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नासिरा शर्मा का कथा साहित्य: संवेदना और शिल्प- Nasira Sharma Ka Katha Sahitya: Samvedana Aur Shilp (Biography)

$18.90
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Specifications
Publisher: Chintan Prakashan, Kanpur
Author Bharati Balkrishna Dhongade
Language: Hindi
Pages: 151
Cover: HARDCOVER
8.5x5.5 inch
Weight 280 gm
Edition: 2018
ISBN: 9789385804267
HBM844
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Book Description
भूमिका 'नासिरा शर्मा का कथा साहित्य संवेदना और शिल्प' यह ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है। यह मेरे लिए अत्यधिक खुशी की बात है। मेरा यह सौभाग्य रहा है कि मुझे पुणे विश्वविद्यालय के अन्तर्गत मराठा विद्या प्रसारक समाज नासिक द्वारा संचालित कला, वाणिज्य एवं विज्ञान महाविद्यालय सायखेड़ा में अध्यापन का सुअवसर मिला। कई वर्षों के ज्ञानार्जन से हिन्दी साहित्य की व्यापकता को आंशिक रूप अनुसंधानात्मक अध्ययन की सूक्ष्म कोशिश की है।

अर्थात् मेरी कर्मभूमि ने मुझे केवल हिंदी साहित्य की ओर आकर्षित ही नहीं किया बल्कि अनुसंधान का एक नया आयाम खोल दिया। साहित्य के किसी भी विधा या विषय को कैसे किस दृष्टि से समझना चाहिए? कैसे उसका विश्लेषण करना चाहिए? कैसे उसकी मूल संवेदना का आस्वाद लें? कैसे विवेचन करें ? कैसे व्याख्यायित करें ? आदि का सूक्ष्म एवं स्थूल अध्ययन मैंने पुणे विश्वविद्यालय से एम.फिल. करते समय किया था। हिंदी साहित्य में चित्रित स्त्री-विमर्श मुझे इंगित करता रहा और मैं उसकी ओर आकर्षित होती रही। मेरे सौभाग्य से प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन शेख के सुझाव और मार्गदर्शन से अस्सी के दशक की उद्योन्मुख स्त्री लेखिका नासिरा शर्मा की कहानियों को पढ़कर समझकर अपने अनुसंधान कार्य हेतु इस विषय को चुना। ' नासिरा शर्मा का कथा साहित्य संवेदना और शिल्प' अनुसंधान हेतु अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से शोधसामग्री को पाँच अध्यायों में विभक्त किया है- प्रथम अध्याय में नासिरा शर्मा का व्यक्तित्व एवं कृतित्व, द्वितीय अध्याय में संवेदना का स्वरूप एवं शिल्प, तृतीय अध्याय में नासिरा शर्मा के कहानी संग्रह में व्यक्त संवेदनाएँ, चतुर्थ अध्याय में नासिरा शर्मा के कथा साहित्य में संवेदना के विविध आयाम और पंचम अध्याय में नासिरा शर्मा के कथा साहित्य का अभिव्यंजना कौशल है।

नासिरा शर्मा जी की कहानियों में 'बंद दरवाजा की शबाना, 'बावली' कहानी की 'सलमा', 'पुराना कानून' की 'रूबीना', 'जुलजुता' की 'डायना', 'खुदा की वापसी की सकीना', 'मिस्र की ममी' की 'योता', 'पतझर के फूल' की अनाहिता, 'गुंगा आसमान की मेहरअंगीज', मुट्ठी भर धूप की 'रेखा, 'इमाम साहब' की 'जुलेखा' ऐसी अनगिनत स्त्री पात्र लगभग बारह देशों की संवेदनाओं को भौगोलिक परिसिमा के दायरे को तोड़ती हुई उनको सामान्य समुदाय से जोड़ती हैं।

पाकिस्तान, बाँग्लादेश, युगाण्डा, अफगानिस्तान, सीरिया, ईरान, इंग्लैंड, जापान, इजरायल, फिलिस्तीन भारत ऐसे अनेक देश-विदेश की स्त्रियों का वर्णन किसी यात्रा संस्मरण की सीमा को तोड़कर उनकी संवेदनाओं को दिल और दिमाग के उन तंतुओं से एक तार में बाँधते हैं जो भारत देश का दस्तावेज बन गई है। यही कारण है कि किसी भी सभ्यता के लिए एक वैश्विक स्तर की कहानियाँ बनते हुए बहुत ऊपर उठ जाती हैं।

समस्त विश्व में सांप्रदायिकता का विष सांझी संस्कृक्ति के निर्माण को नष्ट करती है। यह बिखरा हुआ विश्व या देश जब एकता, समता के सूत्र में पिरोये जायेंगे, तब वह दिन इन्सानी नस्ल का दिन होगा। यही नासिरा शर्मा के कहानियों में संवेदना है, इन संवेदनाओं को पूरा करने हेतु अभी बहुत करना बाकी है, बहुत कुछ मिटाना बाकी है, बहुत कुछ बनना बाकी है, हमारे भारत देश को आज़ाद करने वाले, सभी देशभक्तों, समाज-सेवकों एवं हित चिंतकों की यही विचारधारा थी कि सब एक हों, समान हों परंतु समय की धूसरता से समाज में यह विचार कहीं बेअसर होने लगते हैं। नासिरा जी का यह एक प्रयास मुझे यह किताब लिखने की प्रेरणा प्रदान करता है कि सर्वधर्मसमभाव एवं वसुधैवकुटुंबकम् की भावना जो खासकर स्त्रियों के लिए सबसे जरूरी है, यहाँ मुझे दुष्यंतकुमार की वह गजल की पंक्तियाँ स्मरण आती हैं-

'सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। मेरे सीने में नहीं तो मेरे सीने में सही हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।' हम सबको मिलकर इस स्थिति को बदलने की ऐसी भरकस कोशिश करनी चाहिए कि यह समस्या ही न रहे।

नासिरा शर्मा के शिल्प के संदर्भ में इस किताब के माध्यम से नासिरा जी ने प्रस्तुत कथाओं में जीवन के उन महीन पलों को सार्थक शब्दों में ढालकर एक साफ और दो टूक जवाब दिया है। किसी रहस्यमयी एवं अति संवेदनशील प्रसंगों एवं घटना को स्पष्ट करते हुए बिना किसी घुमावदार सीढ़ियों के चढ़ने या पहेलियों की तरह उलझे शब्दों में कहीं भी किसी घने जंगल की तरह नजर नहीं आती। अर्थात् बिलकुल साफ-सुथरी, सरल शब्दावली, संपन्न शैली में नासिरा जी की कहानियाँ अद्भुत अर्थबोध प्रस्तुत करती हैं।

मेरे शोध-प्रबंध की यात्रा किसी महायात्रा से कम नहीं थी क्योंकि पहली बार महाराष्ट्र से राजस्थान पी-एच.डी. हेतु सफर कर उपाधि प्राप्त करना और उसके उपरांत शोध-प्रबंध का किताब रूप में प्रकाशित होना मेरे लिए किसी महायात्रा से कम नहीं था, इस यात्रा के संपन्न होने में अनेकानेक ऋण, स्नेह आशीर्वाद प्रोत्साहन आत्मीयता का सहयोग रहा है। मेरे शोध निर्देशक पुणे विश्वविद्यालय के अध्ययन मंडल के पूर्व अध्यक्ष, प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन शेख जी की मैं ऋणी हूँ। जिनके मार्गदर्शन के अभाव में शायद ही यह यात्रा गंतव्य तक पहुँच पाती। उनके स्नेह और विशेष ज्ञान ने मुझे अभिभूत किया है।

मेरा सौभाग्य रहा है कि इस कार्य के लिए मेरे परिजन सर्वथा मेरे साथ रहे, मेरा हौसला बढ़ाते रहे। मेरे माता-पिता, बहन-भाई, सास-ससुर, बेटी-बेटा तथा अन्य ज्ञात-अज्ञात मेरे शुभचिंतकों का सहयोग एवं परमात्मा का आशीर्वाद इन सभी के प्रोत्साहन में उनके चरणों में हृदय से नत हूँ।

मेरे पति श्री संजय विठ्ठलराव पाटील ने इस पुस्तक के टंकण के लिए सहायक ग्रंथ सामग्री उपलब्ध कराने में जो सहायता की है उसके लिए मैं अत्यंत कृतज्ञ हूँ।

मेरे इस किताब को पूरा करने के लिए उपयुक्त साहित्य का भंडार उपलब्ध कराने वाले शिवाजी विश्वविद्यालय कोल्हापुर (महाराष्ट्र) जयकर ग्रंथालय पुणे, बिटको महाविद्यालय ग्रंथालय नासिक रोड (महाराष्ट्र) इन ग्रंथालयों के अधिकारियों से तथा जिन ग्रंथों से मैंने सहायता ली है, उन ग्रंथकारों के प्रति हृदय से आभारी हूँ।

चिन्तन प्रकाशन के श्री रामसिंह खंगार को धन्यवाद देना आवश्यक समझती हूँ। जिन्होंने अपने सतत् आग्रह एवं प्रोत्साहन से इस कृति को पुस्तक का रूप देकर मुझे ऋणी बना दिया है।

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