एच.डी., डी. लिट्. । आलोचना, निबंध, नाटक विचार की पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित । प्रमुख कृतियाँ: कविता की तीसरी आंख, कालयात्री है कविता, रचना एक यातना है, अतीत के हंस मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद की प्रासंगिकता, मेघदूत एक अंतर्यात्रा, शमशेर बहादुर सिंह, नरेश मेहता, कवि परंपरा तुलसी से त्रिलोचन (आलोचना); सौंदर्य का तात्पर्य, समय का विवेक, समय समाज साहित्य, सर्जना का अग्निपथ, प्रजा का अमूर्तन, हिंदी कल आज और कल (निबंध); समय में विचार (आलेख) इला, सांच कहूँ तो, फिर से जहांपनाह (नाटक); अनुष्टुप, हिंदी कविता की प्रगतिशील भूमिका, प्रेमचंद: आज (संपादित)। मूल्यांकन-पुस्तकें : प्रभाकर श्रोत्रिय आलोचना की तीसरी परंपरा- संपादक: डॉ. उर्मिला शिरीष, इला और प्रभाकर श्रोत्रिय के नाटक- संपादक: विभु कुमार, रूपाली चौधरी। कृतियों के भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में अनुवाद। मुख्य पुरस्कार : आचार्य रामचंद्र शुक्ल पुरस्कार, आचार्य नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार, रामवृक्ष देनीपुरी पुरस्कार, श्री शारदा सम्मान, साहित्य भूषण, दीनदयाल उपाध्याय सम्मान (उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान), शताब्दी सम्मान (भ. भा. हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर) आदि। के. के. बिरला फांउडेशन की फैलोशिप । विदेशयात्राएं पूर्व में : निदेशक, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली: निदेशक, भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता: हिंदी प्राध्यापक।

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