प्रेम की विकल्पहीनता की कहानियाँ
मनोहर काजल की कहानियों को तभी से पढ़ता आ रहा हूँ..... जब से उनकी कहानियों का एक प्रकाशन का अच्छा दौर शुरू हुआ था..... काजल की कहानियों को तब पढ़ना जैसे अपने आपको अपने परिवेश में पाना था . जो हमारे आस पास है..... जो हमें आन्दोलित कर रहा है..... उत्प्रेरित कर रहा है रचने के लिए..... पर सही मायने में वह सब कुछ........ एक रचनाकार की हैसियत से जैसे मैं उसे पकड़ नहीं पा रहा था..... मेरा देशज मन..... शब्दों से मुठभेड़ करता..... पर जैसे कोई बात नहीं बनती .... वही एक दूसरा रचनाकार जिसे हम मनोहर काजल के नाम से जानते हैं ..... वहीं सब कुछ बड़ी मन को सहजता से अपनी रचनात्मकता में समेटकर अभिव्यक्त कर रहा है छू रहा है..... और सब कुछ अपना सा लग रहा है
दरअसल उन कहानियों में शायद काजल को उस समय पढ़ना ..... मेरी रचनात्मकता की नियति और एक प्रकार से कसौटी सी बन गया था बुन्देलखंड की जो भूली बिसरी छवि और सहज देशज अंतरंगता की भाव प्रवणता मेरे मन को छू रही थीं..... वह एकदम मेरी अपनी सी लग रहीं थी बस मैं उसे अपने ढंग से अपनी रचनाओं में जैसे अभिव्यक्त सा नहीं कर पा रहा था..... काजल की कहानियों से जुड़ाव..... कुछ ऐसे ही रचनात्मकता के दौर में शुरू हुआ था और उसी फिर धीरे धीरे एक अनजाने अपने पन की आत्मीयता से सरोबार होकर वह प्रगाढ़ होता गया ..... उसमें स्नेह भी था .. और एक सहज सखा भाव भी था ..... और फिर बुन्देलखंड की अपनी धरती का बुन्देलीपन तो था ही हटा और दमोह के बीच में बस एक नदी की रेखा ही तो खिंची है
अपने उस समय के दौर में काजल की कहानियों में बुन्देल खंड की जीवन संवेदनायें और जीवन संस्कृति अपनी संपूर्ण अतरंगता से उभर रही थी बुन्देल की चरित्रों की बनक उनक बुन्देली प्रकृति की रास रंग भरी छवियाँ उनके कथाफलक में एक नया आयाम रच रही थी ... इन सबके बावजूद जो बेहद आकर्षक और अपनी लगने वाली उजास इन कहानियों में थीं..... वह थी प्रेम की गहरी और आत्मीय उड़ान का एकाएक आकाश बन जाना ..... यह आकाश एक अनासक्त मन का विस्तार था..... आसक्ति और अनासक्ति का धूप छाँही मन काजल की कहानियों में बुन्देली स्त्री की समान भाव भूमिका को प्रकट करता हुआ चरित्र अपनी निश्छलता में बिल्कुल अपने करीब सा लगता था ..... काजल अपनी कहानियों में संबंद्धों के सूत्रों को बटने वाले भी थे और संबंद्धों के सूत्रों को गठियाने वाले भी.... उनकी कहानियाँ संबंद्धों के भीतर से ऊष्मित प्रेम के ताप को एक मानवीय गरिमा भरी आँच के साथ एक अंतरंग आत्मीय स्वस्फूर्त ऊर्जा भी देती है..... शायद इसी लिये काजल की आँचलिक कहानियों ने कहीं बहुत गहरे से मुझे छुआ भी है...
......यह नया कहानी संकलन मेरे हाथ में है..... यद्यपि उसी आकाशीय विस्तार के प्रेम की उजास और उत्ताप की अंतरंगता में रचा बसा है ... किन्तु इसमें काजल का लोक नहीं है..... अर्थात् काजल का बुन्देल खंड नहीं है..... इसमें प्रेम की अनुभूति को रचनाकार ने लोकोत्तर बनाने की पहल सहज मानवीय चेतना के स्तर पर की है... और उसमें सफल भी हुए हैं इस संकलन की सभी कहानियाँ भाव की सान्द्रता में अपना विस्तार करती हैं नारी और पुरुष के बीच जो रागात्मकता का संसार अनेक क्षितिज रचता रहता है ..... वे क्षितिज इन कहानियों में अपनी पूर्णता के साथ उभरकर आते हैं..... इन कहानियों में मानव मन की अतल गहराईयों में डूबकर जिस सत्य की तलाश की गयी है ... वह सत्य मन के उस दुर्निवार आकर्षण में स्पष्ट होता है जो अपने लिये कोई विकल्प नहीं छोड़ता है, संभवतः प्रेम की विकल्पहीनता ही इन कहानियों का केन्द्रीय तत्त्व है
काजल छायाकार और उत्कृष्ट चित्रकार भी हैं..... कहानियों की कहन और गठन दोनों में उनकी यह प्रतिभा सहज नैसर्गिक रूप से अपनी चित्रमयता के साथ परिलक्षित होती है..... प्रकृति चित्रण में जिस बिम्ब धर्मिता के सहयोग से वे अपने कथा दृश्य को विकसित करते हैं..... वे सब मानों उनके कथ्य का पूर्व रंग रूप बनकर ही आते हैं
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