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अल्पसंख्यक राजनीति और समाज- Minority Politics and Society

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Specifications
Publisher: SETU PRAKASHAN PVT LTD, NOIDA
Author Ram Puniyani
Language: Hindi
Pages: 525
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 inch
Weight 480 gm
Edition: 2025
ISBN: 9789362013163
HBO737
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Book Description
पुस्तक परिचय
राम पुनियानी जी के लेखों के संकलन के क्रम में प्रकाशित होने वाली यह पाँचवीं किताब है। इसमें अल्पसंख्यकों की समस्याओं और चुनौतियों पर आधारित आलेख संकलित हैं। हिन्दुत्व की राजनीति ने भारतीय समाज को खासा प्रभावित किया है। बारह सौ साल की हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति को तहस-नहस करने की पूरी कोशिश की गयी। ईसाई धर्म के स्थापित होने की पहली सदी में भारत पहुँचे इस धर्म पर भी हिन्दुत्ववादियों ने हमला किया। इससे भारत की समन्वयकारी संस्कृति और उसकी प्रतिष्ठा को बहुत चोट पहुँची है। यह किताब अल्पसंख्यकों के मुद्दों को सामने लाने की एक कोशिश है।

लेखक परिचय
जन बुद्धिजीवी, लोकप्रिय वक्ता, इतिहास और समकालीन राजनीति के अध्येता, धर्मनिरपेक्षता और समाज अध्ययन केन्द्र के अध्यक्ष, साम्प्रदायिक सद्भावना और राष्ट्रीय एकता के लिए निरन्तर लेखन एवं सक्रियता, अनेक किताबों के लेखक, जैसे- साम्प्रदायिक राजनीति (2002), गांधी की दूसरी बार हत्या (2003), जाति और साम्प्रदायिकता (2015), अंबेडकर और हिन्दुत्व की राजनीति (2016), हिंसा-साम्प्रदायिकता (2021), भारतीय राष्ट्रवाद बनाम हिन्दू राष्ट्रवाद (2021), अंबेडकर, दलित और स्त्री प्रश्न (2023), वैश्विक आतंकवाद और भारत की अस्मिता (2024), आरएसएस और हिन्दुत्व की राजनीति (2024), खतरे में धर्मनिरपेक्षता (2025) Religious Nationalism, Social Perception and Violence (2021)। सम्मान : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय एकता अवार्ड (2006), राष्ट्रीय एकता अवार्ड (2007)

भूमिका
वी.डी. सावरकर ने अपनी किताब 'हिन्दुत्व हू इज हिन्दू' (1923) में हिन्दुत्व के तीन लक्षण बताये हैं- एक राष्ट्र, एक जाति और एक संस्कृति। उनकी नजर में हिन्दू वही है जो 'हिन्दुस्थान' को पितृभूमि ही नहीं पुण्यभूमि भी मानता हो। हिन्दुत्व के विचारक सावरकर ने मुसलमानों, ईसाइयों और कम्युनिस्टों को हिन्दुत्व का दुश्मन करार दिया। सावरकर द्विराष्ट्रवाद के पहले सिद्धान्तकार भी हैं। सावरकर ने 30 सितम्बर 1937 को हिन्दू महासभा के अध्यक्षीय भाषण में कहा कि 'एक प्रमुख राष्ट्र में दो राष्ट्र हैं भारत में हिन्दू और मुस्लिम'। इसके एक साल बाद 1938 में उन्होंने कहा कि भारत में हिन्दू राष्ट्र है और मुस्लिम एक अल्पसंख्यक समुदाय है। सावरकर का विचार देश विभाजन ना होकर मुसलमानों को हिन्दुओं के अधीन रखने का था। दरअसल, इसी विचार ने विभाजन की बुनियाद पैदा की। सावरकर के अनुसार भारत हिन्दुओं का देश है। सावरकर ने अपने पितृभूमि और पुण्यभूमि वाले विचार से बौद्ध, जैन और सिक्खों को हिन्दुओं के भीतर समेट लिया था। वस्तुतः, सावरकर बौद्ध, जैन और सिख धर्म को हिन्दू धर्म के सम्प्रदाय मानते हैं, स्वतन्त्र धर्म नहीं। इसके अलावा मुसलमान सहित सभी धर्म भारत में अल्पसंख्यक बनकर रहेंगे। यानी उन्हें समान अधिकार नहीं मिलेंगे। इसी वजह से मुसलमानों के मन में भय और पहचान का संकट पैदा हुआ।

प्रस्तावना
सन् 1980 का दशक भारतीय राजनीति में भारी बदलाव का दशक था। राम मन्दिर आन्दोलन इस दशक का सम्भवतः सबसे बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम था। इसकी शुरुआत रथयात्राओं से हुई और अन्त बाबरी मस्जिद के जमींदोज किये जाने से हुआ। इसी दौर में साम्प्रदायिक हिंसा का ग्राफ बहुत तेजी से ऊपर उठा। अल्पसंख्यकों के बारे में पूर्वाग्रहों में बढ़ोतरी हुई। इसने और अधिक लोगों को अपनी चपेट में ले लिया। इससे मानवाधिकार आन्दोलन को गहरा धक्का लगा। इसी अवधि में अल्पसंख्यकों का दानवीकरण हुआ, धर्मनिरपेक्षता के प्रचलित अर्थ को चुनौती दी गयी, विभिन्न धर्मों के पर्सनल लॉ को प्रजातन्त्र से असंगत निरूपित किया गया और यहाँ तक कि राष्ट्रवाद की नयी व्याख्या करने की कोशिश भी हुई।

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