खुल खेलो संसार में बांधि न सक्के कोय ।
जाको राखे सांइयाँ मारि न सक्के कोय।
सन्त-भक्त कवियों में सबसे अलग और विशिष्ट स्थान है कबीर का। सधुक्कड़ी भाषा में फक्कड़पन से जो कुछ कह गए दास कबीर, वैसा तीखा और विद्रोही स्वर किसी का न रहा।
भारतीय जन-मानस पर कबीर की अमिट छाप है, जिन्होंने धर्म, जाति, आडंबरों और अंधविश्वासों पर तीखा प्रहार किया।
कबीर के भजन, उनके दोहे और कुंडलियाँ जो उन्होंने रचीं, एक-एक रचना में वह अपने ठेठ ढंग से जीवन को सही तरह से जीने की प्रेरणा देते हैं तथा मानव मात्न की एकता पर बल देते हैं।
पढ़िए सन्त कवि की रोचक जीवनी और रचनाएँ।
कबीरदास 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के निर्गुण शाखा के ज्ञानमार्गी उपशाखा के महानतम रचनाकार थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनकी रचनाएँ सिक्खों के आदि ग्रंथ में सम्मिलित की गयी हैं। वे एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की। उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उनका अनुसरण किया। कबीर पंथ नामक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist