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मरियल पेड़: Mariyal Ped- Sahitya Akademi Bal Sahitya Award-Winning Children Short Story Collection Pilpilha Gachha

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Specifications
Publisher: SAHITYA AKADEMI
Author Murlidhar Jha
Language: Hindi
Pages: 108
Cover: PAPERBACK
24 cm x 19 cm
Weight 220 gm
Edition: 2023
ISBN: 9789355481061
HAH397
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Book Description
प्रस्तावना

बच्चों का प्रश्न आपने हमें क्या दिया?

बाल साहित्य एक कठिन साहित्यिक विधा है जिसमें संतुलन एवं संयम की अत्यधिक आवश्यकता होती है। बच्चों के लिए लिखना तलवार की धार पर चलने के समान है। सुविधा की दृष्टि से समेकित रूप से समस्त बालवर्ग के साहित्य को 'वाल साहित्य' कह दिया जाता है, लेकिन इसके भी आयुवर्ग के अनुसार कई वर्ग बन जाते हैं। प्रत्येक वर्ग के लिए साहित्य का अपना एक विशिष्ट स्वरूप और मानदंड होता है। एक वर्ग का बाल साहित्य दूसरे वर्ग के लिए अनुपयोगी या अल्प उपयोगी हो जाता है। अतः आयुवर्ग के और मानसिक विकास के स्तर की दृष्टि से संपूर्ण वाल साहित्य को चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-पहले वर्ग में नवजात से लेकर ढाई वर्ष तक के बच्चों को रखा जा सकता है। इस आयुवर्ग के शिशुओं के लिए छोटे-छोटे गीतात्मक या लयात्मक श्रुति-साहित्य ही उपयोगी होता है जो दरअसल बड़े आयुवर्ग के लोगों द्वारा प्रयुक्त होता है, जैसे परंपरा से अबोध बच्चे को उसकी माँ या दादा-दादी, नाना-नानी, 'निनिया', 'मलार' गीत, कहावतें आदि सुनाते आ रहे हैं।

दूसरे वर्ग में ढाई वर्ष से लेकर सात वर्ष तक के बच्चों को रखा जा सकता है जिसे अल्प-बोध आयुवर्ग कहा जा सकता है। इस वर्ग के बच्चों को अक्षर-ज्ञान कराया जाता है। इस वर्ग के बच्चों के लिए ऐसी पाठ्य-सामग्री की रचना की जाती है जिसे वे आसानी से पढ़ व समझ सकें। तीसरे वर्ग में सात से बारह वर्ष तक की आयु के बच्चे रखे जा सकते हैं जिन्हें सुबोध आयुवर्ग के बच्चे कहा जा सकता है। इस वर्ग के बच्चों के लिए रचे जाने वाले साहित्य का स्तर दूसरे वर्ग की अपेक्षा ऊँचा होता है। बारह वर्ष से पंद्रह वर्ष की आयु के बच्चों को चौथे वर्ग में रखा जा सकता है। सत्रह वर्ष की आयु के बाद किशोर युवावस्या में प्रवेश करने लगता है। उसकी सोच व क्रियाशीलता में अचानक परिवर्तन आने लगता है। परंतु इस परिवर्तन की भूमिका बारहवें वर्ष के बाद ही बननी प्रारंभ हो जाती है। इसमें तर्क-वितर्क करने की क्षमता आती है। ये चारों आयुवर्ग बाल वर्ग के अंतर्गत आते हैं। इसमें अबोध वर्ग के साहित्य की रचना और प्रस्तुति-विधान सर्वया भिन्न होता है, पर अन्य तीन वगों के लिए लिखे जाने वाले साहित्य में उस आयुवर्ग के पाठकों के मानसिक स्तर, बालविकास और ग्रहण करने की क्षमता को ध्यान में रखते हुए रोचकता, उत्सुकता, सरलता, मनोरंजन और बोधगम्यता का निर्वाह करना आवश्यक होता है। उस साहित्य में ऐसा कोई विषय या प्रसंग न आए जो बाल-पाठक के मन में विकृति उत्पन्न करे या हिंसा की भावना भरे। इसी तरह इस वर्ग के साहित्य को मृत्यु, वीभत्स दृश्य या वर्णन, शुष्क और अरुचिकर उपदेश से भी बचाकर रखना ज़रूरी होता है जिससे बालमन पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े। वस्तुतः इस वर्ग का साहित्य लेखन लेखकीय चमत्कार ही होता है जो अपने लक्ष्य-पाठक वर्ग तक सहजता से अपना संदेश पहुँचा सके। ऐसी सामग्री हो जिसे समझने में पाठक को ज़्यादा माथापच्ची न करनी पड़े, न ही कोई तनाव हो, और परोक्ष रूप से विषय-ज्ञान कराते हुए उनमें वैज्ञानिक दृष्टि का संचार करे। किशोर वर्ग के लिए रचित साहित्य में वास्तविक जीवन की घटनाओं को आधार बनाकर ऐसे सरल साहित्य की रचना की जाए जो उनमें आत्मविश्वास, साहस, आगे बढ़ने की महत्त्वाकांक्षा, तार्किकता, सर्जनात्मकता आदि गुणों को विकसित करने में सहायक हो।

मैथिली में लिखित-मुद्रित बाल साहित्य का प्रारंभ उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में कवीश्वर चंदा झा ने किया था। उन्होंने बालवर्ग के लिए काव्य और कई कहानियाँ लिखीं। उनका अनुसरण भानुनाथ झा तथा अन्य कई कवियों ने किया था, परंतु उसके बाद मैथिली के साहित्यकारों में वाल-साहित्य रचना की ओर कोई गंभीरता नहीं दिखाई दी। आज अन्य भारतीय भाषाओं में बाल साहित्य अत्यंत समृद्ध स्थिति में पहुँच गया है। कई भाषाओं में तो बाल साहित्य एक स्वतंत्र विधा के रूप में स्थापित हो गया है। उन भाषाओं के बाल साहित्य की तुलना में मैथिली के बाल साहित्य को विकास की सबसे निचली सीढ़ी पर मानने में भी संकोच होता है।

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