शेष यात्रा सुविख्यात कथा लेखिका उषा प्रियम्वदा का महत्वपूर्ण उपन्यास है | हिंदी में उनका कथा-साहित्य नारी-जीवन की त्रासद स्थितियों का एक ऐसा बयान है, जिसे शायद ही किसी सबूत की जरुरत हो | उनके नारी-चरित्र स्वयं एक सबूत बनकर हमारे सामने आ खड़े हो जाते है | लेखिका ने ऐसे हर चरित्र के भावनाशील मनोजगत और आत्मद्वंद को बारीकी से पढ़ने-परखने का कार्य किया है और चाहा है कि वह साहस और संघर्ष से अपनी दारुण नियति को बदलने में कामयाब हो |
शेष यात्रा कि अनु लेखिका की इसी रचनात्मक सोच की निर्मिति है | पति द्वारा त्याग दिए जाने पर वह नारी कि परम्परागत सामर्थ्यहीनता को अनुकरणीय रूप में तोड़ती है | वस्तुतः उच्च -मध्यवर्गीय प्रवासी भारतीय समाज इस उपन्यास में अपने तमाम अंतर्विरोधों, व्यामोहो और कुंठाओं सहित मौजूद है | अनु, प्रणव, दिव्या और दीपांकर जैसे पात्रो का लेखिका ने जिस अंतरंगता से चित्रण किया है, उससे वे पाठकीय अनुभव का अविस्मरणीय अंग बन जाते है |
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