"पत्थर बोले देर तक" मेरा दूसरा ग़ज़ल संग्रह या शेरी मजमुआ है। 2019 में 'खेत के पाँव' शीर्षक से प्रथम ग़ज़ल संग्रह आने के लगभग छः वर्षो बाद यह संग्रह आ रहा है। इस दरम्यान और अच्छा कहने का प्रयास किया है। संग्रह में शामिल 112 ग़ज़लें आपके दिल की खलिश को कितना बढ़ाती हैं, आम आदमी की पीड़ा को कैसे प्रतिबिंबित करती हैं, कहाँ पर मरती हुई माननीय संवेदना की उँगुली पकड़कर झुर्री भरे किसी चेहरे पर मुस्कान सजा पा रही हैं। कहाँ तक यह चाक होते रिश्तों के पैरहन पर रफू कर पा रही है और कब अचानक इसके हाथों से एक जुम्बिस के साथ सूई छूटकर ज़मीन पर गिर जा रही है, कहाँ डबडबाई लाल आँखों की कोर से आँसू लुढ़क कर गालों पर आ जा रहे हैं, आपको इन ग़ज़लों में यह सब तलाश करना है। अगर किसी के पायल की रूनझुन आपकी साँसों की सरगम बन कर मेरी ग़ज़लों में गूंजती महसूस हो रही हो तो ठहर जाइये, मुझे भी बताइये ताकि मैं भी उस संगीतोत्सव में थाप छेड़ सकूँ, आपके साथ थिरक सकूँ।
ग़ज़ल अरबी से फारसी मे आई और फारसी से उर्दू में आई तथा अन्त में उर्दू से हिन्दी में आई तथा चारों तरफ छा गई यह बात बहुत लिखी, पढ़ी कही और सुनी जा चुकी है। मित्रों अबकी बार बहुत लम्बी-चौड़ी भूमिका की आरजू नहीं है, इस बार आप मेरी ग़ज़लें पढ़ें और अगर ये आपके अन्तर्मन को छू जाएं या आप पर खुमारी बन कर छा जाएं तथा आप बेकरार हो कर इनके बारे में कुछ लिखें तो अलग ही मज़ा आयेगा। दूसरी खुशी की बात यह है कि इस संग्रह के आवरण का चित्र मेरी पुत्री तारुषी मिश्रा द्वारा बनाया गया है, बिटिया को भी अपने आशीष से अभिसिंचित कीजिएगा। फिलहाल मैं यह मजमुआ आपको सौंपकर विदा ले रहा हूँ, आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
माँ ने मंदिर मे जलाया फिर दिया,
जा रहा हूँ आज फिर मैं काम पर।
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