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राग माला विश्वप्रसिद्ध सितारवादक पंडित रवि शंकर की आत्मकथा: Raag Mala Vishvaprasiddh Sitaaravaadak Pandit Ravi Shankar Kee Aatmakatha

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Specifications
Publisher: Bharatiya Jnanpith, New Delhi
Author Ravi Shankar
Language: Hindi
Pages: 258 (with B/W Illustrations)
Cover: HARDCOVER
10.0x7.5 Inch
Weight 640 gm
Edition: 2019
ISBN: 9789387919525
HBS234
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Book Description

पुस्तक परिचय

     

 

राग माला जॉर्ज हैरिसन द्वारा 'द गॉड फादर ऑफ वर्ल्ड म्यूजिक' से अभिषिक्त विश्व प्रसिद्ध संगीत-आचार्य के असाधारण जीवन का सुन्दर आलेख । रवि बड़े मित्रवत् थे और उनसे संवाद आसान था। इस समय तक बीटल बहुतों से मिल चुके थे-प्रधानमन्त्रियों, प्रसिद्ध व्यक्तियों, राजाओं- लेकिन मैंने यहाँ तक सोचा कि मैं ऐसे आदमी से मिलूँ जो सचमुच मुझे प्रभावित कर सके। और जब मैं रवि से मिला... वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने केवल प्रसिद्ध व्यक्ति से अधिक प्रभाव मुझ पर डाला। रवि ने पूर्ण सच्चाई में मुझे प्रविष्ट कराया। जिस क्षण हम लोगों ने बजाना आरम्भ किया जो मैंने अनुभव किया वह था उनका धीरज, उनकी सहानुभूति और उनकी सरलता। एक बात जो उन्होंने कही वह थी "क्या तुम संगीत पढ़ते हो?" मैंने कहा- "नहीं" और मैं हतोत्साह हो गया। मैंने सोचा- 'मैं शायद उनका समय बर्बाद करने का अधिकारी नहीं हूँ।' किन्तु उन्होंने कहा- "एकदम ठीक-यह केवल तुम्हें दुविधा में ही डालेगा।"

 

प्राक्कथन

     

 

जब पहली बार मैं रवि से मिला, मैंने उनमें एक गुण देखा जिसको मैंने सदा उच्च अभिलाषा की थी। मैंने कभी वैसा रियाज नहीं किया है, कभी भी वहाँ तक नहीं पहुँचा हूँ जो करने में वे समर्थ हैं। वास्तव में, ऐसा कोई नहीं जिसके बारे में मैंने सुना हो, कम-से-कम पश्चिमी जगत में, जिसने संगीत-साधना की ऐसी दीप्ति प्राप्त की हो। रवि मेरे पाश्चात्य और पौर्वात्य पक्षों के बीच एक सेतु बन गये। बहुत तरह से मैंने अपने को बस एक पैबन्द जोड़नेवाले के रूप में अनुभव किया है; मैं एक आदमी को दूसरे से जोड़ना पसन्द करता हूँ, एक प्रकार के विचार को दूसरे प्रकार की चीज से। रवि मेरे लिए विशिष्ट थे, क्योंकि उनके बिना इतनी आसानी से भारतीय अनुभूतियों में प्रवेश करने में मैं समर्थ नहीं हो पाता, मित्र के रूप में उन्हें पाकर, भारत में जो भी सर्वोत्तम है, उसका मैं अनुभव कर सका, और उसे तत्काल पा सकने में मैं सक्षम हुआ। हाल ही में एक इंटरव्यू में मैंने कहा कि रवि के बिना मैं एक बासी, नीरस, बेसुरा बनकर रह गया होता। कुछ लोग अभी भी कह सकते हैं कि मैं एक उबाऊ, पुराना भोंपू हूँ, लेकिन प्राचीन भारतीय संस्कृति के द्वारा, कम से कम, मेरा जीवन समृद्ध हुआ, इसे गहराई मिली, और इसके लिए रवि मेरे सम्पर्क सूत्र थे। बिल्कुल शुरू से ही दूसरी चीज जो रवि के बारे में अच्छी लगी वह यह थी, कि यद्यपि एक तरफ तो वे एक महान शास्त्रीय संगीतकार थे, साथ ही वे एक मजेदार आदमी भी थे। वे जानते थे कि संसार में क्या हो रहा था, कौन सी पुस्तकें या फिल्में या नाटक निकले थे। प्रत्येक व्यक्ति जो उनके साथ था उसे वे उन चीजों में प्रवृत्त करते थे। यदि हम किसी कार में सफर भी कर रहे होते, वे कोई धुन रच रहे होते और हर आदमी को गाने के लिए कहते या कोई पुराना गीत हमें सिखाते या अलग- अलग युगों की धुनें या उनकी ताल-मात्रा कैसे गिनी जाये, यह हमें बताते। रवि के साथ हमेशा कुछ मनोरंजक चीज और बहुत हँसी-खुशी चलती रहती है। भारतीय संगीत का अपना एक गम्भीर पक्ष है, और फिर इसका एक हलका पक्ष और एक प्रहसनात्मक पक्ष भी। वे उसे भंगिमाओं में, जो उन्होंने एक नर्तक के रूप में सीखीं, और अपनी बड़ी मनोरंजक मुख-मुद्राओं में व्यक्त करते हैं। एक गुरु और एक पिता के रूप में रहे हैं, लेकिन साथ ही, में मुख्यतः एक मित्र के रूप में ही उन्हें समक्षता है, क्योंकि अधिकतर समय हम लोग हँसी-मजाक करते रहते हैं। कभी-कभी मैं उनके पिता की तरह होता हूँ। इतने शिशुवत् हो सकते हैं थे। चारों तरफ संसार में क्या हो रहा है इसके प्रति सदा जिज्ञासु रहने पर भी और बहुत सी भौतिक झंझटों के अधीन रहने पर भी, कुछ अर्थों में वे फिर भी एक संन्यासी की तरह हैं। उन्होंने स्थितियों के प्रति सदा एक अनासक्ति बचाये रखी है। वे कोई झमेला ही नहीं करते। उन्हें कुछ संगीत दे दीजिए और काम चल जाएगा। रवि ने अन्य भारतीय संगीतकारों के लिए आधार भूमि तैयार की जो उनके कारण सारे संसार में अपना कार्यक्रम देने में सक्षम हुए, अतः संसार भर में भारतीय संगीत की स्वीकृति व्याप्त हो गयी है। किन्तु उनका प्रस्थान करना और प्रतिदिन अट्‌ठारह घंटे, सात वर्षों तक अध्ययन करना और एक ऐसे वाद्ययन्त्र में माहिर होना जो विश्व के अधिकांश भागों में अनजाना था और जिसमें, भारत के बाहर, किसी की कोई विशेष ललक नहीं थी और तब जीवन के शेष भाग में प्रत्येक व्यक्ति को उससे जोड़ने में बिताना कैसा विस्मयकारी कार्य । संगीत उनका जीवन है। इस जीवन में रियाज करते और बजाते उन्होंने इतने वर्ष बिताये हैं। वे संगीत हैं और संगीत वे। पचास वर्षों से ऊपर भ्रमण कर चुकने पर, रुकना मुश्किल है। यह उन्हें आगे चलाता रहता है, और इसलिए मैं सोचता हूँ निश्चय ही वे आगे बढ़ते ही रहेंगे। गत 1994 में हम लोग रवि की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ मनाने के तरीकों के बारे में सोच रहे थे। मैंने ब्रायन से पूछा कि क्या वे कोई पुस्तक प्रकाशित करना चाहते हैं और उन्होंने कहा- 'हाँ'। रवि ने भी यह विचार पसन्द किया और तब हम लोगों ने इसकी तैयारी शुरू कर दी और वस्तुतः इसमें दो वर्ष लगे हैं। मेरे अपने जीवन में रवि को, उनके संगीत को या उनकी पुस्तकों को पाना सदा ही कल्याणप्रद रहा है। एक बार जब मैं कार चलाते उन्हें लन्दन ले जा रहा था, मैंने एक कैसेट चढ़ा दिया और मेरे दिमाग में यह बात आयी, "वे सम्भवतः सोचते हों कि यह सचमुच विचित्र संगीत है।" जब उन्होंने पूछा-"यह कौन है?" मैंने जवाब दिया-"ओह, यह कैब कैलोवे हैं, आप उन्हें नहीं जानेंगे।" और उन्होंने कहा- "अरे हाँ, मैंने इन्हें 1933 के आसपास कॉटन क्लब में देखा था।" इस तरह में रवि की कहानी की बहुत बातें पहले से ही जानता था, उनके पिता का एक बैरिस्टर होना, कैसे वे अपने भाई उदय के साथ पेरिस में सयाने हुए और अमेरिका की उनकी यात्राएँ। लेकिन में बहुत सी तफसीलों के बारे में नहीं जानता था जो इस पुस्तक की पूरी कहानी में उभरकर आती हैं। ऐसी विस्मयकारी कहानी है यह-एक अविश्वसनीय सी कहानी रही है उनकी, और अभी भी है!

 

लेखक परिचय

     

 

रवि शंकर: भारत के अग्रणी सितारवादक और भारतीय संस्कृति के वरिष्ठ राजनयिक रविशंकर ने 1930 के बाद अपने किशोर वय के कुछ वर्ष एक नर्तक के रूप में पेरिस और न्यूयॉर्क में बिताए। भारत में शास्त्रीय हिन्दुस्तानी संगीत के उस्ताद अल्लाउ‌द्दीन खाँ से सीखने के बाद रवि के संगीत-जीवन ने 1956 में जवाहरलाल नेहरू द्वारा रूस भेजे गये प्रथम प्रसिद्ध सांस्कृतिक शिष्टमंडल में सम्मिलित होकर उत्कर्ष प्राप्त किया। यूरोप तथा अमेरिका में भारतीय शास्त्रीय संगीत की समझ उत्पन्न करने वाले प्रथम कलाकार के रूप में उन्होंने पश्चिम की महत्त्वपूर्ण यात्रा की। अन्तर्राष्ट्रीय रूप में प्रतिष्ठित संगीतकार के रूप में भारत के साथ-साथ संगीत समारोहों, रिकॉर्डिंग और उत्सवों के लिए रवि ने विदेश की बार-बार यात्रा की। 1966 में जॉर्ज हैरिसन से उनकी स्थायी भेंट और निरन्तर सहयोग का आरम्भ हुआ। जिसके स्मृति-चिह्न के रूप में परिणत यह पुस्तक है। राग माला चित्रों और पत्रों के व्यक्तिगत संग्रह के साथ यहूदी मेनुहिन, जुबिन मेहता और फिलिप ग्लास सहित उनकी विशाल मित्र-मंडली के अवदान का अभूतपूर्व संग्रह है। साठ के दशक के मांटेरी, वुडस्टॉक के महानायकत्व प्रदान करने वाले के उन्मादक दिन और बांग्लादेश वाले संगीत-समारोह तात्कालिक आनन्द और अतीत श्रान्ति की याद दिलाते हैं। संसार भर में अन्तहीन वादन कार्यक्रम देते हुए रवि ने आज तके भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रदर्शन के प्रति अनन्त समर्पण-भाव बनाये रखा है। कथा को अद्यतन करते हुए रवि भारतीय स्वतन्त्रता की 50वीं जयन्ती को याद करते हैं, भारतीय संगीत की भावी प्रगति की भविष्यवाणी करते हैं और बताते हैं कि कैसे देर से पारिवारिक जीवन को स्थायी करने में सफल हुए हैं। बीसवीं सदी के सबसे प्रकाशमान नक्षत्रों में से एक रवि इस स्पष्ट किन्तु महत्त्वपूर्ण विवरण में उन परस्पर विरोधी लक्षणों का वर्णन करते हैं जो उन्हें एक मानव और एक संगीतकार का अन्तर दिखाते हैं : सम्मोहन और सरलता, महिमा और विनम्रता, गहरी आध्यात्मिकता और शरारती हँसी-ठिठोली।

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