रा जस्थान की कई कलाएं बदलते सामाजिक परिवेश में तेजी से लुप्त होने की ओर बढ़ रही है। हस्तकला की पूछ अब विदेशों में ही रह गई है। कलाओं के प्रति हमारे लोक में अब पहले जैसा सम्मान नहीं रहा। अनेक कलाएं इसीलिए आज कला-इतिहास का अंग भर रह गई हैं।
जब तक कला समाज की गतिशीलता से नहीं जुड़ती, उसका सहज विकास संभव नहीं होता। जब कोई कला समाज में एक कलात्मक आवश्यकता के रूप में अपनी जगह बना लेती है तो कलाकार पीढ़ी-दर-पीढ़ी उससे जुड़ते जाते हैं। समय के बदलते स्वरूप ने राजस्थान की कई कलाओं को विनाश के कगार पर पहुंचा दिया है, इससे समाज की सांस्कृतिक सहकार को बढ़ावा देने वाली कला और क्षमता प्रभावित हुई है। क्योंकि कलाएं समाज के दुःख-सुख की सहभागी होती हैं, वे समाज के सहयोग के बल पर ही जीवित रहती है।
समय के साथ कला समाज का अंग बन जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में पूजे जाने वाले लोक देवता लोगों को दुःखों से छुटकारा का अहसास दिलाते हैं. कुदृष्टि से मुक्त करते हैं। लोगों में ऐसी आस्था होती है कि ये देवता उनकी खेती, घर, परिवार और जीवन के रक्षक हैं। इनकी पूजा-पद्धति, व्रत-विधान और विग्रह या मूर्तियों का रूप अलग-अलग देखने में आता है पर अपने लोक देवों से सभी यह आस करते हैं कि वे विपत्ति में उनके मानसिक बल को आधार देंगे।
लोक देवताओं की तरह लोक-संगीत के साधन भी अब अप्राप्य होते जा रहे हैं। कमायचा, सिंधी, सारंगी, रवाज, सुरिन्दा, गुजराती सारंगी आदि तमाम लोक वाद्य हैं पर पिछले साठ-सत्तर सालों में कोई भी नया वाद्य विकसित नहीं हुआ है। यह बताता है कि कहीं ना कहीं लोक कला के विकास में जड़ता आती जा रही है। आखिर और कितने दशक, साल और दिन चल पाएंगे ये परम्परागत वाद्य, यह कहा नहीं जा सकता।
विदेशों से आक्रमणकारियों के साथ भी कई कलाएं भारत आई और समय के साथ घुल-मिलकर यहां की बनकर रह गई। इन कलाओं पर यहां की संस्कृति की छाप भी पड़ी, इनका स्वरूप भी वक्त और वातावरण के साथ बदला। ये कलाएं व्यक्ति विशेष की रुचि के आधार पर भी पनीं और अपने सामाजिक आधार को भी इसने विस्तार दिया।
इस पुस्तक में राजस्थान की ऐसी ही तमाम लोक कलाओं और कलाकारों के बारे में बताया गया है कि आज के विकास के इस दौर में उनकी स्थिति क्या है? उनके पुनर्जीवन के लिए लोक चेतना का विकास जरूरी है और इसके लिए अपने पास-पड़ोस की जानकारी जरूरी है। उससे परिचय जरूरी है। यह पुस्तक यह काम किस हद तक करती है यह पाठक तय करेंगे।
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