भारतवर्ष के बिहार राज्य की नालन्दा की भूमि पुराने समय से ही अपने बुद्धिरुपी प्रदीपों से अंधेरे को नष्ट करने वाले ज्ञानी लोगों तथा संसार के अंधेरे को नष्ट करने में महान् प्रदीपों जैसे महाविहारों की जन्म भूमि रही है, इसमें कोई भी संदेह नहीं है। जिस प्रकार पुराने समय में इसी भूमि में भगवान् बुद्ध के मुख्य शिष्य सारिपुत्त और मोग्गलान तथा बुद्ध वचनों के चिरकाल तक बने रहने में मुख्य प्रयोजक महाथेर महरकाश्यप ने जन्म लिया और कठोर प्रयास द्वारा समस्त लोक में धर्म और ज्ञान के उजेले को बिखेरा ठीक इसी प्रकार अनेक सदियों तक अपने मूल उत्पत्ति के स्थान जम्बुद्वीप में लुप्त हो चुके मागधी में संग्रह किए गए बुद्ध वचनों के पुर्नजीवन के लिए इसी मगध भूमि में एक कठोर प्रयास करने वाला तथा दृढ़ इच्छाशक्ति वाला ज्ञानी व्यक्ति प्रकट हुआ जो इस लोक में जगदीश काश्यप नाम से प्रसिद्ध हुआ और जिसने बुद्ध धर्म की लुप्त हो चुकी परम्परा के पुर्नजीवन के लिए प्रयास करे हुए इसी मगध भूमि में नव नालन्दा महाविहार की स्थापना की और सम्पूर्ण पालि-त्रिपिटक को देवनागरी लिपि में प्रकाशित करा कर बुद्ध के वचनों के व्यापक प्रसार का काम किया।
यह मगधपुत्र महापुरुष 1908 ई. में बिहार राज्य में राँची नगर में उत्पन्न हुए। राँची एवं पटना में प्रारंभिक शिक्षा लेकर महापुरुष ने 1931 ई. में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की दर्शनशास्त्र विषय में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। बाद में संस्कृत विषय में भी इसी विश्वविद्यालय से एम.ए. की उपाधि लेकर वे शब्द विद्या और हेतु विद्या आदि ज्ञान की शाखाओं में पारंगत हो गए। आगे चलकर इन्होंने महापंडित राहुल सांकृत्यायन के प्रभाव और सहायक में बुद्ध धर्म का ज्ञान पाने के लिए श्रीलंका में स्थित विद्यालंकार परिवेण में प्रवेश किया। इसी परिवेण में उन्होंने सैद्धान्तिक ज्ञान को बढ़ाने के लिए बुद्ध वचनों में कुशलता को सूचित करने वाली त्रिपिटकाचार्य की उपाधि प्राप्त की।
बुद्ध वचनों के प्रसार के लिए संकल्प लिए हुए महाथेर काश्यप ने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कठोर प्रयास किया। मागधी अथवा पालि की उत्पत्ति का मूल स्थान मगध महाजनपद मगधपुत्र काश्यप महोदय के लिए विशेष तौर पर उत्प्रेरक बना रहा।
तरुण अवस्था में ही काश्यप महोदय ने नालन्दा के विश्व प्रसिद्ध पुराने महाविहार को पुनर्जीवित करने का उत्तम संकल्प ले लिया था। नालन्दा के प्राचीन महाविहार के पुनर्जीवन के लिए बिहार राज्य के प्रशासन में 1951 में नव नालन्दा महाविहार की स्थापना की। पुर्नजीवन के इस ऐतिहासिक कार्य को प्रारम्भ करने में भिक्षु जगदीश काश्यप की कल्पनाओं से भरी योजना मुख्य रूप से प्रेरणास्त्रोत थी। इसी वर्ष के नवम्बर मास की 20वीं तिथि में भारत गणराजय के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद महोदय ने महाविहार की आधारशिला रखी तथा 1956 ई. के मार्च में भारत के उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन महोदय ने प्रथम भवन के मुख्यद्वार का उद्घाटन किया। तभी से लेकर आज तक प्राचीन महाविहार की शिक्षणचर्या का अनुसरण करता हुआ यह नव नालन्दा महाविहार परम्परागत प्राचीन भारतीय विद्याओं विशेषकर बौद्ध चिन्तन से संबंधित विद्याओं से शिक्षण, शोध और प्रशासन के तीन तरह के कार्यों को करने को करते हुए उत्तम मानव के निर्माण का विशेष कार्य भी करने के लिए सुदृढ़ प्रयास कर रहा हैं यह महाविहार दिवंगत महाथेर काश्यप जी का जीवित कीर्ति स्तम्भ होकर संसार में धर्म के प्रकाश को बिखेर रहा है।
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