21वीं शताब्दी के तीसरे दशक का परिदृश्य बिल्कुल बदला हुआ है। आज बच्चों पर पढ़ाई और होमवर्क का बोझ बढ़ गया है। ऐसे समय में बाल साहित्य लिखना चुनौतीपूर्ण कार्य है। हमारे बचपन में पुस्तकें ही हमारी साथी थीं, परंतु आज बच्चे के पास टी.वी., कम्प्यूटर, मोबाइल जैसे अनेक साथी हैं। परन्तु मेरा मत है कि बाल साहित्य का कोई विकल्प नहीं हो सकता। साहित्य पढ़ने से बच्चे की भाषा तो समृद्ध होती ही है, साथ ही संवेदनशील, कल्पनाशीलता और रचनात्मक क्षमता का भी विकास होता है। मनोरंजन, ज्ञानवृद्धि और नैतिक शिक्षा तो साहित्य से प्राप्त होते ही हैं। बाल साहित्य का विशिष्टता यह है कि बड़ों के लिए भी इसका अध्ययन आवश्यक हैं, क्योंकि बाल मनोविज्ञान को समझने में यह सहायता करता है।
बाल साहित्य के लिए यह भी जरूरी है कि इसमें सीख ऐसे हो जैसे दूध में चीनी घुली होती है, जो दूध की मिठास को बढ़ाती है। इस चुनौती को इस पुस्तक की लेखिका ने बखूबी समझा है। बाल साहित्य लेखन के क्षेत्र में उनका यह प्रथम प्रयास है। इस कहानी संग्रह में कुल 26 कहानियाँ हैं, इन सभी में दी गई सीख, कहीं भी कहानी की रोचकता में बाधा नहीं डालती।
पुस्तक में श्वेता और शाश्वत की नानी दोनों बच्चों को कहानी सुनाती हैं। बच्चों को कहानियाँ बहुत अच्छी लगती हैं और वे हर दिन कहानी सुनना चाहते हैं। लेखिका ने 'आपसी फूट का परिणाम', 'व्यावहारिक ज्ञान ना होने का परिणाम', 'संगठन में शक्ति है' आदि कहानियों को सीधे 'पंचतंत्र' से ही लिया है।
आज के बच्चों की जीवन-शैली से जुड़ी हुई कहानी हैं 'फास्ट फूड' जो सामायिक भी है और प्रासंगिक भी। बच्चों को दिन-प्रतिदिन के जीवन में प्रेरित करने वाली भी अनेक कहानियाँ हैं, जिनसे जीवन में बदलाव आ सकता है-'आओ बगीचा लागाएँ', 'सब दिन होत न एक समाना', 'बुरी आदत से छुटकारा' इसी तरह की कहानियाँ हैं।
इतिहास से ऐसी कहानियाँ ली गई हैं, जो आम तौर पर हम नहीं जानते हैं। 'आजादी की एक वीरांगना' इसी तरह की कहानी है, जिसमें भगतसिंह की सहयोगी सुशीला दीदी केन्द्र में हैं। पुस्तक की प्रथम कहानी, 'गोगाजी पीर की कहानी' लोकदेवता से परिचय कराने के साथ इतिहास का भी ज्ञान कराती है। 'शुभ्रक' भी इसी तरह की ऐतिहासिक कहानी है जो इतिहास के अछूते पक्ष पर प्रकाश डालती है।
लेखिका ने खेल जगत् पर भी इस संग्रह में अनेक कहानियाँ सम्मिलित की हैं। 'बेटियाँ बेटों से कम नहीं' में खेलों के क्षेत्र में भी बेटियों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया गया है। 'चैंपियन' और 'जज्बा' भी इसी तरह की प्रेरक कहानियाँ हैं।
कुछ कहानियाँ नितांत भिन्न विषयों पर भी हैं, जैसे- 'बारिश की बूँदें' कहानी श्वेता की कल्पनाशीलता और सृजनात्मक प्रवृत्ति और बूँदों के मानवीकरण की कहानी है। 'नौतपा' कहानी पर्यावरण के प्रति जिज्ञासा का समाधान करते हुए जागरूकता बढ़ाती है।
इस प्रकार विभिन्न रंगों और सुगंधों के पुष्पों से सजा यह गुलदस्ता बच्चों को अवश्य पसंद आएगा। इसकी भाषा सरल, सहज और पठनीय है, इसलिए यह अपनी बात भी संप्रेषित कर पाएगा, ऐसा मेरा विश्वास है। लेखिका भविष्य में भी बच्चों के लिए लिखती रहें और अधिक पुस्तकें, यही कामना है।
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist