बाल्यकाल से ही श्री गुरुदत्त जी ने राजनीतिक हलचल को सूक्ष्म दृष्टि से देखा। आर्यसमाज का जीवन पर प्रभाव होने के कारण उन्होंने राजनीतिक घटनाओं का युक्तियुक्त विश्लेषण भी किया।
समय-समय पर सक्रिय राजनीति में भी गुरुदत्त जी भाग लेते रहे। अपने अनुभवों को तथा अपने विश्लेषण को श्री गुरुदत्त जी ने अपनी कई रचनाओं में पाठकों के सम्मुख रखा है। इस पुस्तक में श्री गुरुदत्त जी ने राजनीतिक विशेषतया भारतीय राजनीतिक दुर्व्यवस्था का कारण ढूंढने का प्रयास किया है।
भारतीय संविधान में कुछ आधारभूत भूलें हैं, जिनके कारण वर्तमान दुर्व्यवस्था फैली है तथा निरन्तर फैलती जा रही है। इस सम्पूर्ण संविधान में भारतीय चिन्तन का लेश-मात्र भी संकेत नहीं है। अल्प संख्यकों का उल्लेख कर देश में वैमनस्य का बीज बो दिया गया है। धारा 370 बनाकर देश की अखण्डता को धक्का पहुँचा दिया है। लेखक का मत है कि संविधान में मूल-चूल परिवर्तन लाना होगा।
लेखक ने एक आदर्श संविधान की रूपरेखा इस पुस्तक में प्रस्तुत की है। हमें आशा है कि बुद्धिशील पाठकों को इससे प्रेरणा प्राप्त होगी।
भारत देश में व्यवस्था उत्तरोत्तर बिगड़ती जा रही है, यह तो एक अन्धा व्यक्ति भी देख सकता है। भारत की यह दुर्व्यवस्था स्वराज्य प्राप्ति के उपरान्त ही आरम्भ हुई है। महात्मा गाँधी की हत्या के उपरान्त बाबू जयप्रकाश नारायण ने अपने कम्युनिस्ट साथियों के साथ सरदार पटेल के बंगले का घेरा डाल लिया था। यदि श्री जवाहर लाल नेहरू उनको मना न करते तो क्या होता, इसकी कल्पना ही की जा सकती है।
और उससे भी पूर्व वही गाँधी जी, जो यह कहने में संकोच नहीं करते थे कि वह सरकार नहीं हैं, पाकिस्तान को चव्वन करोड़ रुपये दिलवाने के लिए भूख हड़ताल कर बैठे थे।
और फिर पंडित नेहरू के सहयोगी श्री गाडगिल का आरोप है कि नेहरू मंत्री-मण्डल से पूछे बिना विदेशों में राजदूत भेजते थे। इसी प्रकार की दुर्व्यवस्था की अनेक बातें स्वराज्य मिलते ही कांग्रेस राज्य में होने लगी थीं। उस समय राष्ट्र और राज्य में अन्तर नहीं रहा था। वे सब प्रतिबन्ध जो अंग्रेजी सरकार ने युद्ध के दिनों में लगाये थे और जिनके विरुद्ध कांग्रेस गला फाड़-फाड़ कर चीख रही थी, स्वराज्य मिलने पर भी रहने दिये गए।
तब गेहूं 20 रुपये मन था, चीनी 15 रुपये मन थी, चावल 12 रुपये मन था। स्वराज्य मिलते ही इन खाद्य पदार्थों का मूल्य बढ़ने लगा। बीच में कुछ काल के लिए खाद्य विभाग श्री रफी अहमद किदवई के हाथ में आया तो उन्होंने कन्ट्रोल उठवा दिये और मूल्य एकदम गिरे। चीनी, गेहूं, चावल इत्यादि पदार्थ चाँदनी चौक की पटरियों पर बिकने लगे।
परन्तु तब किदवई साहब का विभाग बदल दिया गया और पुनः कन्ट्रोल लागू हो गये। एक मिनिस्टर साहब ने उत्तर प्रदेश में चीनी के जिला कन्ट्रोलर नियुक्त किये और समाचार पत्रों में चर्चा थी कि मिनिस्टर साहब को केवल उत्तर प्रदेश में चीनी के व्यापारियों से पचास लाख की 'टिप' मिली थी।
इसका इलाज कांग्रेस ने समाजवाद समझा और परिणाम यह हुआ कि आज 34 वर्ष स्वराज्य मिले हो गये हैं और कन्ट्रोल एवं राशन अभी तक चल रहे हैं। ऐसा करने पर भी वस्तुओं के मूल्य दिन दुगने रात चौगुने होते जाते हैं। अब गेहूँ की खरीद का भाव हो 120 रुपये प्रति क्विटल से ऊपर है। अर्थात् लगभग 50 रुपये मन है। चीनी 8 रुपये किलो है, चावल 5 से 7 रुपये किलो है। इसी प्रकार अन्य आवश्यकताओं के मूल्य आसमान को छू रहे हैं।""
ज्यों-ज्यों स्वराज्य पुराना होता जाता है महँगाई बढ़ती जाती है। ज्यों-ज्यों सन्तान निरोध का शोर मचाया जा रहा है जनसंख्या द्रुतगति से बढ़ती जा रही है। ज्यों-ज्यों नये-नये कानून बनाए जा रहे हैं अपराधों की संख्या बढ़ती जा रही है। अब तो अशान्ति फैलाने में राज्य अधिकारी और पुलिस भी कदम बढ़ाने लगे हैं।
अंग्रेजी जमाने में पुलिस एक भय का कारण थी परन्तु लेखक को अपना एक अनुभव स्मरण है। हत्या के अपराध की जाँच करते हुए पुलिस उसे पकड़ने आयी थी। उसे खुफिया पुलिस के दफ्तर में पहुँचाया गया और सामान्य प्रश्नों के उपरान्त उसे छोड़ दिया गया था। आज तो अभियुक्तों की, जाँच-पड़ताल से पहले ही आँखें फोड़ दी जाती हैं।
समाचार पत्रों को पढ़ने से दिल बैठने लगता है। कहीं यह लिखा मिलता है कि अमुक व्यक्ति को सुविधाएँ राजनीतिक कारणों से दी गयी हैं। लोक सभाओं, विधान सभाओं में मुक्का-मुक्की के भी समाचार आने लगे हैं।
इस पर प्रश्न उपस्थित होता है कि भूमण्डल के अन्य देशों में भी तो यही कुछ हो रहा है। अमरीका में लगभग एक सौ वर्ष में चार राष्ट्रपतियों की हत्या हो चुकी है। इनके अतिरिक्त एक-दो की हत्या का यत्न भी किया गया है।
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