मध्यप्रदेश के मध्य भाग में स्थित तथा माँ नर्मदा के तट पर बसे नरसिंहपुर जिले का इतिहास रोचक है। इसका नरसिंहपुर नाम भगवान नृसिंह के नाम पर पड़ा जिन्हें पौराणिक कथाओं में नृसिंह अर्थात सिंह के सिर वाला मानव अवतार कहा गया है। प्राचीन गुप्तकालीन शिलालेखों के आधार पर कहा जाता है कि चेदि देश के समीप डाहल के वन क्षेत्रों में नरसिंहपुर भी सम्मिलित रहा था। कालांतर में यह क्षेत्र कलचुरि राज्य का एक अंग बन गया, कलचुरि अपने को हैहय या चेदि देश के स्वामी भी कहते थे। गोंड शासकों के अभ्युदय के साथ नरसिंहपुर के इतिहास में एक नये युग का सूत्रपात हुआ। इसी वंश के संग्राम शाह और रानी दुर्गावती ने आगे चलकर संपूर्ण गोंडवाना के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। मराठों के पराक्रम का साक्षी रहा नरसिंहपुर सीताबर्डी के युद्ध के पश्चात सीधा ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया और इसके बाद से यह जिला मराठों और ब्रिटिश के बीच प्रभुत्व की लड़ाई का एक केन्द्र बना रहा। इसीलिए जब 1857 में अंग्रेजों को विरुद्ध क्रांति हुई तो इसका प्रभाव नरसिंहपुर पर भी पड़ा तथा नरसिंहपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों में क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बजा दिया।
सन् 1890 में आर्य समाज के संस्थापक और भारतीय पुनरुत्थान आंदोलन के प्रणेता स्वामी दयानंद सरस्वती तथा लोकमान्य तिलक के जबलपुर प्रवास से यह क्षेत्र स्वाधीनता आंदोलन के प्रभाव से अभिसंचित हुआ।
इसी प्रकार 1933 में गांधीजी का नरसिंहपुर आगमन यहाँ के स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास की क्रांतिकारी घटना थी। आंदोलन के इस चरण में जिले के स्वतंत्रता सेनानियों को देश के वरिष्ठ नेताओं विष्णुदत्त शुक्ल, सरोजिनी नायडू, पं. सुंदरलाल तपस्वी, आचार्य कृपलानी, पं. रविशंकर शुक्ल, माखनलाल चतुर्वेदी आदि का संपर्क व सतत मार्गदर्शन भी मिला।
यहाँ के स्वाधीनता आंदोलन में मंशाराम, ठाकुर रुद्रप्रताप सिंह, ठाकुर निरंजन सिंह, गौराबाई, कुंजीलाल दुबे, हरिविष्णु कामथ, सुंदरलाल श्रीधर, श्यामसुन्दर नारायण मुशरान सहित अनेक सेनानियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
प्रस्तुत पुस्तक 'मध्यप्रदेश में स्वाधीनता संग्राम नरसिंहपुर', स्वराज संस्थान संचालनालय की महत्वाकांक्षी परियोजना का परिणाम है जिसके तहत मध्यप्रदेश के समस्त जिलों के स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास पर विस्तृत शोधकार्य कर उन्हें प्रकाशित किया जा रहा है। परियोजना से जुड़े विद्वतजनों तथा स्वराज संस्थान संचालनालय के सहयोगियों का मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
विश्वास है कि यह पुस्तक नरसिंहपुर जिले के स्वाधीनता संग्राम के अल्पज्ञात पक्षों, गुमनाम स्वातंत्र्य वीरों के कृतित्व पर प्रकाश डालने में सफल सिद्ध होने के साथ जनमानस तक स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े तथ्यों, विचारों एवं कार्यों का भी प्रचार-प्रसार करेगी।
सन् 1857 की क्रांति विश्व इतिहास की सबसे बड़ी घटना ही नहीं अपितु दुनिया भर में अंग्रेजी राज और उपनिवेशवादी व्यवस्था के खिलाफ 19वीं सदी की सबसे बड़ी क्रांति भी थी। बहुत व्यापक क्षेत्र में फैली 1857 की क्रांति का संचालन उस दौर में कितना कठिन रहा होगा। एक ओर जहाँ संचार तंत्र कमजोर तथा दयनीय अवस्था में था, वहीं डाक-तार और रेल सभी पर अंग्रेजों का आधिपत्य था।
ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन को मुखर करने में मध्यप्रदेश के महाकौशल का नरसिंहपुर जिला प्रमुख रहा है। जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन सशक्त तथा व्यापक हो रहा था तब उसका प्रभाव देशी राज्यों की जनता पर पड़ने लगा था। वस्तुतः नरसिंहपुर जिले में जो क्रांतिकारी गतिविधियाँ संचालित हुई उनसे सम्बंधित आंदोलनों तथा संघर्षों का इतिहास अतीत के धुंधलके में छुप सा गया, मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। आवश्यकता इस बात की अधिक थी कि जिला नरसिंहपुर के स्वाधीनता समर (सन् 1857 के संदर्भ में) पर शोधकार्य कर अधिक से अधिक जानकारी, उपयुक्त तथ्यों तथा समुचित घटनाक्रमों के साथ प्रस्तुत की जाये। इन्हीं विचारों से प्रेरणा लेकर स्वराज संस्थान संचालनालय द्वारा प्रदत्त 'मध्यप्रदेश में स्वाधीनता संग्राम - नरसिंहपुर' पर यह शोधकार्य किया गया।
इस शोधकार्य को पूर्ण करने के लिये राष्ट्रीय और राज्य अभिलेखागारों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के संस्मरण (पुस्तक में प्रकाशित अथवा उनके परिजनों द्वारा व्यक्त) लेखों एवं भेंटवार्ताओं के माध्यम से नरसिंहपुर के स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े तथ्यों एवं जानकारियों का संकलन करने का प्रयास किया गया है।
यह पुस्तक 'मध्यप्रदेश में स्वाधीनता संग्राम नरसिंहपुर' जिले के लगभग सभी ज्ञात एवं अज्ञात अमर बलिदानियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित है। मैं उन समस्त वरिष्ठजनों का आभारी हूँ जिन्होंने उक्त कार्य के लिये मेरा मार्ग प्रशस्त किया। मैं स्वराज संस्थान संचालनालय, संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश का भी विशेष आभारी हूँ तथा इस पुस्तक में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग के लिए सभी का धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ।
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