कन्नड़ साहित्य में आधुनिक कहानी का आरम्भ भारत की अन्य भाषाओं की तरह ही 18वीं शती के अन्त और 19वीं शती के आरम्भ में हुआ। उसके विकास को स्थूल रूप से चार भागों में विभाजित किया जा सकता है-नवोदय युग (1900 से 1940), प्रगतिशील युग (1940 से 1950), नव्य युग (1950 से 1970-75) और दलित अथवा बंडाय युग (1975-)। यह एक मोटा-सा विभाजन है, ऐसा नहीं कि एक युग की समाप्ति के बाद दूसरे का आरम्भ हुआ, एक के बाद दूसरा साथ-साथ भी चला है। 1900 में 'सुवासिनी' नाम की पत्रिका में अनेक कहानियाँ प्रकाशित हुईं। इनमें पंजे मंगेशराय लिखित 'कमलपुर के होटल में' विशेष उल्लेखनीय है। लगभग इसी समय मंगलूर की तरफ़ के एम.एन. कामत की 'मल्लेशिय नल्लेपरू' (मल्लेश की सहेलियाँ) को भी ख्याति मिली। केरूर वासुदेवाचार्य ने (1866-1922) स्वसम्पादित 'सचित्र भारत' पत्रिका में अपनी कहानियाँ प्रकाशित कीं जिसका कन्नड़ कहानी के विकास में ऐतिहासिक महत्त्व है। आधुनिक कहानी की तकनीक उन कहानियों में न भी रही हो, हास्य, रेखाचित्रण और संवेदनशीलता की इन कहानियों में प्रधानता है। यह स्पष्ट है कि कहानी के इस आरम्भिक विकास में पत्र-पत्रिकाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
वास्तव में कन्नड़ कहानी का जनक श्रीनिवास (मास्ति वेंकटेश अय्यंगार) (1891-1985) को ही माना जाता है। मास्तिजी की पहली कहानी 'रंगम्मा की शादी' 1910 ई० में प्रकाशित हुई। बाद में सन् 1920 ई० में उनका प्रथम संकलन 'केलवु सण्ण कथेगलु' (कुछ छोटी कहानियाँ) के नाम से प्रकाशित हुआ। फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और वे जीवन के अन्तिम दिनों तक लिखते रहे। उन्होंने 100 से भी ऊपर कहानियाँ लिखीं। उन्होंने आरम्भ से ही कहानी को एक नया रूप प्रदान किया जिसमें किसी प्रकार की अनिश्चितता नही है। कहानी की तकनीक और जीवन दृष्टि दोनों ही में प्रबुद्धता नज़र आती है। आलोचकों के अनुसार मास्ति के जीवन की छाप 'कहानी कही गौतमी ने', 'हेमकूट से लौटने पर', 'एक पुरानी कहानी', 'परकाय प्रवेश', 'वेंकट की पत्नी', 'दही वाली मंगम्मा', 'वेंकटशामी का प्रणय' आदि कहानियों में स्पष्ट दिखाई देती है। यह सभी कहानियाँ भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित मास्ति के कहानी संग्रह 'परकाय प्रवेश' में सम्मिलित हैं। कुछ लोगों का कहना है कि मास्तिजी रूढ़िवादी रहे। परन्तु यह संकुचित दृष्टिकोण की आलोचना ही कही जाएगी। जीवन की पीड़ा, विसंगति, अन्याय, दुष्टता आदि का बोध मास्ति को खूब था; अन्याय के शिकार होनेवालों से मास्तिजी को सहानुभूति थी। जीवन सुखी और स्वस्थ होना चाहिए। यही उनका आदर्श था; और यह उनकी कहानियों में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। 'वेंकट की पत्नी' एक बड़ी ही क्रान्तिकारी कहानी है। वेंकट की पत्नी को वेंकट का मालिक रखैल के रूप में रख लेता है। कुछ समय बाद जब वेंकट की पत्नी बच्चा गोद में लेकर वापस लौट आती है तब यह सन्देह उठता है कि बच्चा किसका है। पूछने पर वेंकट के मुँह से निकलता है, "बच्चा किसी का हो तो क्या? यह तो बाल गोपाल होता है। उसे पालने वाले भाग्यशाली होते हैं।"
मास्ति का प्रभाव अपने समकालीन तथा बाद में आने वाली पीढ़ी के कहानीकारों पर पड़ना स्वाभाविक था। प्रसिद्ध कहानीकार आनन्द, के. घोपालकृष्ण राव, सी. के. वेंकटरामय्या, भारती प्रिय, अश्वत्थ, गोरूर रामास्वामी अय्यंगार, सम०वी० सीमा रामय्या मास्ति के प्रभाव से ही कहानी के क्षेत्र में आये थे। मास्ति जैसी जीवन-दृष्टि न होने पर भी इन लोगों ने उनके कहानी लेखन के ढंग को अपनाया। उनमें सबसे प्रमुख कहानीकार आनन्द (अज्जमपुर सीताराम 1902-1962) थे। इनकी 'नानु कोन्द हुडुगी' (लड़की जिसे मैंने मार डाला) बड़ी ही प्रसिद्ध कहानी है। इसमें देवदासी प्रथा और उनके करुणापूर्ण जीवन की झलक मिलती है। दूसरा प्रसिद्ध नाम है आनन्दकन्द (बेट्टगेरी कृष्ण शर्मा) (1900-1982) का। उनकी कहानियों में मध्य वर्ग के जीवन के साथ-साथ ग्रामीण जीवन का भी चित्रण है। कुछ कहानियाँ ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर भी लिखी गयीं। ग्रामीण जीवन की समस्याएँ तथा उनके साहस का परिचय कराने वाले ये पहले कहानीकार हैं। 'माल की हक', 'जाडर जानप्पा' आदि कहानियों में प्रगतिशील कहानी का पुट मिलता है।
कन्नड़ में शुद्ध हास्य लिखने वाले पहले कहानीकार हैं गोरूर रामस्वामी अय्यंगार (1904-) 'कोर्टनल्लि गेद्दा एनु' (कोर्ट में जीता बैल) इनकी एक बड़ी प्रसिद्ध हास्य कथा है। इसका सार है कोर्ट में जाने वाले पक्षधर और विपक्षी दोनों में कोई भी नहीं जीतता। बीच वाला बैल जीत जाता है। यानी कोर्ट में जाकर किसी को न्याय नहीं मिलता। क़ानून के बखेड़ों में न्याय कुछ और ही ढंग का मिलता है।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist