| Specifications |
| Publisher: Pratishruti Prakashan, Kolkata | |
| Author Narendra Pratap Singh | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 159 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9x6 inch | |
| Weight 298 gm | |
| Edition: 2014 | |
| ISBN: 9789383772056 | |
| HBD666 |
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जनपद सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) में सुदूर गांव उघरपुर भटपुरा जिसे पहले तालगांव (पानी से घिरा) कहते थे जहां मेरा बचपन बीता। झाड़ियों, झुरमुटों, वृक्षों से आच्छादित, शरद के बाद लाल टेसू के फूलों से खिलती हुई धरती जो अब समाप्तप्राय है- अभी भी जेहन में रची-बसी है। बारहवीं तक की शिक्षा छीत्तेपट्टी इन्टर कॉलेज से मिली, वहीं खेतों के बीच बैठ प्रेमचन्द, शरतचन्द्र, रेणू, टॉलस्टाय, शिव प्रसाद सिंह, भीष्म साहनी जैसे रचनाकारों को पढ़ते हुए मन करता मैं भी कुछ लिख पाता। कुछ लघुकथाएं कमलेश्वर जी ने सारिका में 1980-81 में छापी भी। 1997 में पहली बार रवीन्द्र कालिया जी (संपादक, नया ज्ञानोदय) की माता जी को देखने उनके घर गया था। मेरे मित्र राकेश श्रीवास्तव ने उनसे शायद कहा हो कि ये कहानियां भी लिखते हैं। उनके कहने पर मैंने उन्हें एक-दो कहानियां दीं, जिन्हें उन्होंने 'गंगा यमुना' साप्ताहिक में छापा भी, तब से कितनी ही बार उनकी सहधर्मिणी ममता कलिया जी (प्रसिद्ध कथाकार) के हाथों की चाय पी है, उन्हें चाय के लिए बहुत परेशान किया है। उन्हीं के घर पहली बार कमलेश्वर जी को सुना, वहीं श्री लालबहादुर वर्मा (आलोचक), फातमी जी, कृष्ण मोहन (आलोचक) से मिल सका।
पहली कहानी 'सदाशिव' (ठीक से याद नहीं) वर्ष 1974 में लिखी जो बहुत बाद में प्रकाशित हुई, अंतिम कहानी 'सलीब पर देव' अभी हाल में लिखी गयी है।
उन सभी सखा बन्धुओं को जिनके बीच गांव में रहा; उन अग्रजों, मित्रों को जिन्होंने लिखने के लिए प्रेरित किया- श्री रवीन्द्र कालिया, ममता जी, शिवमूर्ति जी, काशीनाथ सिंह जी, कृष्ण मोहन, वाचस्पति जी, मेरी सहधर्मिणी अलका, बेटी स्तुति, पुत्र मनीष, कथाकार चन्दन पाण्डेय, मनोज पाण्डेय, नीलमशंकर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना चाहता हूं।
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