पुस्तक के विषय में
घरेलू व आयुर्वेदिक चिकित्सा के प्रचार-प्रसार करते हैं एव इस बारे में लोगों को जानकारी देने में विशेष रुचि है। आज की आधुनिक एलोपैथिक चिकित्सा जितनी खर्चीली और नुकसानदेह है, उतनी ही यह चिकित्सा सस्ती और फायदेमंद है।
प्रस्तावना
इस पुस्तक में गर्भावस्था के समय स्त्री को होने वाले रोगों के साथ-साथ शिशुओं की कोमल प्रकृति को ध्यान में रखकर उनके पालन-पोषण के बारे में भी उल्लेख किया गया है । ताकि शिशु स्वस्थ रहे और वह स्वस्थ रहेगा तो स्वस्थ व सबल राष्ट्र के निर्माण में सहायक सिद्ध होगा।
स्त्रियों में गर्भ से पूर्व, गर्भधारण अवस्था में व प्रसूति के पश्चात् होने वाले विभिन्न रोगों एवम् उनके विभिन्न अंगों की देखभाल का भी निरूपण पुस्तक में किया गया है। नारी स्वास्थ्य का महत्व नारी भविष्य की निर्मात्री, समाज एवम् परिवार की सृजनहार है। राष्ट्र के भावी कर्णधार आज के ही शिशु हैं और उनकी प्रथम एवम् प्रमुख गुरु उनकी माता ही होती है । यदि माता स्वस्थ, सबल और जागरूक होगी तो उसकी संतान भी स्वस्थ, सबल होगी। इस प्रकार नारी को अपना स्वास्थ्य संभालना आयेगा तो वह परिवार का भी स्वास्थ्य संभालेगी। इस प्रकार परिवार, समाज और राष्ट्र का स्वास्थ्य नारी के स्वास्थ्य पर ही निर्भर है। परतु भारतीय नारी अपने स्वास्थ्य के प्रति इतना सजग नहीं रहती। जब कोई महिला अपने स्वास्थ्य के प्रति असावधान रहती है तो वह इस बात को भूल जाती है कि वह इसके द्वारा अपनी संतान, परिवार, समाज एवम् राष्ट्र का कितना अहित कर रही हैं । गर्भावस्था में भी पति एवम् परिजनों के कहने पर भी दूध, फल व सुपाच्य पौष्टिक आहार नहीं लेती । इसका परिणाम होता है रोगों से घिर जाना। सामान्य रोगों पर भी ध्यान न देने से रोग जटिल एवम् असाध्य रूप धारण कर लेते हैं । ऐसी महिलायें प्रसव के समय या तो वे अपनी संतान गवा देती हैं या स्वयं अपने जीवन से हाथ धो बैठती हैं । अत: महिलाओं को चाहिए कि गर्भधारण के उपरांत वे अपने तन-मन के स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान रखें, क्योंकि माता के शोणित (खून) से ही आ का पोषण होता है । इसलिए माता का आहार शुद्ध, सात्विक, सुपाच्य एवम् पौष्टिक होना चाहिए । माता ही है जो संतान के जीवन का शारीरिक, मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक संवर्धन कर एक ऐसे की रचना करती है जिसकी महक से न केवल परिवार और समाज ही नहीं सुवासित होता है, अपितु स्वस्थ राष्ट्र का भी निर्माण होता है। ऐसे समय में पति एवम् परिजनों का तो कर्तव्य है कि वे उसके शारीरिक एवम् मानसिक स्वास्थ्य का समुचित ध्यान रखें और समयानुकुल उसके आहार-विहार-आराम की भी समुचित व्यवस्था करें। साथ ही माता को स्वयं अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए चिंतामुक्त होकर दुःख एवम् निराशा से बचना चाहिए।
नारी अपने स्वास्थ्य के प्रति स्वयं उतनी ही उत्तरदायी है जितना उसका पति या अन्य परिजन। उसे इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने तन-मन को स्वस्थ रखकर ही स्वस्थ संतान को जन्म दे सकती है । यदि माता ही अस्वस्थ व दुर्बल होगी तो उसकी संतान भला कैसे स्वस्थ और मेघावी हो सकती है।
विवाह से पूर्व तो महिलायें अपने प्रति जागरूक और सजग रहती हैं । परंतु विवाह के बाद सब कुछ बदल जाता है। अपना परिवार, अपने परिजन सब कुछ, उनकी पसंद-नापसंद, रुची- अरुचि, सुख-सुविधा हर चीज परिवार के हिसाब से बदलती रहती है । कई बार वे इन सभी चीजों के (सुख-सुविधा-रुचि) के पीछे अपने स्वास्थ्य की अनदेखी करती है या उसे शादी से पहले अच्छा स्वास्थ्य किस तरह बनाये रखना, पौष्टिक भोजन वगैरे का ज्ञान नहीं दिया जाता ।
अत: उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे प्रसन्न और स्वस्थ रहेंगी तो घर भी स्वस्थ जैसा रहेगा । संपूर्ण घर की प्रसन्नता स्वास्थ्य पर ही निर्भर है। जिसकी वे अवहेलना कर देती है। यदि औरत स्वयं के स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही बरतेगी तो एक न एक दिन बीमार पड़ना अवश्यसंभावी है, इससे परिवार का भार संभालने वाली स्वयं परिवार पर भार बन जाती है।
स्त्री को अपने आहार-विहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि पौष्टिक भोजन की आवश्यकता सिर्फ पुरुषों और बच्चों को ही नहीं होती स्त्रियों को भी होती है । लंबे समय तक भोजन के प्रति लापरवाही से शरीर में स्वास्थ्य संबंधी अनेक विकार उत्पन्न होने लगते हैं । धीरे- धीरे काम करने की ताकत कम होने लगती है । रक्त तथा अनेक वांछित विटामिनों की कमी होने से कई रोग आक्रमण कर देते हैं । स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है तब वही घर नरक बन जाता है । यदि गृहणी का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है तब वह घर के कार्यों के साथ तारतम्य नहीं बैठा पाती और धीरे-धीरे पूर्णतया आया-नौकर पर आश्रित होती चली जाती है । ऐसे में आया-नौकर भी इस बात को समझने लगता है कि बीमार मालकिन का उसके बिना गुजारा नहीं है, अत: वे भी अपनी शर्तों पर काम करने लगते हैं।
घर में स्वस्थ नहीं रहें तो रौनक नहीं आती। यदि स्त्री को परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य और सुविधाओं का ध्यान रखना है तो उसे भी स्वस्थ रहना होगा ।
समय पर और उचित मात्रा में भोजन, सही कार्य और साथ ही उचित मात्रा में विश्राम ही स्वस्थ रहने की कुंजी है। ध्यान रखिए, आपका अपना स्वास्थ्य भी उतना ही आवश्यक है जितना अन्य परिवारजनों का।
विषय-सूची
1
गर्भावस्था में जरूरी सार संभाल (गाइड लाइन)
2
गर्भावस्था में ध्यान देने योग्य बातें
4
3
गर्भवती के लिए आवश्यक सुझाव
5
गर्भावस्था में वर्जित चीजें
7
गर्भावस्था में ऐसी भूल न करें
8
6
गर्भावस्था में खान-पान
12
गर्भावस्था में पथ्य एवम् सावधानी
20
गर्भावती स्त्री को कब्ज
23
9
गर्भवती स्त्री के लिए मालिश का तेल
25
10
सुखी प्रसव के लिये-एरंडी का तेल
26
11
इमरजेन्सी डिलीवरी
28
प्रसव के बाद-जानकारी
31
13
प्रसूता के लिये ध्यान देने योग्य बातें
32
14
प्रसव के बाद-ग्वारपाठा, हींग, अपथ्य
33
15
प्रसूता को नीम का रस
34
16
प्रसव के बाद अजवाइन-गुड़ का प्रयोग (गर्भाशय की शुद्धि)
35
17
प्रसव के बाद क्षत (घाव)
36
18
प्रसूता स्त्री का दस्त
37
19
प्रसूता स्त्री के लिए-एरण्डी का तेल
38
प्रसव के बाद करचलियाँ (मार्कस)
39
21
प्रसूति के बाद गर्भाशय के स्नायु कमजोर पड़े हो
40
22
प्रसव के बाद शरीर गर्म लगना
41
प्रसव के बाद दवा-दशमूलारिष्ट
42
24
स्तन का चीरा
43
प्रसूता का जीर्णज्वर (हल्का बुखार)
44
प्रसूता के स्तन का सोजन
45
27
प्रसव के बाद गुप्तांग खुला और ढीला पड़ना
46
प्रसव के बाद-पपीता
47
29
प्रसूता की कमजोरी
48
30
प्रसूता का बढ़ा हुआ पेट (पेट लटकना)
49
प्रसव के बाद मोटापा (मेदवृद्धि, चरबी बढ़ना)
50
प्रसूता के दुग्धवर्धन हेतु..
55
प्रसूता के लिये विभिन्न पदार्थ-पाक
57
स्तनपान के आवश्यक सुझाव
63
शिशुओं का सही पालन-पोषण
65
शिशुओं के विकास के बारे में जानने योग्य सामान्य लक्षण
74
बच्चे को जन्म से माता का दूध न मिले तो
75
वैद्य लोगों के अनुभवी उपचार
77
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