गुजराती के प्रथितयश कवि श्री विनोद जोशी का प्रबन्धकाव्य 'सैरन्ध्री' महाभारत के प्रसंग विशेष पर आधारित अनूठी रचना है। महाकवि वेदव्यास की सैरन्ध्री से कवि विनोद जोशी की सैरन्ध्री अनेकशः अलग एवं स्वतंत्र भी है। उसके नारी स्वरूप को गुजराती के यशस्वी कविने अपने ढंग से आधुनिक विचारों का पुट देकर उकेरा है। महाकाव्यों एवं पुराणों के चरित्रों को समयानुकूल नये अर्थ संदर्भ देने की परंपरा में हमें हिन्दी में 'कामायनी', 'साकेत', 'रश्मिरथी' और 'उर्वशी' जैसी कालजयी रचनाएं प्राप्त हुई है। गुजराती कवि की 'सैरन्ध्री' उसी शृंखला की एक कड़ी है।
स्वयं रचनाकारने अपनी इस यशोदायिनी रचना का हिन्दी में अनुवाद किया है जो मंचनक्षम पद्यनाटक एवं प्रबन्धकाव्य - दोनों विधाओं में बखूबी अपनी खास पहचान बना लेती है।
गुजरात साहित्य अकादमी की उत्कृष्ट प्रकाशन परंपरा में हिन्दी साहित्य अकादमी के तत्त्वावधान में श्री विनोद जोशी की इस रचना का प्रकाशन निश्चित तौर पर गौरव अनुभव करने योग्य उपक्रम है। मैं आशा करता हूँ कि गुजराती प्रबन्ध काव्य का यह रूपान्तर हिन्दी पाठकों के लिए एक प्रशिष्ट उपहार सिद्ध होगा ।
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