ईश्वर ने संपूर्ण सृष्टि की रचना में सौंदर्य यानी सुंदरता का अद्भुत समावेश किया है। सुंदरता का अर्थ अपने आप में इतना व्यापक है कि कई बार इसे परिभाषित करने के लिए शब्द नहीं मिलते हैं। खासकर नारी के सौंदर्य का आकलन करने के लिए भारत की इस धरती पर युगों से विभिन्न कला व विधाओं में पारंगत विद्वानों ने भरपूर प्रयास किए हैं। कालिदास, भास और शूद्रक आदि से लेकर जायसी से होते हुए बीसवीं सदी के जयशंकर प्रसाद तक बहुत सारे उच्च कोटि के विद्वानों ने अपनी कल्पना और लेखनी के बलबूते सौंदर्यशास्त्र पर काम करते हुए नारी सौंदर्य को गद्य या पद्य की विधा में शब्दों के माध्यम से परिभाषित करने का प्रयास किया है। उन्नीसवीं सदी में राजा रवि वर्मा ने अपनी तूलिका से भारतीय नारी सौंदर्य को जीवंत चित्रों के रुप में उकेरा है। सैकड़ों वर्ष पहले पत्थरों पर उकेरे गए चित्रों व मूर्तियों से आज भी श्रृंगार रस टपकता है। हर विधा से नारी सौंदर्य की पराकाष्ठा की एक प्रतिमूर्ति बनाने की चेष्टा की गयी है।
कहा जाता है कि सुंदरता देखने और परखने वाले मनुष्य की आंखों में होती है जो उसके मन के धरातल पर उपजती है तथा हृदय के उद्गार के रूप में प्रकट होती है। सौंदर्य का अवलोकन, प्रदर्शन और सान्निध्य की इच्छा स्वाभाविक है और उचित भी। यह कलात्मक अभिरुचि मनुष्य के लालित्य का परिचय देती है, पर सौंदर्य का प्रदर्शन सौम्य-सतोगुणी होना चाहिए। तभी उसकी सार्थकता है और सराहना भी।
नारी को प्रकृति ने नर की तुलना में अधिक सुंदर बनाया है। पर उस पर स्वच्छता और शालीनता का पुट और भी लग जाए, तो वह अपने प्रकृति प्रदत्त गुणों से अपने आस-पास के वातावरण को सुखमय बना सकती है, उल्लासित कर सकती है। पर साथ ही यह भी कटु सत्य है कि यदि नारी का सौंदर्य (तन और मन का) विकृत होने लगे, तो वह अमृतमयी से विष-कन्या भी बन सकती है।
अतः नारी को अपने प्रकृति प्रदत्त गुणों (आंतरिक और बाह्य सौंदर्य) को सदा के लिए कायम रखने के लिए हमेशा सजग रहने की जरूरत होती है। केवल शारीरिक सुंदरता ही नहीं, मानसिक सुंदरता व आत्मिक सौंदर्य की भी ठीक उसी प्रकार से देखभाल करनी पड़ती है जैसे वह अपने नवजात शिशु की करती हैं। नारी की कोमलता, सुंदरता और मोहकता ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है। वस्त्र, आभूषण कितने ही कीमती और उच्चकोटि के क्यों न हों, उपाधियां, शैक्षणिक योग्यताएं कितनी ही ऊंची क्यों न हों, पर नारी व्यक्तित्व को निखारने और आकर्षक बनाने वाला सद्गुण, शालीनता न हो तो सब व्यर्थ है। शालीनता व्यक्तित्व में निखार लाती है। नारी का तो यही सच्चा आभूषण है, जिसका प्रभाव परिवार, व्यक्ति और समाज पर पड़े बिना नहीं रह सकता। अपनी सुंदरता को बढ़ाना नारी का मौलिक अधिकार तो है, परन्तु श्रृंगार एक मर्यादा के अंदर ही रहना चाहिए। आधुनिकता के नाम पर पहनावे के अंतर्गत यदि वह अंगों का अशोभनीय प्रदर्शन करती है, तो यह उसकी रुग्ण मानसिकता का परिचायक ही माना जाता रहा है। जिस नवीनता को वह एकरसता दूर करने वाली मानती है, प्रायः वही उसके गले का फंदा बन जाती है। चटक मटक के भड़कीले एवं उत्तेजक फैशन देखकर व्यक्ति उनकी तरफ आकर्षित होते हैं और उनकी सराहना करते हैं, परन्तु इस खोटी प्रशंसा के बाद जो दुष्परिणाम उन्हें भोगने होते हैं, उन्हें भुक्तभोगी ही जानते हैं। शरीर, वस्त्र तथा केशों को जहां तक सुरुचि, स्वच्छता तथा कलाकारिता तक सीमित रखा जाए, वहां तक वह सुसंस्कारिता एवं कुलीनता का परिचय देती है, पर जब वह दर्शकों में उत्तेजना भड़काने का उद्देश्य अपनाने लगे, तो समझना चाहिए कि उसने अपनी उत्कृष्टता का परित्याग कर दिया। ऐसी साज-सज्जा नट-नटिनियों की संस्कृति है, जिसे भारतीय सामाजिक परम्परा में कभी सराहा नहीं गया है। नारी को इससे बचना बचाना ही चाहिए।
नारी अपने रूप को निखारने का प्रयास प्राचीन समय से ही करती आई है। वह अपनी सुंदरता को बढ़ाने के लिए प्राकृतिक प्रसाधनों का प्रयोग करती थी। आज भी वह अपनी सुंदरता को निखारने का प्रयास करती है। नारी के हाथ और पैर उसके व्यक्तित्व का आईना होते हैं। खूबसूरत चमकते बाल किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम हैं। वहीं खुरदरे दरारों युक्त और आभाहीन फटे हाथ, एड़ियां, टूटे नाखून भी नारी के सौंदर्य को खराब कर देते हैं। महंगी से महंगी जूती-चप्पलों से भी बेडौल, फटी एड़ियों वाले पैरों को सजाना मुमकिन नहीं है। सही बात यही है कि हम अपने चेहरे की देखभाल बड़ी उत्सुकता से करते हैं लेकिन अपने हाथों और पैरों पर उतना ध्यान नहीं देते हैं। इस तरह समुचित देखभाल न मिलने के कारण हाथ-पैर अपनी खूबसूरती को खो बैठते हैं। घटिया साबुन और डिटर्जेंट का इस्तेमाल हाथों को बदसूरती प्रदान करने में रही-सही कसर भी पूरी कर देते हैं। अगर आपको अपने व्यक्तित्व को प्रभावशाली व आकर्षक बनाना है तो अपने तन-मन और आचार-व्यवहार की पूरी देखभाल करनी ही होगी।
प्रस्तुत पुस्तक में आधुनिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए नारी के सौंदर्य को निखारने के लिए उपयुक्त जानकारियों का संकलन किया गया है। पत्रिका प्रकाशन की उत्कृष्ट पुस्तकों की कड़ी में सौंदर्य की बगिया से कुछ चुने हुए आलेख रूपी पुष्पों से सजी यह डलिया भी पाठकों को पसंद आएगी और आपको अपने सौंदर्य में चार चांद लगाने के लिए उचित मार्गदर्शन भी मिल सकेगा, ऐसा हमारा विश्वास है।
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