महर्षि वाल्मीकि ने देवर्षि नारद से श्रीराम का जीवन वृत्तान्त जाना तथा भगवान् ब्रह्माजी के आदेश पर रामायण नामक ऐतिहासिक ग्रन्थ की रचना की।
महर्षि वाल्मीकि द्वारा विरचित रामायण में समय के साथ अनेक परिवर्तन होते रहे हैं, कहीं पाठभेद हुए हैं, कहीं मूल पाठ हटा दिए गए हैं तो कहीं नए पाठ जोड़ दिए गए हैं। रामायण संदर्शिका नामक प्रस्तुत पुस्तक में रामायण के कतिपय प्रसंगों को प्रस्तुत करके उनका यथार्थ स्वरूप खोजने का प्रयास किया गया है। इस कार्य हेतु विभिन्न संस्करणों के पाठों की समीक्षा को आधार रूप में ग्रहण किया गया है तथा आवश्यक स्थलों पर रामायण के टीकाकारों व अन्य ग्रन्थों का भी उपयोग किया गया है। इस पुस्तक में रामायण की प्रमुख घटनाओं की तिथियों का भी निर्धारण किया गया है। रामायण की ऐतिहासिकता तथा उसमें निहित सांस्कृतिक बोध को समझने के लिए यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी।
यशपाल की प्राथमिक शिक्षा अपने गृह जनपद से हुई है। इन्होंने स्नातक डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय से किया। वर्तमान में ये इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में अध्ययनरत मेरे प्रिय छात्र हैं। २२ वर्षीय युवा विद्वान् यशपाल की शोध रुचि पांडुलिपियों के पाठभेद, विश्लेषण, आक्षेपों के समाधान ढूँढने और दुर्लभ ग्रन्थों के अध्ययन में है। इनकी जिज्ञासा मुझ जैसे अध्यापकों को परिश्रम करने के लिए प्रेरित करती है। इनकी भारतीय ज्ञान परम्परा विषयक अभिरुचि एवं शोधदृष्टि को देखकर रघुवंश की यह उक्ति सहसा याद आ जाती है- तेजसां हि न वयः समीक्ष्यते।
एक बार तप-स्वाध्याय में लगे रहने वाले, सभी प्रकार के वाक् को जानने में श्रेष्ठ त्रिलोकज्ञ देवर्षि नारद मुनि का तपस्वी महर्षि वाल्मीकि मुनि के आश्रम में आगमन हुआ। उस समय महर्षि वाल्मीकि ने अनेक दिव्य गुणों का नामोल्लेख करके देवर्षि नारद से पूछा कि सम्प्रति इस संसार में ऐसा कौन है जो इन गुणों से युक्त है? देवर्षि नारद कहते हैं कि ऐसे दुर्लभ गुणों का किसी एक मनुष्य में मिलना अत्यन्त दुष्कर है तथापि मैं विचार करके आपको बताता हूँ। इसके पश्चात् देवर्षि नारद श्रीराम का नामोल्लेख करके उनके गुणों का वर्णन करते हुए उनके जीवन वृत्तान्त को बताते हैं। इसके पश्चात् देवर्षि नारद महर्षि वाल्मीकि से विदा लेकर चले जाते हैं।
इसके थोड़े काल के बाद महर्षि वाल्मीकि अपने शिष्य भरद्वाज के साथ तमसा नदी में स्नान हेतु जाते हैं। महर्षि वाल्मीकि उस सुरम्य स्थान को देख ही रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि एक क्रौञ्चयुग्म वहाँ विचरण कर रहा है। किन्तु उसी समय एक बहेलिए ने उस युग्म में से नर पक्षी का वध कर डाला।
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