Easy Returns
Easy Returns
Return within 7 days of
order delivery.See T&Cs
1M+ Customers
1M+ Customers
Serving more than a
million customers worldwide.
25+ Years in Business
25+ Years in Business
A trustworthy name in Indian
art, fashion and literature.

आधुनिक हिंदी साहित्य: विविध संदर्भ- Modern Hindi Literature: Various References

$19.58
$29
10% + 25% off
Includes any tariffs and taxes
Specifications
Publisher: Chintan Prakashan, Kanpur
Author Akhilesh Kumar Shankhdhar
Language: Hindi
Pages: 144
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
Weight 300 gm
Edition: 2020
ISBN: 9789385804533
HBO607
Delivery and Return Policies
Usually ships in 7 days
Returns and Exchanges accepted within 7 days
Free Delivery
Easy Returns
Easy Returns
Return within 7 days of
order delivery.See T&Cs
1M+ Customers
1M+ Customers
Serving more than a
million customers worldwide.
25+ Years in Business
25+ Years in Business
A trustworthy name in Indian
art, fashion and literature.
Book Description

दो शब्द

भारतीय साहित्य बहुभाषीय साहित्य है और भारतवर्ष की आधुनिक भाषाओं का इतिहास लगभग एक हजार वर्षों का है। परंपरा के रूप में भारतीय साहित्य संस्कृत साहित्य से सम्बद्ध रहा है। भारतीय भाषाओं का इतिहास लिखते समय संस्कृत भाषा की परंपरा को स्वीकार किया जाता है। इस रूप में भाषाओं की तुलना की जाती है। तुलनात्मक अध्ययन से परंपरा सुदृढ़ होती है और अलगाव के कारणों पर प्रकाश पड़ता है। यही नहीं विछिन्नता के कारण स्पष्ट हो जाने पर एकता के सूत्रों का अनुसंधान होता है। तुलनात्मक अध्ययन से परिचय क्षेत्र का विस्तार होता है। अपरिचित और अजनबी क्षेत्रों के संबंध में हम जानने लगते हैं और तब इसका परिणाम यह होता है कि हम पूर्वाग्रहों से मुक्त होना सीखते हैं। होता यह है कि हमने जो कुछ देखा है, उसी के आधार पर निर्णय लेते हैं। चयन का सिद्धांत उसी समय लाभप्रद हो सकता है जब उत्तम चयन की सिद्धांत सामग्री हमारे सामने हो। चयन में अवसर बाहुल्य, वैकल्पिक रूपों की बहुलता और क्षेत्र के विस्तार की अपेक्षा रहती है। मूल्यांकन के प्रतिमान सदैव वैयक्तिक होते हैं और वे चयन में वस्तुमूलक प्रतिमानों के रूप ग्रहण करते जाते हैं। हमारा प्रयत्न यह रहना चाहिए कि वैयक्तिक प्रतिमानों को सामाजिक प्रतिमानों के रूप में प्रस्तुत कर सकें क्योंकि इससे वैयक्तिक मूल्यों को सामाजिक स्वीकृति मिल सकती है।

भाषा और साहित्य का संबंध अटूट है। भाषा विज्ञान की दृष्टि से भाषा के अध्ययन की सामग्री सामाजिक विचारों से मिलती है तो साहित्य का स्वरूप भाषा के अध्ययन से मानक बनता है। साहित्य में लोक एवं शास्त्र दोनों की स्थिति समाविष्ट है। भाषा के स्वरूप में निरंतर परिवर्तन निश्चित है। इस परिवर्तन के युग में हिंदी साहित्य के दायरे में दिनों-दिन वृद्धि होती जा रही है। पूर्व के विधागत रूपों में अनेक परिर्वतन आये हैं। काव्य, कथ्य, दृश्य, चिंत्य आदि विधाओं के पश्चात अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान के क्षेत्र ने इसे अधिक प्रभावशाली रूप प्रदान किया है जिसमें अनुवाद और तुलनात्मक साहित्य के कारण हिंदी का वैश्विक रूप उभर रहा है। आज साहित्य किसी क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं है, अनेक नये-नये स्वरूप प्रत्यक्ष हो रहे हैं जिसे परिभाषित किये जाने की आवश्यकता है। जहाँ तक भाषा-साहित्य-संस्कृति में विमर्श का प्रश्न है, उनमें भी बेतहाशा बढ़ोत्तरी परिलक्षित हो रही है और अनुसंधान के अनेकविध नित-नूतन परिदृश्य निखर रहे हैं। शोध एवं गंभीर अध्ययन के बाहर रचना-धर्मिता के क्षेत्र में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। यह अलग मुद्दा है कि रचना-कर्म की तुलना में पाठकों की संख्या में बढ़ोत्तरी नहीं दीखती। संभवतः भवानीप्रसाद मिश्र की काव्य-पंक्ति 'जिस तरह हम बोलते हैं, उस तरह तू लिख, और इसके बाद भी हमसे बड़ा तू दिख- में अभिव्यक्त सहजता का अभाव हो। इस पर विचार-विमर्श अलग से किये जाने की आवश्यकता है।

कोविद 19 के काल में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ऐतिहासिक परिवर्तन हुआ है। अब संगोष्ठी वैचारिक मंच, अधिवेशन, पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएँ सोशल मीडिया के कारण इंटरनेट पर सहज रूप से उपलब्ध होती जा रही हैं। दूसरे शब्दों में डिजिटल एवं वर्चुअल फार्म इस महामारी के काल में शिखर पर है। इसके प्रभाव का मूल्यांकन किया जाना अभी जल्दबाजी होगी। वस्तुतः किसी भी परिवर्तन से साहित्य कैसे अप्रभावित रह सकता है। हिंदी जगत के लिए यह हर्ष का विषय है कि साहित्य, संस्कृति, समाज पर केंद्रित अनेक पुस्तकें हमें उपलब्ध हो रही हैं। इस कोरोना-काल की यह उपलब्धि मानी जायेगी।

इसी क्रम में उदीयमान आलोचक डॉ. अखिलेश कुमार शंखधर की पुस्तक 'आधुनिक हिंदी साहित्य विविध संदर्भ एक उल्लेखनीय प्रयास है जिसमें काव्यालोचन की दृष्टि से आधुनिक हिंदी साहित्य के विख्यात साहित्यकार अज्ञेय, नागार्जुन, भवानीप्रसाद मिश्र, केदारनाथ सिंह, मत्स्येन्द्र शुक्ल, अरुण कमल, जैसे कवियों के अनेकविध पक्षों को उद्घाटित किया गया है तो कथा साहित्य में प्रेमचन्द, शेखर जोशी, रणेन्द्र, अपर्णा शर्मा का अनुशीलन सुधी पाठकों को शोध सामग्री प्रस्तुत करने में सक्षम है। प्रकाश्य पुस्तक आलोचना की दृष्टि से रमेश चन्द्र शाह, पं. विद्यानिवास मिश्र, विवेकी राय के महत्त्व को भी आरेखित करती है। तुलनात्मक एवं पूर्वोत्तर भारत के संदर्भ भी पुस्तक की उपादेयता की वृद्धि करने की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। पूर्वोत्तर भारत और हिंदी उपन्यास, पूर्वोत्तर भारत और अज्ञेय की कहानियाँ, समकालीन मणिपुरी कविता का परिदृश्य जैसे विषयों पर चिंतन लेखक के कर्म-क्षेत्र के महत्त्व को इंगित करने के साथ ही पूर्वोत्तर क्षेत्र के प्रति प्रतिबद्धता सिद्ध करते हैं।

विषय वैविध्य, शोध दृष्टि एवं भाषागत संतुलन की दृष्टि से प्रकाश्य पुस्तक हिंदी साहित्य चिंतन की एक कड़ी के रूप में उल्लेखनीय है जिसमें अनेकविध सामग्री को सैंजोया गया है। समग्र रूप में विविध संदर्भों को समेटती यह पुस्तक हिंदी जगत् के सहृदय अध्येताओं को एक नवीन दृष्टि प्रदान करेगी, ऐसा विश्वास है।

भूमिका

हिंदी साहित्य के इतिहास में आधुनिक काल अनेक दृष्टियों से उल्लेखनीय है। अपने आरंभिक चरण में यदि आधुनिक काल में गद्य को महत्त्व मिला तो परवर्ती दौर में काव्य के नए रूप को केंद्रीयता मिली। हिंदी साहित्य के आधुनिक काल में भारतेंदु हरिश्चंद्र से लेकर अज्ञेय प्रभृति रचनाकारों की लंबी परंपरा है जिन्होंने साहित्य की विविध विधाओं में रचनात्मक भूमिका का निर्वहन किया है। आधुनिक हिंदी साहित्य का महत्त्व इस दृष्टि से बढ़ जाता है कि काव्य, कथा साहित्य तथा आलोचना-सभी विधाओं में समान रूप में साहित्य की अभिवृद्धि हुई। कविता के इतिहास में छायावाद की परिधि आधुनिक काल के भीतर ही है। यह सर्वविदित है कि छायावाद आधुनिक हिंदी कविता का वह महत्त्वपूर्ण काव्यांदोलन है जिसने न केवल कवियों की वैयक्तिक अनुभूति को सामाजिकता के साथ जोड़ा वरन् जिसका महत्त्व इस दृष्टि से भी बढ़ जाता है कि स्वातंत्र्य चेतना और मुक्ति की भावना को भी इसने स्वर प्रदान किया। छायावाद और अंग्रेजी रोमांटिक कविता के पारस्परिक साम्य-वैषम्य और प्रभाव की चर्चा हिंदी आलोचना में की जाती रही है। इस दृष्टि से पुस्तक में संकलित आलेख 'छायावाद और अंग्रेजी रोमांटिक कविता का तुलनात्मक अध्ययनः सैद्धांतिक पक्ष' में विचार करने की कोशिश की गई है।

आधुनिक हिंदी कविता के क्षेत्र में अज्ञेय के संपादन में सप्तकों का प्रकाशन ऐतिहासिक महत्त्व की बात है। प्रयोगवाद के पुरस्कर्ता के रूप में अज्ञेय प्रसिद्ध हैं। पुस्तक में संकलित अज्ञेय संबंधी अनेक निबंध उनके अलक्षित पक्षों पर प्रकाश डालते हैं। भवानीप्रसाद मिश्र, धर्मवीर भारती, केदारनाथ सिंह, अरुण कमल, मत्स्येन्द्र शुक्ल की कविताओं की परख संबंधी आलेख पुस्तक में संकलित हैं।

हिंदी साहित्य में पूर्वोत्तर भारत की उपस्थिति लगभग नगण्य रही है और प्रायः यह हाशिये पर रहा है। पुस्तक में पूर्वोत्तर भारतीय साहित्य से संबंधित अनेक लेख भी संकलित हैं। इक्कीसवीं सदी की हिंदी रचनाशीलता से संबंधित लेखों की भी पुस्तक में उपस्थिति है। कविता, उपन्यास, कहानी और आलोचना संबंधी लेखों को पुस्तक में संकलित कर समग्रता प्रदान करने का विनम्र प्रयास मैंने किया है।

अपनी इस पुस्तक के प्रकाशन के अवसर पर सबसे पहले मैं परमपिता परमेश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करता हूँ। मैं अपने यशःशेष पिताजी डॉ.

काशीनाथ शंखधर की स्मृति को नमन करता हूँ जिन्होंने आरंभ से ही मेरे लेखों को पढ़कर अपने विद्वत्तापूर्ण सुझावों और प्रशंसात्मक प्रतिक्रियाओं से सदा ही मेरा उत्साहवर्धन किया। आदरणीय प्रो. दिनेशकुमार चौबे, प्रोफेसर, पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग के प्रति अत्यंत कृतज्ञ हूँ जिन्होंने आशीर्वचन लिखकर मुझे कृतार्थ किया और मेरा उत्साहवर्धन किया। तुलसीसाहित्य के मर्मज्ञ विद्वान परमादरणीय प्रो० हरिशंकर मिश्र, प्रोफेसर एमरिटस, लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रति श्रद्धानत हूँ जिनका पुत्रवत् स्नेह मुझे मिलता रहता है। इस पुस्तक को प्रकाश में लाने के लिए आपने मुझे निरंतर ही प्रेरित-प्रोत्साहित किया। आदरणीय गुरुवर प्रो० सुशीलकुमार शर्मा (अंग्रेजी विभाग, इलाहाबाद वि.वि.) के प्रति भी अपनी हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। अपनी बहनों-डॉ. सरोज सनाढ्य, डॉ. अर्चना शंखधर शर्मा और श्रीमती आराधना शंखधर मिश्र को भी सादर नमन करता हूँ। मेरी धर्मपत्नी डॉ. मनीषा मिश्र के द्वारा मिले निरंतर प्रोत्साहन, सहयोग और शुभकामनाओं के बिना पुस्तक का प्रकाशित रूप में आ पाना संभव नहीं था, अतः उन्हें साधुवाद। प्रियवर आशुतोष मिश्र और अपने शोध छात्रों - डॉ. के-एच. अरुणा देवी, डॉ. वाइखोम चींखैडानबा तथा सुश्री लाजम रोमी देवी को भी मैं साधुवाद देता हूँ, जो मेरे अनेक लेखों के पहले पाठक रहे हैं। इस पुस्तक के लेखन में ज्ञात-अज्ञात रूप में जिन मनीषियों से मुझे सहायता प्राप्त हुई है, उनके प्रति मेरा सादर नमन।

Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question
By continuing, I agree to the Terms of Use and Privacy Policy
Book Categories