जब से मानव ने लिपि लेखन की प्रक्रिया प्रारंभ की, तब से उसे शब्दों को उतारने के लिए आधार की आवश्यकता हुई. कभी शिलालेख पर तो कभी भोज-पत्र पर। मगर मानव ने लेखन का आधार ढूंढ निकाला और उसकी क्रांति इस कागज के विकास से हुई। मगर हम बाद में चेते कि जिस कागज का प्रयोग बड़ी मात्रा में हो रहा है, वह हमारे पर्यावरण पर चोट कर रहा है। की-बोर्ड पर होती खटखट के बाद स्क्रीन पर उभरते शब्द, भरपूर इलैक्ट्रॉनिक पेज पर क्लिक भर से दूसरे तक जा पहुंचते हैं। मगर जब ज़रूरत आती है प्रिंट आर्डर की तो बिना कागज के काम नहीं चलता। कागज एक अत्यंत आवश्यक वस्तु है। शिक्षा पर विशेष बल दिए जाने, प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि, फोटोप्रतियों और प्रिंटरों के बढ़ते हुए उपयोग, उच्च गुणवत्ता वाली पैकेजिंग की बढ़ती मांग तथा निर्यात में होने वाली वृद्धि के कारण कागज की मांग में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। साथ ही ज्ञान प्राप्त करने के लिए पुस्तकों एवं प्रकाशनों की अधिक मांग के परिणामस्वरूप साक्षरता की दर में वृद्धि, उच्च गुणवत्तापूर्ण पत्रिकाओं की मांग में वृद्धि. बेहतर छपाई की प्रवृत्ति तथा उच्च आकांक्षाओं के कारण गुणवत्तापूर्ण कागज की आवश्यकता में वृद्धि हुई है और बहुरंगी छपाई के उपयोग, बेहतर कागजों की उपलब्धता और उपयोग तथा मुद्रण प्रौद्योगिकियों के कारण भी कागज की मांग में वृद्धि हुई है।
कागज व कागज उत्पादों की हमारे जीवन में अनिवार्यता है, लेकिन, इसके साथ-साथ सुरक्षित और टिकाऊ पर्यावरण का होना भी हमारे लिए बहुत आवश्यक है। काग़ज़ और कागज़ उत्पादों की मात्रा असीम है। अतः पर्यावरण पर इनका पड़ने वाला प्रभाव भी बहुत महत्वपूर्ण है।
इस पुस्तक को सात भागों में बांटा गया है। जैसे कागज़ का इतिहास, कागज बनाने के लिए रेशा, कागज़ विनिर्माण, विभिन्न प्रकार के कागज, कागज का उपयोग, पुनश्चक्रित कागज, कागज़ उत्पादन प्रक्रिया का पर्यावरण पर प्रभाव, पैकेजिंग प्रौद्योगिकी व पर्यावरण हितकारी पैकेजिंग। पुस्तक में उच्च गुणवत्ता वाले व सरल चित्रों के माध्यम से प्रौद्योगिकी को दर्शाने का प्रयास किया गया है। मेरा हमेशा यही सपना रहा कि मुद्रण प्रौद्योगिकी से संबंधित पुस्तकें हिन्दी में लिखी जाएँ ताकि हिन्दी भाषी क्षेत्र के पाठकों और खासतौर पर विद्यार्थियों को तकनीकी ज्ञान को समझने में मदद मिल सके।
इस नये मौलिक संस्करण में कुछ त्रुटियों रह जाना स्वाभाविक है। पाठकों से अनुरोध है कि इससे अवगत करायें, ताकि अगले संस्करण को अधिक उपयोगी बनाया जा सके। यह अनुरोध है कि इस पुस्तक के विवरण को अंतिम न माना जाये। इस क्षेत्र में काफी तीव्र प्रगति हो रही है, मेरा निरंतर प्रयास यही रहेगा कि नई जानकारी पाठकों को नए संस्करण द्वारा समग्र रूप से मिलती रहे।
मैं अपने माता और पिताजी का आभारी हूँ, जिनके संस्कारों से मुझे कुछ लिखने की और कुछ नया करने की शक्ति एवं प्रेरणा मिली। साथ ही मैं अपनी धर्मपत्नी श्रीमती रंजना, सुपुत्र व सुपुत्रियों संदीप, मीताली एवं दीपशिखा के योगदान के लिए भी आभारी हूँ।
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