'महावीर प्रसादद्विवेदी-साहित्यिकविवेचन' पुस्तक पाठकोंके हाथमें है इस पुस्तक के निर्माणकी कहानीके विषयमें अधिक कहकर मैं पाठकोंके बीचमें खड़ा नहीं होना चाहता। पुस्तककी प्रशंसाके विषय में अपनी श्रोरसे कुछ नहीं कहना । हाँ, मेरे एक-दो ऍम. ए. श्रेणीके प्राध्यापक मित्रोंने प्रेसके कुछ प्रूफ देखे हैं। मुझे यह सुनकर संतोष हुआ कि उन्होंने इस पुस्तकको विद्यार्थी-वर्गकी एक 'भारी कमीको पूरित करने वाली' बतलाया।
कुछ वर्षोंसे मुझे हिन्दी ऍम. ए.के विद्याथियोंके अध्यापनका भार संभालना पड़ा । समय-समयपर विद्यार्थियोंको सहायक पुस्तकोंपर अपना मत देना पड़ता । परन्तु पंजाब-विश्वविद्यालयद्वारा द्विवेदीजी के निर्धारित हो जाने पर उनपर कोई सहायक पुस्तक वेतलानेमें बड़ी कठिनता श्राई। कोई भी पुस्तक मुझे प्रकाशमें दिखलाई नहीं दी थी। फिर जब 'द्विवेदीजी'को पढ़ाना पड़ा, तो, उसी समय मस्तिष्कमें इसके निर्माणकी भूमिका तैयार हो गई। परन्तु वह पुस्तकीय रूपमें नहीं आ पाई।
इसी वर्ष मुझे मई-जूनमें कटक जानेका अवसर प्राप्त हुआ। वहाँ उत्कल-विश्वविद्यालय में एम. ए. में हिन्दी विषयके निर्धारणके विषयमें सुनकर प्रसन्नता हुई । वहाँ लगभग उडियोंमें ऍम. ए. करने वाले सभी विद्यार्थी हिन्दीमें द्वितीय ऍम. ए. करनेके लिए उद्यत हुए, तथा, मुझे डाक द्वारा उन्हें पढ़ानेका भार संभालना पड़ा। इसी अध्यापनके मध्य मुझे द्विवेदीजीपर पुस्तक लिखनेके लिए अनुरोध किया गया, क्योंकि, उत्कल-विश्वविद्यालयमें द्विवेदीजी तथा उनका ग्रन्थ रसज्ञरजन विशेष अध्ययन के लिए निर्धारित है। परन्तु अनेकों प्रकारकी व्यस्तता के कारण बाधायें आती रहीं।
इघर स्थानीय केम्ब्रिज पाठशालाकी अध्यापिका सुश्रीद्यायुष्मती प्रकाशिनीदेवीका प्रोत्साहन भी प्राप्त हुआ। उत्कल-विश्वविद्यालय के एम.ए.के विद्यार्थी श्रीसशीरकुमारबहेराने पुस्तक निर्माणमें मेरी सहायताको है। वस्तुतः सामग्रीका एकत्रीकरण तो उन्हीं द्वारा हुआ है। मैने तो एक प्रकारसे उसे सम्पादित कर दिया है।
सामग्रीका संकलन अनेकों ग्रन्थोंसे किया गया है। उन ग्रन्थोंकी सूची अन्त में देदी गई है। मैं उन सब विद्वानोंका हार्दिक धन्यवाद करता हूँ जिनकी सामग्री इस पुस्तकके निर्माणमें प्रयुक्त हुई है।
श्रीरामचन्द्रगुप्तने इस पुस्तकको तुरन्त प्रकाशित करके बड़ी उदारता दिखलाई है। अन्यथा अन्य प्रकाशकोंके पास तो मेरे ग्रन्थ साल-साल पेड़े रहते हैं। महीनेमें एक प्रूफ प्रिट आर्डरकेलिए आजाता है। अतः उनका में धन्यवाद करता हूँ।
पुस्तकके प्रूफ़ संशोधनमें मेरी आयुष्मतीप्रियवहिन सुदर्शनोंने सहायता की है। अतः मैं उसका भी धन्यवाद करता हूँ। आयुष्मतीप्रकाशिनीदेवी तथा श्रीयुतसशीरकुमारबहेरा तो मेरे धन्यवाद के पात्र हैं ही। पुस्तक प्रश्नोत्तर शैलीमें है। प्रश्नोत्तरका रूप प्रकाशक महोदयके अनुरोधपर देना पड़ा। अन्यथा मेरा विचार ऐसा नहीं था।
आशा है पुस्तक विद्यार्थीवन्दकेलिए उपयोगी सिद्ध होगी ।
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