हमारे साथ जो हो रहा है और हम जो कर रहे हैं, वह संपूर्ण तरीके से समझ आने के लिए, ""हम"" कैसे पैदा हुए? इस धरती पर क्यों आए? इस परिस्थिति में कैसे आए? क्या हासिल करने के लिए आए? यह समझना होगा।
सब समझने के बाद जीवन के प्रति हमारी दृष्टि बदल जाएगी। तब हमें पता चलेगा कि असल में हमें क्या करना चाहिए। इन सब जटिल विषयों के बारें में टोबायस ने ज्ञान दिया है जिसे रेवती देवी ने इस किताब के माध्यम से अत्यंत आसान कर दिया है, और हमें विश्व की रचना समझने में मदद की है। आपका इस किताब को पढ़ना आपकी स्वयं की आत्मा की गहराई को समझना है।
हम समझते हैं कि जो लोग दिव्य दृष्टि या तीसरी आँख रखते हैं उनके अंदर कोई अद्भुत शक्ति होती है, लेकिन ऐसा नहीं है। इस पुस्तक को एक कहानी की तरह पढ़ना काफी नहीं है। इस किताब को जैसे-जैसे पढ़ते जाएंगे, वैसे-वैसे गहराइयाँ समझ में आती जाएंगी और हमारी जागरूकता बढ़ती जाएगी।
२००३ जनवरी के पहले सप्ताह में तिरुपति में हुए कार्यकर्ता के समावेश में पत्री जी ने मुझे बुलाया। वहाँ मुझे एक जिम्मेदारी दी गई ""सारे मानव के औरा का परिशीलन करके सांख्यिकीय गणना करना। उससे जुड़े हुए सारे विवरण ""क्रिम्ज़न सर्किल"" वेबसाइट में हैं। जून तक मुझे एक रिपोर्ट बनाकर उनके सामने पेश करनी थी।
अनुवाद मुझे बहुत पसंद है। जो मुझे पता है उसे दूसरों के साथ बांटना मेरी आदत है। लेकिन जब उन्होंने मुझे यह जिम्मेदारी दी तो में थोड़ी परेशान हो गई।
घर वापस लौट कर आ गई। मैं अपने कंप्यूटर के लिए इंटरनेट संपर्क लूँ या नहीं, इस दुविधा में थी। कोई दूसरा रास्ता नहीं था इसलिए मैंने संपर्क ले लिया। सच तो यह है कि मुझे कंप्यूटर के बारे में बहुत कम पता है। उस वेबसाइट पर गई, मेरे थोड़े बहुत ज्ञान से वेबपेज पर गई। उसे पढ़ने के लिए तरह-तरह की कठिनाइयों का सामना किया। फरवरी महीने का अंत आ गया। जहाँ से शुरू किया वहीं पर थी, कुछ भी काम आगे नहीं बढ़ा था जिसकी वजह से एक दिन मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने सीधे टोबायस के साथ लड़ाई शुरू कर दी, ""तुम क्या समझ रहे हो? जो तुम कह रहे हो उसे में सब लोगों तक पहुंचाना चाहती हूँ, लेकिन क्या तुम पर इस बात का कुछ भी असर पड़ रहा है? मैं अभी इंटरनेट सेंटर जा रही हूँ। चलो! चलकर वेबपेज को कैसे खोलना है दिखाओ।"" कहते हुए में इंटरनेट सेंटर गई।
वेबसाइट में जाने के दूसरे ही मिनट के बाद, पता नहीं कैसे मैंने सही जगह क्लिक किया और वेबपेज मेरी आंखों के सामने खुलते देखकर आश्चर्यचकित हो गई! टोबायस का धन्यवाद करके, बहुत खुशी से दौड़ते हुए घर वापस आई। जल्दी-जल्दी प्रिंटआउट निकालकर पढ़ना शुरू किया।
उसमें टोबायस द्वारा बताई गई कुछ बातें प्रतीकात्मक थी। उन्हें अच्छे से समझाना था, तभी विषय बहुत अच्छे से समझ आता। उन अनुवाद को कैसे करना चाहिए? कैसे? कैसे? फिर मेरे अंदर परेशानी शुरू हो गई। जून का महीना नजदीक आ रहा था। जो मेटेरियल मुझे ही सीधी तरह से समझ नहीं आ रहा था, उसे में बाहर कैसे लाऊं?
ऐसे में नेल्लूर पिरामिड मास्टर आनंद राव के घर जाने पर बातों बातों में उन्होंने ""वॉक-इन"" के बारे में वेबसाइट देखने के लिए कहा। घर आने के बाद उसे ढूंढना शुरू किया। वहाँ एक और वेबसाइट मिली। हमारे अंदर केवल ईमानदार सोच और खोज करने की इच्छा होनी चाहिए, रास्ता अपने आप खुल जाएगा।
पहले कुछ दिनों तक इस विषय को कैसे लाना है समझ नहीं आया। टोबायस का मेटेरियल श्रृंखला की तरह है। अगस्त से शुरू होकर दूसरे साल जुलाई तक एक श्रृंखला है। ऐसे १९९९ अगस्त से लेकर लगातार श्रृंखला है। हर एक श्रृंखला में, हर महीने के बारह पाठ हैं। हर पाठ का अलग-अलग अनुवाद करूँ या सबका एक बार अनुवाद करूँ? समझ नहीं आ रहा था, जिसकी वजह से बहुत महीनों तक उलझन में थी। बार-बार श्रृंखला पढ़ रही थी इसलिए मेरे अंदर जागरूकता बढ़ने लगी। नेल्लुरु के ध्यानी अशोक जी ने कहा, ""जिस किसी भी तरह लिखा गया हो, लेकिन उसकी ऊर्जा पढ़ने वालों को मिलनी चाहिए।"" उनकी यह बात मेरे कानों में सुनाई देती रही। २००४ साल आधे से अधिक बीत चुका था। अब व्याख्या करने से कोई फायदा नहीं था। पानी में कूदने तक तैरना नहीं आएगा, इसलिए मैंने शुरू कर दिया। पहले ध्यान आंध्र प्रदेश पत्रिका को भेजा। धीरे-धीरे जैसे-जैसे विषय को लाना चाहिए, अपने आप वही होता गया।
इस ज्ञान को देने वाले केवल टोबायस नहीं हैं। कई जगह चैनलिंग में कई लोग दूसरी तरफ से बात कर रहे हैं, जिससे वह संदेश दे रहे हैं। उस संदेश को इकट्ठा करने पर हमें संपूर्ण तरीके से विषय और परिस्थिति समझ में आएगी। सच्चा संदेश किसी के भी देने पर एक जैसा होता है। केवल उनके बोलने के तरीके में बदलाव होता है। इसके अंदर का विषय, ऊपर से बोलने से अलग नहीं होने वाला है। आचरण करने से ही यह विषय ठीक तरह से समझ आता है। मेरे हाथ द्वारा कलम से जो ज्ञान का प्रवाह आया है, वह दूसरों द्वारा दिए गए सहकार की वजह से रचना में आया है।
हर सप्ताह हमारे घर में होने वाली न्यू एनर्जी कक्षा में आने वाले लोगों के साथ चर्चा की वजह से कई सारी गहराइयाँ समझ में आई। जैसे-जैसे समझ आता गया मेरा मन और भी खुलता गया। उन अनुभवों को भी आपके सामने रखने वाली हूँ। साथ-साथ, जिनके द्वारा मैंने इस अनुभव को पाया है, सीधा उनके द्वारा प्राप्त संदेश भी इसमें हैं।
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