प्रस्तुत ग्रंथ को लिखने की प्रेरणा मुझे वर्तमान हालात से मिली है। आज हालात यह है कि चन्द रुपये या वोट के लालच में राष्ट्र के कर्णधार या उनके प्रतिनिधि हाथ आये दुश्मन या उनके एजेंटों को वास्तविक या अवास्तविक दयाभाव दिखाकर छुड़वाने का साधन बन जाते हैं। इस कारण देश में नक्सलवाद, आतंकवाद व अराजकता का साम्राज्य फैलता जा रहा है। ऐसी अनेक घटनाओं को पढ़कर मुझे उस भावुक मन वाले वीर पृथ्वीराज चौहान का ध्यान आना स्वाभाविक है, जिसने शाहबुद्दीन गौरी को बार-बार पकड़कर भी छोड़ दिया और अंत में उसकी वंचना के कारण स्वयं पराजित हुआ और मारा गया, परिणामस्वरूप सृष्टि के आरंभ से चले आ रहे स्वतंत्र गौरवमय भारत को उसने गुलामी के रास्ते पर धकेल दिया। 'क्षमा वीरों का आभूषण होता है'- शास्त्रों का यह वचन तो उन्हें बार-बार याद आता रहा, लेकिन 'अग्नि, साँप व शत्रु को शेष छोड़ दिया जाता है, तो ये बदला लेने से नहीं चूकते'- यह शास्त्र वचन पता नहीं उन्हें क्यों याद नहीं आया?
महाराजा अनंगपाल ने ज्योतिषराज के बहकाए में आकर अपने पुत्र घोरी को देश, धर्म व जाति से बहिष्कृत किया और वही घोरी बाद में शाहबुद्दीन गौरी बनकर आया, जिसने भारत की सभ्यता व संस्कृति को छिन्न-भिन्न करने में कोई कसर बाकी न छोड़ी। भारत के कई प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में बहिष्कृत घोरी की कथा मिलती है, लेकिन खेद है कि इतिहासकारों ने कभी इस ओर अपना ध्यान आकृष्ट नहीं किया ?
बहिष्कृत घोरी बनाम शाहबुद्दीन गौरी के जीवन से हमें इतनी प्रेरणा तो लेनी ही चाहिए कि आर्य धर्म से कभी किसी को बहिष्कृत नहीं करना चाहिए, क्योंकि शास्त्रों का वचन है कि जाति से बहिष्कृत व्यक्ति जो पाप करता है, उससे देश तथा समाज की जो हानि होत्ती है, उस सबका भागी वह समाज है, जो उस पापकर्ता को बाहर निकालता है।
पृथ्वीराज चौहान एक वीर व देशभक्त थे, इसमें कोई संदेह नहीं, लेकिन आज हमारा जन्मजात शत्रु पाकिस्तान जहाँ शाहबुद्दीन गौरी के नाम पर अनेक मिसाइलें बना चुका है, वहीं हमारे कुछ इतिहास लेखकों ने पृथ्वीराज चौहान को देश का पहला गद्दार लिख डाला है। ऐसा किसी सामान्य पुस्तकों या काल्पनिक उपन्यासों में नहीं, बल्कि स्कूलों व विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जा रहा है। यह मामला भारतीय संसद में भी गूँज चुका है। ८ अगस्त २००५ को लोकसभा में जनता दल यूनाइटेड के प्रभुनाथ सिंह महान योद्धा व पराक्रमी पृथ्वीराज चौहान को राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की ११वीं कक्षा की पुस्तक में उन्हें (पृथ्वीराज चौहान को) अत्यंत गलत ढंग से पेश करने पर घोर आपत्ति जता चुके हैं।
पृथ्वीराज चौहान को गद्दार लिखने वाले ये वही हिन्दूद्रोही लेखक हैं, जिन्होंने इतना बड़ा झूठ लिख डाला कि पृथ्वीराज चौहान तराइन के द्वितीय युद्ध में शाहबुद्दीन गौरी के हाथों मारा गया था। लेकिन एक मुस्लिम लेखिका जो भारतीय सभ्यता व संस्कृति में गहरी आस्था रखती है, ने मुझे विदेशी भूमि पर बनी दो समाधियों के चित्र दिखाये थे और लेखिका का दावा था कि ये चित्र पृथ्वीराज चौहान व चन्द्र बरदाई की समाधि के हैं, जिन्होंने सदियों पहले गजनी शाह की हत्या की थी, इसलिए शाहबुद्दीन गौरी की समाधि के नजदीक ही इनकी भी समाधियाँ हैं। पृथ्वीराज चौहान व चन्द्र बरदाई की समाधि को भारत में लाने की मांग संसद में भी उठ चुकी है, लेकिन यह स्वतंत्र भारत का दुर्भाग्य है कि इन दो महान ऐतिहासिक पुरुषों की आत्माएँ विदेशी धरती पर अपनी-अपनी कब्रों के पास भटक रही हैं।
"
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist