| Specifications |
| Publisher: Chaukhamba Surbharati Prakashan | |
| Author Rajanaka Ksemaraja | |
| Language: Hindi and Sanskrit | |
| Pages: 187 | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 8.5x5.5 inch | |
| Weight 170 gm | |
| Edition: 2017 | |
| HBN370 |
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हमारी भारतीय संस्कृति निगमागम-मूलक है। निगम (वैदिक) संस्कृति के समान ही आगम संस्कृति भी अनवच्छिन्न रूप से चली आ रही है। अतः ये दोनों आपाततः एक ही है। इनमें से अनादि सम्प्रदाय-सिद्ध गुरु-शिष्य-परम्परा-क्रमागत-शास्त्रसन्दर्भ 'आगम' शब्द से अभिहित होता है। यह श्रुतिलक्षण तथा स्मृतिलक्षण उभयविध होना आवश्यक है। आचार्य भर्तृहरि ने भी महाभाष्य-पस्पशाहिक में कहा है कि-
पारम्पर्येणाविच्छित्र उपदेशः आगमः श्रुतिलक्षणः स्मृतिलक्षणञ्च सः।
आचार्य वाचस्पति मिश्र ने भी योगसूत्र-व्यासभाष्य की टीका तत्त्ववैशारदी में कहा है कि जिससे अभ्युदय तथा निःश्रेयस् के उपाय बुद्धि में आरूढ होते हैं, वह आगम है। वाराहीतन्त्र के अनुसार जिस शास्त्र में सृष्टिक्रम-वर्णन, प्रलयक्रम-निरूपण, देवार्चनक्रम, सर्वसाधनप्रकार-वर्णन, पुरश्चरणक्रम-वर्णन, षट्कर्म-निरूपण तथा ध्यानयोग विषय प्रतिपादित हो, उस शास्त्र को आगम कह सकते हैं। वस्तुतः निगम के सदृश ही तन्त्र अपौरुषेय ज्ञानविशेषरूप होने से इसका आधारभूत कोई ग्रन्थविशेष नहीं है। अतः इस अपौरुषेय ज्ञानविशेष को आगम कहा जाता है। आगम और निगम को स्पष्ट करते हुए आचार्य अभिनव गुप्त ने ई०प्र०वि०वि० में कहा है कि धर्म को समझने के लिए हमारे जानने लायक उपायों की निश्चित सूचना देने वाला शास्त्र निगम है, यही वेद है तथा आगमीय ज्ञान की संक्रान्ति एक शरीर से दूसरे शरीर में शब्द के माध्यम से होती है'। यह आगम वैदिक तथा अवैदिक-भेद से दो प्रकार का है। इनमें से वेदाधिकारियों के लिए वैदिक तथा वेद में अनधिकृतों के लिए अवैदिक आगम है। इनमें से जैन, बौद्धादि आगमों को अवैदिक आगम कहा जा सकता है। वैदिक आगम चार प्रमुख भागों से विभक्त है- वेद, इतिहास, पुराण तथा प्रकीर्ण। इनमें से प्रकीर्ण आगम प्रमुख रूप से छः प्रकार के है-शैव, शाक्त, 1. (क) वेद्यं धर्माद्युपायं निश्चितं गमयतीति निगमो वेदः।
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