हिन्दी साहित्याकाश के अनगिनत तारकों में से 'दूसरा तार सप्तक' के प्रमुख तारक नरेश मेहता के बारे में अध्ययन काल से ही मेरी विशिष्ट रुचि रही है। नरेश जी के पूर्वजों का गुजरात से विशिष्ट व विशेष सम्पर्क एवं सम्बन्ध रहा है। इनके लेखन को हिन्दी सेवी संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने पर नरेशजी की रचनाओं का अध्ययन-विस्तार दिन दूना रात चौगुना विस्तृत होता गया। मैंने इनके मिथकीय थीम को प्रस्तुत करने का विशिष्ट दृष्टिकोण देखते हुए अपने शोधकार्य के विषय के रूप में नरेशजी को चुना।
विश्व-वाङ्मय में सबसे अधिक कविताएँ लिखी जाती हैं जो हमारी रागात्मक चित्तवृत्ति की अभिव्यक्ति का परिणाम हैं। कविताएँ बौद्धिकता के स्तर पर दिमाग को नहीं तराशर्ती वैसे वे हृदय से सीधे अपील करती हैं। छात्रावस्था से ही मेरी संवेदनात्मकता ने मुझे कविता की रूह के प्रति आकर्षित किया। मेरे अध्यापक मित्रों द्वारा, मेरे गुरुजनों द्वारा कविता के मर्म और नरेश मेहता के कविता कर्म को प्रस्तुत करने की विशिष्ट दृष्टि ने मुझे और लालायित किया। 23 जुलाई 1993 को मैंने आकाशवाणी, भुज (गुजरात) में नरेश मेहता की साहित्य-साधना पर 'रेडियो टाक' के दौरान उनके रचना संसार को बहुत करीब से देखा। इनमें निरूपित मानवीय संवेदनाओं एवं शाश्वत् मनुष्यता को देखते हुए नरेश मेहता के वैश्विक वसुधैव कुटुम्बकम् को हिन्दी साहित्य जगत के सामने उजागर करने का संकल्प किया और यह इसका परिणाम है।
मैंने अपने इस शोधकार्य के लिए गुजरात युनिवर्सिटी ग्रंथागार, गुजरात विद्यापीठ मध्यस्थ ग्रंथागार, सरकारी विनयन कॉलेज गांधीनगर ग्रंथागार, मध्यस्थ ग्रंथालय गांधीनगर तथा एम०एन० कॉलेज ग्रंथालय विसनगर में उपलब्ध प्रकाशित साहित्य,
पत्र-पत्रिकाएँ, भेंट-वार्ताएँ, परिचर्चाएँ आदि स्रोतों से सामग्री संकलित की है। नरेशजी की अधिकांश रचनाएँ राधाकृष्ण प्रकाशन-नई दिल्ली से प्राप्त हुई। नरेशजी के रचनात्मक ग्रंथों की सूची स्वयं नरेशजी के हाथों लिखी चिट्ठी प्रेमचंद सृजन पीठ उज्जैन (मध्य प्रदेश) से प्राप्त हुई। हिन्दी अध्यापक संघ के वार्षिक सम्मेलन, बड़ौदा (गुजरात) में नरेशजी से मेरी भेंट हुई और इन्होंने मुझे शोधकार्य के लिए व्यक्तित्व कृतित्व प्रधान साक्षात्कार भी दिया। नरेशजी के परिवारीजनों से दुर्लभ संकलित सामग्री व जानकारियाँ प्राप्त हुई जिससे मेरा यह कार्य सरल बन पाया।
प्रस्तुत शोध-प्रबंध डॉ० एच०एन० वाघेला के स्नेहपूर्ण निर्देशन में सम्पन्न हुआ है। उन्होंने मात्र निर्देशन ही नहीं किया; मुझ में विश्वास भी जगाया है। शोध-प्रबंध विषय निर्धारण से लेकर सम्पन्न होने तक समय-समय पर सम्यक् मार्गदर्शन एवं आवश्यक संशोधन करते हुए मेरे उत्साह को बल दिया, इसे मैं अपना सौभाग्य ही कहूँगा। यह शोध-प्रबंध उनकी सद्भावना का ही प्रतीक है, उनके प्रति मैं अपना श्रद्धाभाव समर्पित करता हूँ। जिन विद्वानों की कृतियों से यह शोध-प्रबंध सम्पन्न हो सका है उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। प्रस्तुत शोध-प्रबंध का टंकणकार्य सुचारु रूप से करने के लिए मैं श्री जितेन परमार का आभारी हूँ।
इस शोध कार्य को पूर्ण करने में सक्रिय रूप से मेरी हरसंभव सहायता करने वाली मेरी सहधर्मचारिणी श्रीमती कमला के निर्व्याज कार्य को भूलना असंभव है। किसी न किसी सम्बन्ध भाव से जुड़े हुए मेरे आत्मीय जनों ने मेरी हर-हालात में सहायता की है उन सबके प्रति मैं हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।
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