'रामकथा : कुछ अनछुए पहलू' आपको सौंपते हुए प्रसन्न होना आपकी कसौटी पर कसने के आप परीक्षक हैं, और मैं परीक्षार्थी। मुझे पूरा भरोसा है कि आपकी कसौटी पर कसने के बाद मेरा परिश्रम सफल होगा। 'आपरितोषाद् विदुषां न साधु मन्ये प्रयोग विज्ञानम्' इस सूक्ति का सहारा लेकर ही रामकथा के प्रसंगों पर लिखने का साहस किया है। परिणाम यह रहा कि मेरी पुस्तक 'मानस चिन्तन' को उ. प्र. हिंदी संस्थान ने 'आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी नामित पुरस्कार' से पुरस्कृत किया और राम पर कुछ लिखने के कारण उसी संस्थान ने मुझे ढ़ाई लाख रुपए की राशि के साथ 'साहित्य भूषण' उपाधि प्रदान की। दूसरी पुस्तक 'रामकथा का मर्म' हाथों-हाथ पाठकों तक पहुंच गई। इस कृति में कुछ और जोड़ा है जो आपको सुखद अनुभूति का अवसर देगी।
रामकथा पर इन छत्तीस लेखों में मेरा अल्पज्ञान ही अभिव्यक्ति हुआ है। रामकथा एक सुंदर सरोवर है जिसमें मैंने कुछ हिलोर उठाने का प्रयास किया है। किसी भी लेख में किसी भी रामकथा-मर्मस लेखक को उद्धृत नहीं किया है, जो कुछ अच्छा-बुरा है, स्वतः का चिंतन है। यों तो लगभग सभी आलेख लीक से हठकर हैं किंतु शीर्षक आपको पढ़ने के लिए बाध्य करेंगें।
जन्म : 19 जुलाई 1938 ई., एम.ए. (हिंदी) पी-एच.डी.।
व्यवसाय : महाविद्यालय में 39 वर्ष अध्यापन, रीडर एवं विभागाध्यक्ष पद से 2000 ई. में सेवानिवृत्त ।
प्रकाशित रचनाएं: 1. काव्यांग विवेचन और हिंदी साहित्य का इतिहास (1971);
2. गोस्वामी तुलसीदास व कवितावली (1971); 3. ऋतु वर्णन परंपरा और सेनापति का काव्य (शोध प्रबंध-प्रथम संस्करण 1973, द्वितीय संस्करण 2000); 4. अभिनव गद्य विधाएं (चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में स्वीकृत), संकलन व संपादन; 5. काव्य मधुरिमा-संकलन व संपादन (1991); 6. मूल अंकों में ध्वनित सांस्कृतिक चित्रण (1998); 7. अंक चक्र (2007); 8. चिंतन के क्षण (2013); 9. भारतीय संस्कृति और मूल अंक (2012); 10. चिंतन की मणियां (2017); 11. भारतीय संस्कृति और मूल अंकों के स्वर (प्रथम संस्करण 2017, द्वितीय संस्करण 2018) उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान से पुरस्कृत; 12. मानस चिंतन (2018) उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार से पुरस्कृत (इस पुस्तक पर लेखक को 'संत तुलसीदास राष्ट्रीय सम्मान' मिला); 13. भारतीय संस्कृति और मूल अंकों के स्वर का अंग्रेजी अनुवाद (2020); 14. चिन्तन के विविध स्वर (2020); 15. वाल्मीकि रामायण का उत्तरकाण्ड (2021); 16. रामकथा का मर्म (2022) और 250 से भी अधिक लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व संकलित ग्रंथों में प्रकाशित ।
'रामकथा : कुछ अनछुए पहलू' आपको सौंपते हुए प्रसन्न होना स्वाभाविक है क्योंकि आप परीक्षक हैं, और मैं परीक्षार्थी। मुझे पूरा भरोसा है कि आपकी कसौटी पर कसने के बाद मेरा परिश्रम सफल होगा। 'आपरितोषाद् विदुषां न साधु मन्ये प्रयोग विज्ञानम्' इस सूक्ति का सहारा लेकर ही रामकथा के प्रसंगों पर लिखने का साहस किया है। परिणाम यह रहा कि मेरी पुस्तक 'मानस चिन्तन' को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने 'आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी नामित पुरस्कार' से पुरस्कृत किया और राम पर कुछ लिखने के कारण उसी संस्थान ने मुझे ढ़ाई लाख रुपए की राशि के साथ 'साहित्य भूषण' उपाधि प्रदान की। दूसरी पुस्तक 'रामकथा का मर्म' हाथों-हाथ पाठकों तक पहुंच गई। इस कृति में कुछ और जोड़ा है जो आपको सुखद अनुभूति का अवसर देगी।
रामकथा पर इन छत्तीस लेखों में मेरा अल्पज्ञान ही अभिव्ययक्त हुआ है। रामकथा एक सुन्दर सरोवर है जिसमें मैंने कुछ हिलोर उठाने का प्रयास किया है। किसी भी लेख में किसी भी रामकथा-मर्मज्ञ लेखक को उद्धृत नहीं किया है, जो कुछ अच्छा-बुरा है, स्वतः का चिन्तन है। यों तो लगभग सभी आलेख लीक से हटकर हैं किन्तु कुछ शीर्षक आपको पढ़ने के लिए बाध्य करेंगें। यथा- 'वाल्मीकि रामायण का उत्तरकाण्ड' जिसको डेढ़ दर्जन से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में स्थान मिला है और जो अब पांच भाषाओं में पुस्तकाकार आ गया है। रामकथा के पाठक रावण को अच्छी दृष्टि से नहीं देखते किन्तु मैंने 'रावण का दृढ़ भक्तिभाव' लिखकर रावण को राम का भक्त सिद्ध किया है। दलित साहित्य के सन्दर्भ में प्रेमचंद को पहला दलित लेखक बतानेवालों को चुनौती देते हुए 'दलित साहित्य के प्रथम कवि तुलसी' लिखकर शास्त्रार्थ को निमंत्रण दिया है। सामान्य पाठक सीता-परित्याग के एक कारण से ही परिचित है, मैंने इस कल्पित घटना का मिथ्यात्व बताने के लिए 'हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता' के द्वारा लगभग एक दर्जन कारण गिनाए हैं। अहल्या पत्थर बन गई थी, इस भ्रम को मिटाने के लिए 'गौतम तिय तरी' लिखना पड़ा। आश्विन मास में रावण दहन का त्योहार दशहरा कितना संगत-असंगत है, इसके लिए 'विजयदशमी एक प्रश्न' अवश्य पढ़ लें।
अंत में, प्रबुद्ध पाठकों से यही आशा करता हूँ कि वे अपनी प्रतिक्रियाओं से मेरा मार्गदर्शन करेंगें। जीवन के सत्तासी वर्ष पूरे होने पर भी मैं अभी भी छात्र हूँ जो नूतन ज्ञान के लिए लालायित रहता हूँ।
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