लेखक परिचय
डॉ. महेन्द्रकुमार जैन, न्यायाचार्य जन्म सन् 1911, खुरई (म.प्र.) में। शिक्षा: ना. दि. जैन पाठशाला बीना (म.प्र.) में आरम्भिक शिक्षा। हु. दि. जैन महाविद्यालय, इन्दौर से शास्त्री। स्याद्वाद जैन महाविद्यालय, वाराणसी से न्यायाचार्य। आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पी-एच.डी.। अध्यापन: स्याद्वाद जैन महाविद्यालय, वाराणसी (1932-1943), महावीर जैन महाविद्यालय बम्बई (1944), संस्कृत महाविद्यालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (1947-1959)1 सम्पादित कृतियाँ: न्यायकुमुदचन्द्र (दो भाग), न्यायविनिश्चय-विवरण (दो भाग), अकलंकग्रन्यत्रय, प्रमेय-कमलमार्तण्ड, तत्त्वार्थवृत्ति, सिद्धिविनिश्चय टीका (दो भाग), जैन दर्शन आदि। निधन: सन् 1959 ई. में।
पुस्तक परिचय
षड्दर्शनसमुच्चय
आचार्य हरिभद्र सूरि कृत 'षड्दर्शनसमुच्चय' छह प्राचीन भारतीय दर्शनों (बौद्ध, नैयायिक, सांख्य, जैन, वैशेषिक तथा जैमिनीय) का प्रामाणिक विवरण देनेवाला प्राचीनतम उपलब्ध संग्रह है। इसमें प्रत्येक दर्शन के मूल सिद्धान्तों की सुव्यवस्थित एवं सन्तुलित रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तुत ग्रन्य की यह भी विशेषता है कि इसमें छह दर्शनों के अन्तर्गत वैदिक और अवैदिक दोनों दर्शनों को समाहित किया गया है। षड्दर्शन शीर्षक के अन्तर्गत अन्य ग्रन्थों में जहाँ अन्यान्य दर्शनों को इसलिए ग्रहण किया गया कि उनका खण्डन किया जा सके, वहीं इसके सर्वथा विपरीत प्रस्तुत ग्रन्थ में आचार्य हरिभद्र ने सभी दर्शनों का ठीक वैसा ही परिचय दिया है जैसा कि उन-उन दर्शनों के मूल ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। प्रस्तुत संस्करण 'षड्दर्शनसमुच्चय' आचार्य गुणरत्न सूरि की तर्करहस्य दीपिका, सोमतिलक सूरि कृत लघुवृत्ति, अज्ञातकर्तृक अवचूर्णि, डॉ. महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य कृत हिन्दी अनुवाद तथा विवेचन एवं सहस्राधिक तुलनात्मक टिप्पणों के साथ प्रकाशित है। प्रस्तावना में पं. दलसुख मालवणिया ने ग्रन्थ और ग्रन्थकार तथा टीकाकारों के विषय में समुचित प्रकाश डाला है। ग्रन्थ के अन्त में दिए गए चार परिशिष्टों से ग्रन्थ की उपयोगिता और भी बढ़ गई है। भारतीय दर्शनों के तुलनात्मक अध्येता के लिए अनिवार्य एवं संग्रहणीय कृति, नये रूपाकार में।
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