प्रस्तुत पुस्तक में 14 अध्याय हैं। यह पुस्तक बुनियादी रुप से रेनेसां के प्रसंग में इंटरनेट पर मैंने जो व्याख्यान दिए हैं, उसका एक अंश है। इन व्याख्यानों के माध्यम से रेनेसां के विभिन्न पहलुओं को खोलने की कोशिश की गई है। यहां पर वे सवाल बुनियादी तौर पर केंद्र में हैं जिनका लोकतंत्र के साथ संबंध है और जो हमारे आज के भारत को समझने में इससे मदद मिल सकती है। साथ ही उन तमाम पहलुओं की चर्चा की गई है जो लोकतंत्र के लिए चुनौती बनकर खड़े हुए हैं।
इस किताब के परिप्रेक्ष्य के केंद्र में महाराष्ट्र और बंगाल का नवजागरण, स्वाधीनता संग्राम, महात्मा गांधी और साम्प्रदायिक राजनीति है। आशा है, समाज विज्ञान और साहित्य के अध्येताओं को इसमें व्यक्त विचारों और सामग्री से मदद मिलेगी। साथ ही नवजागरण का नया परिप्रेक्ष्य जानने का मौका मिलेगा।
नवजागरण का कैनवास ज्योतिबा फुले, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, राजा रामममोहन राय से लेकर महात्मा गांधी तक फैला हुआ है। इसे सिर्फ उन्नीसवीं शताब्दी तक सीमित करके नहीं देखा जाना चाहिए।
जगदीश्वर चतुर्वेदी : मथुरा में 1957 में जन्म । आरंभ में 13 वर्षों तक सिद्धांत ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन । ज्योतिषशास्त्र पर आरंभ में दो पुस्तकें प्रकाशित। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से सिद्धांत ज्योतिषाचार्य (1979), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से हिंदी में एम.ए. (1981), एम. फिल. (1982), पी-एच.डी. (1986), कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में 1989 से 2016 तक अध्यापन कार्य, तीन बार विभागाध्यक्ष । साहित्यालोचना और मीडिया पर 58 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित । कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में सन् 1989 में प्रवक्ता, सन् 1993 में रीडर और 2001 में प्रोफेसर पद पर नियुक्त। सन् 2016 में सेवानिवृत्त ।
कुछ प्रमुख पुस्तकें : उंबेर्तों इको : चिह्नशास्त्र, साहित्य और मीडिया; साहित्य का इतिहास दर्शन; डिजिटल कैपीटलिज्म, फेसबुक संस्कृति और मानवाधिकार; नामवर सिंह और समीक्षा के सीमांत; हिंदी साहित्य और परवर्ती पूंजीवाद; रामविलास शर्मा परवर्ती पूंजीवाद और साहित्येतिहास की समस्याएं; स्त्रीवादी साहित्य विमर्श; मार्क्सवादी साहित्यालोचना की समस्याएं; लेखक, संस्कृति और विश्वदृष्टि; उत्तर-आधुनिकतावाद और विचारधारा; साइबर परिप्रेक्ष्य में हिंदी संस्कृति; सर्वसत्तावाद और लोकतंत्र; धर्म लोकतंत्र और भारत; धर्म लोकतंत्र और फासिज्म आदि ।
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