विवाह, जो सब करते हैं, मैंने भी किया है; अपना ही नहीं, अपने बच्चों का भी; पर आजकल वह है बेवकूफियों का एक ऐलबम !
ऐलबम : जिसमें अपनी, अपने परिवार की, अपने बाल-बच्चों की, अलग-अलग तसवीरें लगी रहती हैं। तो मैं कह रहा हूँ कि विवाह है एक ऐसा ऐलबम जिसमें बेवकूफी की अलग-अलग तसवीरें लगी हैं।
यह सब मैं ही कह रहा हूँ, और अपने कानों सुन भी रहा हूँ, पर अपनी यह बात आप ही सुनकर मुझे एक अजब अटपटी-सी लग रही है, तो औरों को भी लगेगी ही; पर क्या बताऊँ मुझे लगता है कि इस अटपटी बात में एक गम्भीर सूत्र और समाज का रहस्य छिपा है जिसे जानकर हम बहुत कुछ जान सकते हैं।
तो विवाह है बेवकूफियों का एक ऐलबम और यह ऐलबम मुझे साल में सैकड़ों बार देखना पड़ता है, क्योंकि मेरी कोठरी के सामने ही धरती की छाती से गोह-सी चिपटी पड़ी है यह स्टेशन की सड़क, जिस पर से हर साल गुज़रती हैं सैकड़ों बारातें।
कोई सुने तो क्या कहे कि मुझे जीवन में दो चीज़ों से चिढ़ रही है-एक यूनियन जैक से और दूसरे बारात के जलूस से ! भारत में कहीं यूनियन जैक फहराता देखकर खून खौल उठता था और घण्टों भीतर-ही-भीतर नसें टूटती-सी रहती थीं। ऐसा लगता था जैसे वह मेरी छाती पर ही गड़ा है। खैर, वह अपने घर चला गया और मैं इस चिढ़ से बच गया हूँ; पर ये बारात के जलूस तो मेरी छाती पर मूँग दल ही रहे हैं।
सचमुच कोई सुने तो क्या कहे कि जो आदमी अपना सर्वनाश करने की लगन रखनेवालों के भी लाभ की ही बात सोचता रहा है और अहिंसा जिसके मस्तिष्क का बुद्धि-विलास नहीं, हृदय का रस बनकर जीवन में रमी रही है, उसे बारात का जुलूस देखकर झुंझलाहट आती है।
गुलामी के दिनों में तो झुंझलाहट ही आती थी, पर क्या कहूँ, स्वतन्त्र भारत में तो कभी-कभी यह भी मन में आता है कि इस बेवकूफ दूल्हे की गाड़ी पर चढ़ जाऊँ और इसका यह मौर और सेहरा नोच डालूँ !
दुनिया जानती है कि राजा दूल्हा की हर चीज़ या तो उधार पर आयी है या किराये पर। जिस गाड़ी में वर महाशय सवार हैं, वह निश्चय ही माँगी हुई है। आगे-आगे बजता जा रहा बाजा किराये का है, गाड़ी के पीछे पायदान पर खड़ा अरदली चाँदी का जो चमर डुला रहा है, वह उधार लिया हुआ है, और तो और, राजा साहब का यह सेहरा भी किराये पर आया हुआ है। गाड़ी के दोनों तरफ पायदानों पर चाँदी के जो आसे-बल्लम चमक रहे हैं वे शायद हिन्दूकुमार सभा के हैं या लाला ननकूराम की दूकान से किराये पर आये हुए हैं।
राजा साहब इसी शान से जनवासे पहुँचेंगे और इसी शान से शाम को बेटीवाले के द्वार पर चौकी चढ़ेंगे और तब उनका भाई या नाई इस सब सामान को मँगवाकर रख देगा, जिससे जिसकी जो चीज़ है, किराये के पैसों सहित उसके यहाँ पहुँच जाये।
पता नहीं आज का नौजवान इतना बेशरम क्यों है कि उसे इस रूप में जलूस निकलवाते, अपना यह स्वांग भरते, शरम ही नहीं आती, और पता नहीं उसकी जवानी इतनी बेपानी क्यों हो गयी है कि वह कभी यह सोचता ही नहीं कि जब अपने को कैलास का अजेय शिखर माननेवाले वे असली राजा ही युग के प्रवाह में बह गये तो तेरी यह किराये की नकली राजाई क्या माने रखती है ?
अपने जीवन में मैंने सबसे पहले जिस चमत्कारी समारोह के दर्शन किये और आसमानी कहानियाँ सुनीं, वह मेरे नगर के एक धनपति की कन्या का विवाह ही था !
बीसवीं शताब्दी की उम्र अब बावन साल से अधिक की है, पर जब यह बेचारी कोई आठ-दस साल की बालिका ही थी, तब की बात है यह !
दोनों सम्बन्धी धनकुबेर थे। बेटेवाला एक हज़ार से ज़्यादा बाराती तो लाया ही था, बाईस हाथी भी लाया था, जिन्होंने अपने घण्टों की टन टन से उस छोटे-से कस्बे को इन्द्रपुरी बना दिया था।
बेटेवाले को यह ज़िद थी कि वह कोई ऐसी चीज़ माँगे जो बेटीवाला तुरन्त न दे सके और हार माने, और बेटीवाला इस बात पर तुला हुआ था कि वह हाँ ही कहे, ना नहीं !
बेटेवाले का बड़ा हाथीवान आकर बेटीवाले के चौक में खड़ा हो गया, "लालाजी, हमारे हाथियों के लिए सौ बोरी बुरादा चाहिए।" माँग सुनकर बेटीवाले के यार-मुसाहब झेंप गये, पर बेटीवाला खिलाड़ी था। उसने कहा, "हाँ-हाँ, हाथी आये हैं तो बुरादा तो चाहिएगा ही। भीतर बहलखानों में भरा है, आइए हाथीवान साहब, मैं आपको दिखा दूँ?' वे हाथीवान को भीतर ले गये और पाँच गिन्नियों उसके हाथ पर रखकर कहा, "यह लीजिए अपना इनाम और जो मुनासिब समझें जाकर कह दीजिए। आप भी बेटीवाले हैं, मेरी बेटी की इज़्ज़त आपकी ही इज़्ज़त है।"
हाथीवान ने जनवासे पहुँचकर कहा, "लाला, किससे भिड़ गये हो, उसके यहाँ कई कोठे बुरादा भरा पड़ा है और मुझसे पूछता है कि तुम्हारे हाथियों को किस लकड़ी का बुरादा चाहिए शीशम का, नीम का, आम का या चन्दन का ?"
और बस फिर कोई बुरादा लेने नहीं आया। पर हाथियों के लिए ईख तो चाहिए ही। दूसरा हाथीवान आया कि ईख चाहिए। लाला ने तमककर जवाब दिया, "ईख क्या मेरी छत पर खड़ा हुआ है। कस्बे के चारों तरफ ईख के खेत हैं, चाहे जहाँ से ले लो और सचमुच हाथीवान लोग अपना हाथी लिये जिस खेत पर भी जा खड़े हुए और पूछा कि यह खेत किसका है, तो उत्तर मिला-बेटीवाले लाला का, और उन्होंने चाहे जितना ईख काटा, किसी ने उन्हें नहीं रोका। यों आते-आते ही बेटेवालों पर बेटीवालों की शान छा गयी।
शाम को बारद्वारी की बखेर में उन्होंने अपना जलाल दिखाने का फैसला कर लिया और सचमुच ऐसा जलूस सजाया कि फिर आज तक वैसा जलूस उस कस्बे ने नहीं देखा। बाईस हाथी थे, घोड़े थे, गाड़ियाँ थीं। बारातियों की फीज थी, बन्दूकची थे, दर्शकों की भीड़ थी और बखेर की चाँदी बटोरनेवाले टकटकी बाँधे भगियों एवं गरीबों का भभ्भड़ था !
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