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माया मोदी आजाद (हिन्दुत्व के दौर में दलित राजनीति)- Maya Modi Azad (Dalit Politics in the Era of Hindutva)

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Includes any tariffs and taxes
Revised and expanded version for post-2024 election context
Specifications
Publisher: SETU PRAKASHAN PVT LTD, NOIDA
Author Sudha Pai, Sajjan Kumar
Language: Hindi
Pages: 336
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 inch
Weight 250 gm
Edition: 2025
ISBN: 9789362017581
HBO880
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Book Description
पुस्तक परिचय
वर्तमान दलित राजनीतिक परिदृश्य एक उलझी हुई विश्लेषणात्मक पहेली जैसा है। पिछले दशक में बहुजन समाज पार्टी और 1980 से चली आ रही पहचान केन्द्रित राजनीति का पतन देखा गया, दलितों का एक वर्ग भारतीय जनता पार्टी और सबाल्टर्न हिन्दुत्व की ओर झुका, साथ ही नये दलित संगठनों ने दलितों पर हो रहे अत्याचारों और दक्षिणपन्थ के वर्चस्व के खिलाफ प्रदर्शन भी किये। आज दलित राजनीति दो विपरीत प्रवृत्तियों को दर्शाती है- दक्षिणपन्थ का राजनीतिक विरोध लेकिन साथ ही दक्षिणपन्थ के लिए चुनावी प्राथमिकता भी। माया, मोदी, आजाद पुस्तक विशेष रूप से उत्तर प्रदेश पर ध्यान केन्द्रित करते हुए, इन परिवर्तनों का मानचित्रण करती है। यह वह राज्य है, जहाँ मायावती, जिन्होंने दलित मूल के साथ एक नयी 'इन्द्रधनुषी पार्टी' बनाने का प्रयास किया, नरेन्द्र मोदी, जिन्होंने दलितों के एक वर्ग को भगवा धारा की ओर आकर्षित किया और एक नये दलित नेता, चन्द्रशेखर आजाद, जो हिन्दुत्व और बहुजन समाज पार्टी, दोनों को चुनौती दे रहे हैं, ने पिछले दो दशकों में दलित राजनीति को नया आकार दिया है। सुधा पई और सज्जन कुमार का विमर्शों के इस त्रिकोणीय टकराव का अन्तर्दृष्टिपूर्ण विश्लेषण न केवल दलित बल्कि भारत में लोकतान्त्रिक राजनीति को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण है, खासकर जब हम 2024 के तल्खी भरे लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में दलितों का हिन्दुत्व के साथ हो रहे विरोध व समावेश को समझने की कोशिश कर रहे हैं।

लेखक परिचय- 1
सुधा पई: दलित अध्ययन में सुधा पई की रुचि मायावती के राजनीतिक उत्थान और दलित परिदृश्य पर हो रहे उसके प्रभाव के साथ हुई जो कि उनकी किताब 'दलित असर्शन एण्ड द अनफिनिश्ड डेमोक्रेटिक रिवॉल्यूशन : द बीएसपी इन उत्तर प्रदेश (सेज, इण्डिया, 2002) से जाहिर है। दलित विमर्श पर उन्होंने अनेक किताबें लिखी हैं, जैसे, डेवलपमेण्टल स्टेट एण्ड द दलित क्वेश्चन इन मध्य प्रदेश (रूटलेज इण्डिया, 2011)।

लेखक परिचय- 2
सज्जन कुमार: सज्जन कुमार राजनीतिक विश्लेषक और भारतीय राजनीति के शोधार्थी हैं। वह वर्तमान में प्रधानमन्त्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय, नयी दिल्ली, में फेलो हैं। उनके लेख और विश्लेषण देश के तमाम अखबारों और समाचार चैनलों में आते रहते हैं। वह दिल्ली स्थित शोध संस्था (PRACCIS) जो भारतीय राजनीति का फील्डवर्क आधारित अध्ययन करती है, से जुड़े हुए हैं।

पूर्वकथन
यह मई 2017 की बात है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर कस्बे की एक दलित बस्ती जाटव नगर के दलितों के बीच एक जीवन्त बहस हो रही थी। बहस यह थी कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का जनसमर्थन सिकुड़ता जा रहा है क्योंकि दलित समाज के बड़े हिस्से ने भाजपा का दामन थाम लिया है।' घनी दलित आबादी (21.3 प्रतिशत) के साथ सहारनपुर जिला लम्बे समय से दलित आन्दोलन को मजबूती देता रहा है, 1990 के दशक में यहाँ के कई नेताओं ने कांशीराम के साथ काम किया था। जहाँ बहुत सारे वक्ता दलितों के बीच भाजपा की इस पैठ के बारे में जानकर स्तब्ध थे, वहीं कस्बे के दूसरे बसपा सदस्यों के साथ भाजपा में शामिल हुए थोड़े खाते-पीते व्यवसायी नेपाल सिंह ने जोर देकर कहा कि भाजपा सांस्कृतिक और सामाजिक तौर पर दलितों के साथ तालमेल बैठाकर और उन्हें अपने साथ लेकर चलने वाली पार्टी है। साथ ही साथ नेपाल सिंह ने दूसरी पार्टियों के दलित-विरोधी नजरिये और इस मुद्दे पर बसपा की चुप्पी को रेखांकित किया। जब नेपाल सिंह से मायावती पर भाजपा नेता दया सिंह के आपत्तिजनक बयान, जिसमें दलित विरोधी मानसिकता झलकती है, पर जवाब माँगा गया तो उन्होंने जोशीले अन्दाज में कहा कि भाजपा ने तुरन्त कार्रवाई की।

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