पुस्तक परिचय
1970-80 के दशक में बनायी गयी समान्तर सिनेमा की पिक्चरें 'कला फ़िल्में' कहलाती थीं। नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल, शबाना आज़मी, ओम पुरी, फ़ारूख शेख, पंकज कपूर, अनन्त नाग, गिरीश कर्नाड आदि के चेहरे नियमित रूप से उनमें नजर आते। उन फ़िल्मों ने दर्शकों की सामाजिक चेतना और कलात्मक रुचियों को जगाया था और फ़िल्म माध्यम से उनकी अपेक्षाओं को उठाया था। यह किताब भारत के उसी समान्तर सिनेमा आन्दोलन के प्रति अनुराग और अतीत-मोह का परिणाम है और उस भूले-बिसरे पैरेलल सिनेमा के प्रति आदरांजलि है। उसकी भावभीनी याद आज भी अनेक फ़िल्म-प्रेमियों के मन में बसी होगी, और यह किताब उसी याद को पुकारती है। किताब की एक विशिष्टता उसमें भारतीय कला-सिनेमा के शलाका-पुरुष मणि कौल की फ़िल्मों पर एकाग्र पूरा खण्ड है। मणि की 12 फ़िल्मों पर लिखी इन टिप्पणियों को उनके रूपवादी-सिनेमा पर एक सुदीर्घ-निबन्ध की तरह भी पढ़ा जा सकता है।
लेखक परिचय
13 अप्रैल 1982 को मध्यप्रदेश के झाबुआ में जन्म।
शिक्षा-दीक्षा उज्जैन से। अँग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर । एक साल पत्रकारिता की भी अन्यमनस्क पढ़ाई की। भोपाल में निवास ।
कविता की 4 पुस्तकें 'मैं बनूँगा गुलमोहर', 'मलयगिरि का प्रेत', 'दुख की दैनन्दिनी' और 'धूप का पंख' प्रकाशित।
गद्य की 16 पुस्तकें प्रकाशित, जिनमें लोकप्रिय फ़िल्म-गीतों पर 'माया का मालकौंस', क़िस्सों की किताब 'माउथ ऑर्गन', रम्य-रचनाओं का संकलन 'सुनो बकुल', महात्मा गांधी पर केन्द्रित 'गांधी की सुन्दरता', जनपदीय-जीवन की कहानियों का संकलन 'बायस्कोप', अन्तः प्रक्रियाओं की पुस्तक 'कल्पतरु', विश्व-साहित्य पर 'दूसरी क़लम', भोजनरति पर 'अपनी रामरसोई', स्त्री-पुरुष सम्बन्धों पर 'पवित्र पाप', भ्रमणरति पर 'बावरा बटोही', विश्व-सिनेमा पर 'देखने की तृष्णा', लोकप्रिय विज्ञान पर 'आइंस्टाइन के कान', फुटबॉल पर 'मिडफील्ड', सत्यजित राय के सिनेमा पर 'अपूर्व संसार', रजनीश पर 'मेरे प्रिय आत्मन्' और पशु-अधिकारों पर 'मैं वीगन क्यों हूँ' सम्मिलित हैं। यह 21 वीं पुस्तक ।
स्पैनिश कवि फ़ेदरीको गार्सीया लोर्का के पत्रों की एक पुस्तक, चित्रकार सैयद हैदर रजा की आत्मकथा और अँग्रेज़ी के लोकप्रिय लेखक चेतन भगत के छह उपन्यासों का अनुवाद भी किया है। 'सुनो बकुल' के लिए वर्ष 2020 का स्पन्दन युवा पुरस्कार।