यह पुस्तक - मैने साहित्य के जो पाँच स्तम्भ माने जाते हैं, उन्हीं को ध्यान में रखकर लिखे हैं। वे पाँच स्तम्भ ये हैं (1) साहित्य सौन्दर्य, (2) भाव, (3) प्रतिभा, (4) प्रेरणा, (5) कल्पना। इन्हीं निबन्धों का विवेचन पाँच अध्यायों में किया गया है।
इसके कुछ निबन्ध लखनऊ से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका "माधुरी" में सन् 1945 ई. में प्रकाशित हो चुके हैं। वे निवन्ध साहित्य सौन्दर्य एवं प्रतिभा है। भाव, प्रेरणा एवं कल्पना बाद में जोड़े गये निवन्ध हैं। ये तीन निबन्ध भी सन् 1962 ई. में लिखे गये थे, किन्तु इन समस्त निबन्धों का संशोधित एवं परिवर्द्धित स्वरूप इस पुस्तक के द्वारा प्रकट किया गया है।
पुस्तक में पाँच अध्यायों के अतिरिक्त पृथक से परिशिष्ट भी लिखा गया है। इसमें सम्पूर्ण पुस्तक में वर्णित विषयों का सारांश दिया गया है। सम्पूर्ण ग्रन्थ गवेषणात्मक समीक्षा पर आधारित है। इस ग्रन्थ को क्लिष्ट एवं श्रम साध्य नहीं बनाया गया है, अपितु इसकी भाषा को इस प्रकार दर्शाया गया है ताकि पाठक उसमें अपनी रुचि रखें। कहीं-कहीं भाषा में व्यंग्य और मुहावरे भी रखे गये हैं। श्रेष्ठ प्रसिद्ध कवियों के उदाहरण भी प्रस्तुत किये गये हैं।
अन्त में सभी पाठक वृन्द एवं समालोचकों से मेरा नम्र निवेदन है कि पुस्तक पढ़ कर उचित सुझाव देने का कष्ट करें। पुस्तक को सरल एवं सरस बनाने का यथावत प्रयास किया गया है।
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