हिन्दी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में प्रमुख भूमिका अदा की थी। गांधीजी ने 'स्वराज्य' को 'स्वभाषा' के बिना बेमानी माना था। इसीलिए हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान में हिन्दी को संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी थी। किन्तु स्वतंत्रता के 57 वर्ष बीत जाने पर भी सरकारी कामकाज में हिन्दी को उपयुक्त स्थान नहीं मिल पाया है। इसका एक मुख्य कारण जहां सत्तासीन लोगों की मानसिकता है वहीं दूसरा मुख्य कारण हिन्दी में कार्यालयीन साहित्य का पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होना भी है। यद्यपि इस दिशा में कई प्रयास किए गए हैं और कुछ साहित्य तैयार भी किया गया है किन्तु इस दिशा में और गहन प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
प्रस्तुत पुस्तक का मुख्य उद्देश्य राजभाषा हिन्दी के व्यावहारिक प्रयोग की दृष्टि से ऐसा संदर्भ साहित्य उपलब्ध कराना है जो सरकारी कार्यालयों /उपक्रमों/निगमों में पदस्थ उन सभी कर्मचारियों/अधिकारियों के लिए समान रूप से उपयोगी हो जो हिन्दी में काम करने की इच्छा रखते हैं किन्तु संदर्भ साहित्य उपलब्ध न होने के कारण हिन्दी में काम करने में कठिनाई महसूस करते हैं।
इस पुस्तक में प्रमुख प्रशासनिक शब्दावली, वाक्यांशों, टिप्पणियों के साथ-साथ सरकारी कार्यालयों में प्रयुक्त होने वाले पत्राचार के विभिन्न रूपों को भी समाहित किया गया है। इसमें विभिन्न प्रमुख सरकारी पदनामों के अतिरिक्त विभिन्न सरकारी कार्यालयों/ विभागों / मंत्रालयों / उपक्रमों/समितियों के नाम भी द्विभाषी रूप में वर्गीकृत रूप में देकर इसे विशिष्ट रूप देने का प्रयास किया गया है।
इस पुस्तक को तैयार करने में इस विषय पर अब तक प्रकाशित विभिन्न पुस्तकों से सहायता ली गई है। जिन लेखकों और प्रकाशकों की पुस्तकों से इस पुस्तक को तैयार करने में सहायता मिली है, मैं उनके प्रति हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।
अंत में मैं इस पुस्तक के लेखन में जिन अग्रजों और गुरूजनों का स्नेह, प्रेरणा और प्रोत्साहन मिला है, उनके प्रति भी आभार व्यक्त करता हूं। मैं डॉ. कृष्ण मोहन मित्तल, प्रोफेसर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रूड़की के प्रति आभार व्यक्त करता हूं जिनके निरंतर प्रोत्साहन और प्रेरणा से यह कार्य सम्पन्न हो सका। मैं अपनी सहधर्मिणी अनिता का भी आभारी हूं जिन्होंने पुस्तक की पाण्डुलिपि तैयार कराने में विशेष सहयोग दिया है।
इस पुस्तक को तैयार करने में अनुज श्री सतीश कुमार, श्रीमती किरण द्विवेदी और कैप्टन वी.पी. सिंह ने विशेष योगदान दिया है, मैं उनके प्रति हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। बंधुवर श्री अनिल वर्मा का भी विशेष आभार ज्ञापित करता हूं जिन्होंने यह पुस्तक तैयार करने के लिए प्रेरित किया और इतने अल्प समय में इसे प्रकाशित किया।
आशा है, सरकारी कार्यालयों के कर्मचारियों/अधिकारियों, राजभाषा से जुड़े कार्मिकों और विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगी।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist