सीमाएँ माएँ किसी भी प्रदेश के संगीत को अपनी परिधि में बाँध नहीं सकी हैं। संगीत ने सबसे ऊपर समस्त चराचर को अपने नादात्मक पंखों के आवरण में इस प्रकार ढक रखा है कि सभी जीव-जंतु एवं मनुष्य संगीत के जादुई प्रभाव से मोहित रहते हैं। यह उक्ति उस समय और भी सार्थक हो जाती है जब संगीत के स्वर में प्रकृति का नैसर्गिक संगीत घुला हो। डॉ. ज्योत्सना द्वारा लिखित पुस्तक 'लोकगीतों में सांगीतिक एवं सौंदर्यात्मक तत्त्व' इस दिशा में सार्थक प्रयास है। इस पुस्तक में लेखिका ने लोकगीतों के विशिष्ट गुणों एवं विशेषताओं का सुंदर वर्णन किया है। श्रुति-स्वर संबंध, स्वरों के लगाव, ताल-लय तथा स्वर-रसोत्त्पत्ति का लोकगीतों के संर्दर्भ में सुंदर विवेचन प्रस्तुत किया है। लोकगीतों के संगीतिक एवं सौंदर्यात्मक तत्त्वों का हिमाचल प्रदेश के विवाह संस्कार लोकगीतों के संदर्भ में सारगर्भित आंकलन सराहनीय है। लेखिका ने लोकगीतों में प्रयुक्त श्रुति-स्वर समन्वय को सुंदर एवं सरल ढंग से प्रस्तुत किया है। हिमाचल प्रदेश के लोकगीतों में प्रस्तुत गमक तथा मींड से उत्त्पन्न विशेष प्रकार की खनक एवं माधुर्य गुणों से पाठकों को अवगत कराने का प्रयास किया गया है।
लेखिका स्वयं एक लोक गायिका है तथा लोक आस्थाओं एवं परंपराओं में पूर्ण आस्था रखती है। मैं इन्हें अपनी शिष्या के रूप में पाकर गर्वित अनुभव करती हूँ। छोटी सी आयु में पुस्तक लेखन के साहस के लिए ये बधाई की पात्र हैं।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि डॉ. ज्योत्सना का यह प्रयास संगीत के उन सभी पाठकों के लिए लाभप्रद है जिन्हें अपनी माटी के गीतों से प्यार है।
शोध-क्षेत्र में भी यह पुस्तक मील-पत्थर साबित होगी।
लो कगीत लोक साहित्य की महत्त्वपूर्ण विधा है। लोक साहित्य को लोक संस्कृत का सुदृढ़ स्तंभ माना जाता है। लोकगीत, लोक कला, लोक गाथा, लोक नृत्य सामाजिक संस्कार आदि लोक संस्कृति के पोषक तत्त्व हैं। सामाजिक संस्कार किसी भी समाज की संस्कृति की रीढ़ होते हैं। संस्कारों के निर्वहन के बिना कोई समाज उन्नति नहीं कर सकता तथा वह शीघ्र ही पतन के गर्त में समा जाता है।
हिंदू धर्म के अनुसार प्राचीन काल में प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपने जीवन में सोलह संस्कारों का निर्वहन करना अनिवार्य माना जाता था। ये संस्कार जन्म से मृत्यु तक पूरे किए जाते थे। आजकल आधुनिकता की दौड़ में सामाजिक संस्कारों की संख्या घटकर चार अथवा पाँच रह गई है। इन संस्कारों में गर्मधारण, जन्म, नामकरण, मुंडन, यज्ञोपवीत, विवाह तथा मृत्यु संस्कार को ही प्रमुखता दी जाती है। इन संस्कारों में विवाह संस्कार समाज के प्रत्येक वर्ग तथा जाति के लिए अनिवार्य सामाजिक कर्त्तव्य माना जाता है। विवाह स्त्री-पुरुष को गृहस्थ जीवन की ओर उन्मुख करता है जहाँ वे पति-पत्नी के रूप में परिवार की वंश वृद्धि करते हैं। विवाह संस्कार का उद्देश्य संतानोत्पति करना तथा परिवार स्थापना करना होता है। विवाह संस्कारों को संपन्न करते समय कुछ रीतियाँ पूर्ण की जाती हैं। उन रीतियों को संपन्न करते समय लोकाचार में लोकगीत गाए जाते हैं। उन गीतों को वैवाहिक संस्कार लोकगीत कहते हैं। ये गीत मानस पुत्र-पुत्रियों के कोकिला कंठों से निकली स्वर तथा लय में बंधी गेय रचना होती है जो शास्त्रीय नियमों तथा साहित्यिकता से दूर उनकी मौखिक एवं मौलिक रचनाएँ होती हैं। ये गीत स्वतः एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को स्थानांतरित होते रहते हैं।
"हिमाचल प्रदेश के लोकगीतों" से मिलते-जुलते विषयों पर पहले भी कार्य हो चुका है। इस श्रृंखला में देवराज शर्मा द्वारा लिखित "हिमाचल प्रदेश अतीत, वर्तमान, भविष्य एक झलक", डॉ. मनोरमा शर्मा द्वारा लिखित "लोक मानस के सुरीले स्वर", डॉ. पद्माचंद्र कश्यप की "हिमाचल प्रदेश ऐतिहासिक और सांकृतिक अध्ययन", डॉ. चमनलाल वर्मा की "मंडयाली सांस्कृतिक एवं सांगीतिक अध्ययन", ओमचंद हांडा की "पश्चिमी हिमालय की लोककलाएँ" तथा पहाड़ी "लोकगीत", डॉ. परमानंद बंसल द्वारा लिखित "हिमाचली लोक नाट्य धाज्जा सांस्कृतिक तथा सांगितिक अध्ययन" तथा मदिरा घोष द्वारा लिखित अंग्रजी भाषा में "फोक म्युज़िक ऑफ दी हिमाल्याज़" आदि पुस्तकें अग्रणी हैं। इन विद्वानों ने हिमाचल प्रदेश के लाकगीतों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। इन्होंने लोकगीतों की सांगीतिक विशेषताओं का उल्लेख किया है। इन विद्वानों ने विवाह संस्कार लोकगीतों की बहुत कम चर्चा की है और यदि कुछ विद्वानों ने विवाह अवसर पर गाए जाने वाले गीतों की चर्चा भी की है तो वह पर्याप्त नहीं है।
"लोकगीतों में सांगीतिक एवं सौंदर्यात्मक तत्त्व, हिमाचल प्रदेश के विवाह संस्कार गीतों के परिप्रेक्ष्य में," विषय पर कोई पुस्तक प्राप्त नहीं है। यह विषय अछूता तो नहीं है किंतु पूणरूपेण इसी विष्य पर कोई पुस्तक उपलब्ध नहीं है। लेखिका ने भी इन गीतों के अपार भंडार में से कुछ बूँदें समेट कर पुस्तक लिखने का साहस जुटाया है। इस विषय पर लेखन की अनेक संभावनाएँ अभी भी शेष हैं। विद्वानों के लेखन से प्रेरणा लेकर लेखिका ने इस विषय को लेखन हेतु चुना। लेखिका का उद्देश्य हिमाचल प्रदेश के विवाह संस्कार लोकगीतों का संकलन प्रस्तुत करना नहीं है बल्कि इन लोकगीतों की विशेषताएँ, संगीतात्मक विवेचन, रागाधार, तालात्मक गुण तथा स्वर-सौंदर्य की व्याख्या करना भी उसका मूल प्रयास है।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist