| Specifications |
| Publisher: Hindi Samiti,Suchna Vibhag Uttar Pradesh, Lucknow | |
| Author Gyanchand Jain | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 218 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 8.5x5.5 inch | |
| Weight 290 gm | |
| Edition: 1977 | |
| HBY581 |
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सामान्य जनता संकुचित विचारों का परिष्कार और उदात्तीकरण तभी कर पाती है जब उसके समक्ष कोई आदर्श व्यक्तित्वसंपन्न, सहृदय प्रेरक और मार्गदर्शक सुलभ हो । लौकिक उन्नति का क्षेत्र हो या आध्यात्मिक साधना का, सर्वत्र उज्ज्वल सत्त्वशाली महानुभाव के संपर्क और निर्देश को पाकर ही लोग उत्साह, साहस, कर्तव्यनिष्ठा, सत्यपरायणता, करुणाशीलता, आत्मत्याग जैसे मानवीय गुणों का विकास कर पाते हैं। हमारे देश में ऐसे उत्कृष्ट आदर्श व्यक्ति प्राचीन काल से अनेकों होते आये हैं, जिनमें वर्धमान महावीर स्वामी विशुद्ध चरित्र और साधना के महान् धनी हुए हैं। इनके अद्भुत त्याग, तपस्या, कष्टसहन, केवल-ज्ञानप्रकाश, प्राणिमात्र के दुःख निवारण, वर्गभेदरहित जन-कल्याण एवं आत्मसिद्धि की सत्य कथा प्रस्तुत पुस्तक में सुनायी गयी है।
महावीर स्वामी का गृहस्थ जीवन जहाँ अत्यन्त उदार, विनीत, सहृदय और उत्तरदायित्व निर्वाहक था, वहीं अध्यात्म पथ में आरूढ होने पर उनकी बाह्य और आन्तरिक समस्त संदेह-ग्रन्थियाँ तपोबल के प्रभाव से सुलझ गयी थीं, जिससे वे 'निगंठ' (निर्ग्रन्थ) उपनाम से विख्यात हुए। जन्म के पूर्व ही विज्ञजनों ने उनकी विशेषताएँ ज्ञात कर ली थीं और परम्परागत ज्ञातृ-कुल के वे सुपुत्र थे, अतएव उनका अन्य स्नेहसिक्त उपनाम ज्ञातपुत्त (त्र) हो गया ।
उक्त श्रमण-शिरोमणि 'निगंठ ज्ञातपुत्त' महात्मा का तीर्थंकर (मार्गदर्शक) स्वरूप लखनऊ के शालीन पत्रकार एवं तात्त्विक हिन्दीसेवी श्री ज्ञानचन्द जैन ने प्रस्तुत रचना के अन्तर्गत लिपिवद्ध किया है। आशा है, आदर्श और वास्तविक जीवन पद्धति के अनुरागी पाठक इस कृति को रुचिपूर्वक अपनायेंगे, जिससे उनके यथार्थ और परमार्थ के विचारों में सामंजस्य सिद्ध हो सके ।
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